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42 वीं बार दूल्हा बना शख्स, फिर भी बैरंग लौटी बारात!



उत्तर प्रदेश के खीरी में यह दृश्य हर साल देखने को मिलता है, गांव में बारात धूमधाम से आती है, जिसका आवभगत व स्वागत सत्कार किया जाता है, शादी की सारी रस्में निभाई जाती है, लेकिन दुल्हन के बिना दूल्हे को वापस लौट जाना पड़ता है। यह कोई कहानी नहीं, बल्कि ईसानगर के नरगड़ा गांव की 42 वर्ष पुरानी परंपरा है। जिसके तहत विश्वम्भर दयाल मिश्रा इस बार फिर दूल्हा बने, लेकिन बिना दुल्हन के उनकी बारात वापस लौट गई।

अनोखी बारात नहीं मिलती दुल्हन: होली के अवसर पर रंगों से सराबोर होकर बारात निकली तो गांव के लोगों की खुशियां देखते ही बन रही थी, गाजे बाजे के धुनों पर थिरककते हुए लोग असली शादी का जश्न मना रहे थे। लेकिन इस बार भी बीते 41 सालों के जैसा ही दृश्य रहा। दूल्हा शादी का मौर पहनकर बारातियों के साथ सजधज कर पहुंचा, लेकिन इस बार भी उसे बिना दुल्हन के वापस लौटना पड़ा।

अधूरी रही बारात: गांव के रहने वाले अशोक अवस्थी के घर पर दूल्हे सहित पूरी बारात पहुंची, जैसा कि आम शादी में देखने को मिलता है, ठीक उसी अंदाज में बारात का स्वागत किया गया, आए हुए मेहमानो के पांव पखारे गए, मेहमान नवाजी के लिए जलपान एवं भरपूर नाश्ते का इंतजाम किया गया। बारात की अगवानी करते हुए फूल माला पहना करके स्वागत किया गया। द्वारपूजन की रस्में निभाई गई, सारे रिवाजों को अपनाने के बाद विदाई के वक्त फिर वही बात सामने आई, दूल्हे को बिना दुल्हन वापस लौटना पड़ा।

सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा: इस गांव में होली के दिन बारात आने की परंपरा कोई नई बात नहीं, बल्कि यह सदियों पुरानी बताई जा रही है, पहले विश्वम्भर के बड़े भाई श्याम बिहारी मिश्रा इस परंपरा निभाते हुए दूल्हा बनते थे, लेकिन बीते 42 वर्षों से विश्वम्भर मिश्रा इस परंपरा में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

इस बार हुआ बड़ा बदलाव: बीते वर्षों की भांति इस वर्ष भी शादी की पूरी परंपरा निभाई गई, लेकिन इस बार बीते वर्षों से हटकर देखने को मिला है। बहुत पहले विश्वम्भर भैंसे पर सवार होकर या बैलगाड़ी से बारात लेकर आते थे, लेकिन इस बार के दूल्हे में नया लुक देखने को मिला है। दूल्हा क्रेटा कार में सवार होकर बारात लेकर पहुंचा था।

जानिए क्यों नहीं मिलती दुल्हन?: गांव के बुजुर्गों से मिली जानकारी के मुताबिक यह शादी वास्तव में एक परंपरागत नाटक है, जिसे ग्रामीणों के द्वारा होली के अवसर पर निभाया जाता है। बारात आयोजन से पहले विश्वम्भर मिश्रा की पत्नी मोहिनी को मायके भेज दिया जाता है। जिससे इस शादी की परंपरा को निभाने में कोई व्याधि न आए, शादी के उपरांत बारात वापस लौट आती है, तब होलाष्टक खत्म हो जाता है। जिसके बाद विश्वम्भर मिश्रा की पत्नी वापस अपने ससुराल पहुंच जाती है।

शादी आकर्षण का केंद्र: बिना दुल्हन के लौटने वाली बारात की शादी देखने के लिए दूर दराज इलाके से तमाम लोगों का आना होता है, बारात के मौके पर स्वागत गीत के साथ-साथ, महिलाएं मंगल गीत, गारी गाकर ढोल बजाती है। गांव के महिलाओं और पुरुषों के सहयोग से गांव की यह परंपरा जीवंत है। जो हर वर्ष लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

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