कमलेश
खमरिया-खीरी:ईसानगर क्षेत्र में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या के दिन आज अलग अलग स्थानों पर बड़ी श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ पति की लंबी उम्र की कामना कर अखंड सौभाग्य के लिए माताओं बहनों ने वट सावित्री का व्रत रखकर वट वृक्ष का पूजन कर अपने पतियों के दीर्घायु की कामना की। व नजदीकी मंदिरों जाकर भगवान शिव की पूजा अर्चना भी की।
ज्येष्ठ मास की अमावस्या को बरसाइत के पर्व के अवसर पर ईसानगर क्षेत्र के अलग अलग गावों व कस्बों में सौभाग्यवती महिलाएँ वट सावित्री का व्रत रखकर वट वृक्ष
की पूजा विधि विधान से किया और अपने पतियो की दिर्घायु व अखंड सौभाग्य की कामना की। कुछ महिलाएँ अपने घर में ही बरगद के पेड की डाल मंगाकर वट सावित्री की पूजा की तो कुछ महिलाओं ने कस्बों व गावों के साथ साथ जंगलीनाथ मंदिर पर लगे मेले में जाकर वट की पूजा कर कथा भी सुनी। ज्येष्ठ मास की अमावस्या को होने वाले इस वट सावित्री पूजन का व्रत बिना जल,अन्न, ग्रहण किए उपवास रखकर पूजा की जाती है। इस व्रत की मान्यता है कि यमराज जब सत्यवान को लेकर जा रहे थे तब सत्यवान की पत्नी सावित्री ने यमराज का पीछा करते हुए उनका सामना कर अपने सुहाग को लौटाने मे कामयाबी पाई थी। उस दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या थी तभी से सुहागिन महिलाएँ इस माह की अमावस्या के दिन वट सावित्री का व्रत रखकर पूजा करती है और अपने पति की लंबी उम्र अखंड सौभाग्य की कामना करती है। इस बाबत पूजा करने के बाद तमोलीपुर गांव की संगीता श्रीवास्तव ने बताया मान्यता है कि वट वृक्ष हिंदू धर्म में विशिष्ट माना गया है,इसमें त्रिदेवों ब्रह्मा,विष्णु और महेश का वास माना होता है। कई व्रत और त्योहार में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है,इसमें से वट सावित्री या बरगदाई की पूजा प्रमुख है। वट वृक्ष या बरगद के पेड़ के तने में भगवान विष्णु,जड़ में ब्रह्मा तथा शाखाओं में शिव का वास होता है। वट वृक्ष को त्रिमूर्ति का प्रतीक माना गया है। विशाल एवं दीर्घजीवी होने के कारण वट वृक्ष की पूजा लम्बी आयु की कामना के लिए की जाती है। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव वट वृक्ष के नीचे ही तपस्या करते हैं तथा भगवान बुद्ध को भी बरगद के पेड़ के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बौद्ध धर्म में इसे बोधि वृक्ष कहा जाता है। हिंदू परंम्परा में चार वट वृक्षों का विशिष्ट स्थान हैं, अक्षय वट, वंशीवट,गयावट और सिद्ध वट वृक्ष। इनकी प्राचीनता के विषय में स्पष्टतौर पर कुछ ज्ञात नहीं है,परन्तु इनका वर्णन पुराणों में मिलता है, अतः ये हिंदू आस्था के प्रतीक हैं। इनमें से अक्षय वट प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित है,मान्यता है कि प्रलय काल में स्वयं श्री हरि विष्णु इसकी शरण लेते थे क्योकि अक्षय अर्थात् कभी समाप्त न होने वाला अक्षय वट प्रलय काल में भी समाप्त नहीं होता है। वट सावित्री या बरगदायी की पूजा में विशेष तौर पर बरगद के पेड़ की ही पूजा की जाती है। मान्यता है कि बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री ने अपने पति सत्यावान को पुनर्जीवित किया था। तब से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री की पूजा करती आ रही है।
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