उत्तर प्रदेश में जेंडर चेंज कराने वाले शरद सिंह पिता बने, पत्नी ने बेटे को दिया जन्म। विज्ञान और प्रेम की ये सच्ची कहानी पढ़कर आप भावुक हो जाएंगे।
"विज्ञान ने रचा चमत्कार: सरिता से शरद बनने की यात्रा, और फिर पिता बनने की वो घड़ी जिसने बदल दी किस्मत!"
जब किस्मत को विज्ञान ने हराया: जन्म हुआ उम्मीद से, पर अंत लिखा विज्ञान ने…
शाहजहांपुर के एक छोटे से गांव नवादा दारोवस्त में, विज्ञान ने वो कर दिखाया जो कभी सिर्फ एक ख्वाब हुआ करता था। यहां जन्मी एक बच्ची, जिसने अपने भीतर एक लड़के की पहचान पाई, समाज से टकराई, विज्ञान की गोद में पनपी, और आखिरकार पिता बनकर उस इतिहास को रचा जिसे पढ़कर आंखें नम हो जाती हैं और दिल से सिर्फ एक आवाज आती है "असंभव कुछ भी नहीं!"
ये कहानी है सरिता से शरद बनने की। और फिर पिता बनने तक की उस अनसुनी लेकिन अनमोल यात्रा की, जो न सिर्फ इंसानी जज्बातों को छूती है, बल्कि विज्ञान की ताकत को भी सलाम करती है।
क्रांति की परछाईं में जन्मा बदलाव
सरिता सिंह... एक ऐसा नाम जिसे बचपन से ही ये अहसास था कि उसका शरीर उसकी आत्मा से मेल नहीं खाता। वह ठहरी एक लड़की, लेकिन मन था एक लड़के का। ये कोई फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं, हकीकत थी। और हकीकत थी उनकी जद्दोजहद।
काकोरी कांड के नायक ठाकुर रोशन सिंह की प्रपौत्री सरिता ने जब 16 की उम्र में दाढ़ी देखी, भारी आवाज़ सुनी, तो परिवार और समाज की दीवारें उसकी राह में खड़ी हो गईं। मगर फिर आया विज्ञान... जैसे ब्रह्मा ने एक नया जीवन रच दिया हो।
इंदौर में रचा गया नया इतिहास
2022 में इंदौर के एक अस्पताल में चार जटिल सर्जरियों और लंबी हार्मोनल थेरेपी के बाद सरिता बन गईं शरद सिंह। नया नाम, नया अस्तित्व, और एक नई पहचान कागज़ों में भी और आत्मा में भी। वो सिर्फ नाम नहीं बदला था, एक जीवन दर्शन, एक सोच, एक जज़्बा बदल चुका था।
स्कूल की दोस्त बनी हमसफर
कक्षा 9 की दोस्त सविता सिंह, जो कभी सरिता की सहेली हुआ करती थीं, अब शरद की जीवन संगिनी बन गईं। ये प्रेम उस दौर से निकला जब लोग सवालों से डरते हैं। लेकिन शरद और सविता ने मिलकर उन सवालों को जवाब में बदला।
2023 में दोनों ने शादी की। लेकिन दोनों जानते थे, यह प्रेम था असाधारण, पर क्या इस प्रेम से जन्म संभव था?
2 अप्रैल 2025: विज्ञान ने फिर चौंका दिया
इस तारीख को एक निजी अस्पताल में सविता ने ऑपरेशन के जरिए एक बेटे को जन्म दिया। वो बेटा जो सिर्फ एक संतान नहीं था, बल्कि हर उस उम्मीद का नाम था जिसे दुनिया ने नामुमकिन कहा था।
26 साल बाद परिवार में पुत्र जन्म हुआ और वह भी ऐसे जोड़े के घर, जिसे दुनिया ने कभी शक की निगाहों से देखा।
माँ की आंखें नम, पिता का सीना गर्व से चौड़ा
सविता ने कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी कोख भर पाएगी। लगता था, ये सिर्फ कहानियों में होता है। लेकिन जब बेटे की पहली चीख सुनी... तो यकीन हो गया कि माँ होना सबसे बड़ी जीत है।"
शरद बोले, "मैंने खुद को पहली बार पूरा महसूस किया। यह सिर्फ मेरा नहीं, मेरे शरीर और विज्ञान की साझी जीत है।"
विज्ञान की ताकत: एक नई दुनिया की शुरुआत
विज्ञान सिर्फ इलाज नहीं करता, वो नई ज़िंदगियाँ गढ़ता है। वो पथ खोलता है, जहाँ समाज बंद दरवाज़े खड़ा करता है।
शरद और सविता की यह कहानी बताती है कि "जेंडर कोई बंदिश नहीं, पहचान है। और पहचान, विज्ञान की मदद से, प्यार की ताकत से, हकीकत बन सकती है।"
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