UP: चंदौली के इलिया कस्बे में शनिवार को एक ऐतिहासिक घटना घट गई, यदि होते तो इसे देखकर स्वयं अकबर-बीरबल भी शर्मा जाते! दरअसल, यहां के चौकी इंचार्ज सूरज सिंह को शाम के समय भूख लगी थी। अब अगर मामला आम जनता से किसी का होता तो गुप्ता जी के दुकान से समोसे या शर्मा जी की चाय से समस्या का समाधान हो जाता, लेकिन दरोगा जी की भूख सिर्फ 'फ्री का पनीर' देखकर शांत होनी थी!
ऐसे में दरोगा जी बड़े ही ठाठ से बाजार में आए, उन्होंने पनीर विक्रेता मुकेश यादव की दुकान पर जाकर ‘दरोगा स्पेशल डिश’ पनीर की फरमाइश कर दी। लेकिन दुकानदार भी समझदार निकला, थोड़ा बहुत पनीर तो दे दिया, फिर जब पैसे की बात आई तो मामला ही बिगड़ गया।
दरोगा जी का क्रोध बढ़ गया उन्होंने हड़काते हुए कहा कि "तू क्या हमें ग्राहक समझ रखा है? हम तो कानून के रखवाले हैं, तुझे नहीं पता कि पनीर पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है!”
लेकिन दुकान संचालक मुकेश यादव भी कम नहीं था, उसने तो ‘लोकतंत्र की दुहाई दे दी, कहा कि बिना पैसे के पनीर कतई नहीं मिलेगा। बस फिर क्या था!दरोगा जी भड़क गए, उन्होंने कानून का डंडा ऐसे चला दिया कि पूरा बाजार थर्रा उठा। पहले थप्पड़ गूंजा, फिर घूंसे, और फिर दुकानदार को ‘वर्दी एक्सप्रेस’ में जबरदस्ती बैठाकर थाने पहुंचा दिया गया।
बाजार में मौजूद व्यापारियों को जब यह सब दिखा तो वह समझ गए कि लोकतंत्र खतरे में आ गया है और पनीर अब सरकारी राशन में गिना जाने लगा है! उन्होंने पूरे जोश में सड़क पर चक्का जाम कर दिया। ऊंचे स्वर में नारे गूंजने लगे, "इलिया पुलिस चौकी इंचार्ज खाते हैं मुफ्त का पनीर!" पनीर मांगने पर लात-घूंसे की बरसात करते है"
हालात बिगड़ते देख, खुद थानाध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ‘शांतिप्रसाद’ घोलने मौके पर पहुंचे। उन्होंने व्यापारियों को समझाया कि “चौकी इंचार्ज को 24 घंटे के भीतर ‘पनीर प्रेम’ से मुक्त कर दिया जाएगा, यानी कि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई कर दिया जाएगा। व्यापारियों को थोड़ी तसल्ली हुई, फिर उन्होंने जाम हटा लिया।
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चंदौली में चौकी इंचार्ज को मुफ्त के पनीर की दरकार, रुपए मांगने पर दुकानदार को पीटा, भड़के दुकानदार pic.twitter.com/vWa1IK7JKv
अब इस घटना की जांच चल रही है। बताया जा रहा है कि क्षेत्राधिकारी चकिया खुद यह जानने में जुटे हैं कि आखिर पनीर की मात्रा कितनी थी, कि दरोगा जी को यह कदम उठाना लेकिन क्यों? स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यह ट्रेंड चल गया, तो अगली बार किसी दरोगा जी का मन बिरयानी, मिठाई, या तंदूरी चिकन पर आ गया, तो बाजार में फिर ‘न्याय’ की कोई नई परिभाषा गढ़ी जाएगी।
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