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BALRAMPUR...मेधावी छात्रा की मार्मिक कविता



अखिलेश्वर तिवारी
जनपद बलरामपुर की मेधावी छात्रा आकांक्षा सिंह ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित पत्रिका कैंपस कलरव में दिल को छूने वाली मार्मिक कविता लिखकर जिले का नाम रोशन किया है । इस पत्रिका में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नौ अंकुरित कवियों द्वारा लिखे गए कविताओं को स्थान दिया जाता है ।

सुनो, ये जो तुम कर रहे हो ना, करते जाना...
जब किसी ने सोची भी न थी , तब तुम्हारा उस छोटे से शहर से निकल कर बाहर आना..

ये तो बस शुरुआत भर है,
तुम्हें तो और ऊंचा उड़ना है ..

माना कि राह नहीं है आसान,
पर क्या आसानी से कभी मिला है कोई मुक़ाम..

हां, मानती हूं ये जिंदगी कभी सोची ना थी...
ये क्लासेज , हॉस्टल और लाइब्रेरी का चक्कर , और हां , वो बेस्वाद रोटी भी ..

घर की याद आए तो रो भी नहीं सकते ,
और लोगों को इस भीड़ में किसी से मन की बात कह भी नहीं सकते..

लेकिन सुनो , इस अनजाने से शहर में तुम्हें कुछ अनजान मिलेंगे..
जो कुछ वक्त बाद तुम्हारे ग़म और आंसू... सब बांट लेंगे।

ये जो हो रहा है ना , होने दो..
घर की याद , उम्मीदों का बोझ , और टेंशन में जब आंसू आएं , तो उन्हें बहने दो...

बात मानो , मन बहुत हल्का हो जाएगा..
और एक बार फिर , ये दिल खुद को मुस्कुरा के समझाएगा..

कि माना , कि घर का मतलब है खुशी..
पर घर से दूर होने का ये मतलब ये तो नहीं, की गायब ही हो जाए तुम्हारी वो इत्ती - सी हंसी..

पैसे कम हैं... फिर कभी कुछ बाहर से खा लेंगे..
कभी अगर कोई चीज़ कम हो जाए, तो मन मसोस कर रह लेंगे..
घूमने का प्लान बन रहा है , पर पैसे खत्म हो गए, कैसे जाएंगे.?
पर ये सारी बातें , घर पर नहीं बताएंगे।

इसे ही तो स्ट्रगल कहते हैं... और इसके बिना तो कुछ मिलेगा नहीं,
वो छुटकी अब बड़ी हो गई... तभी तो ये सारी बातें उसने खुद से कहीं।

अरे! बारहवीं पास करते ही, इतनी बड़ी हो गई..
कि मम्मी-पापा से बातें बनाना भी अब सीख गई है नई - नई..

"हां मम्मी...खाना टाइम से खाते हैं , और जब मन करता है बाहर से भी खा लेते हैं कभी-कभी..
तबियत भी ठीक है और पैसे भी अकाउंट में हैं अभी।"

पर बिहाइंड द सीन तो ये है...
की जब किसी वजह से देर हो जाए,
और मुंह में वो ठंडी रोटी है जाती..
सच बताना , उस वक्त घर की बहुत है याद आती।

वो रातों की नींदें उड़ जाना..या कभी-कभी थकान की वजह से भूखे सो जाना...
तब याद आता है ... कि "पापा आते हुए कुछ खाने को लेते आना।"

वो आंसू , वो थकान, टेंशन और स्ट्रेस और तो और अपना वित्त मंत्री बनने की नाकाम कोशिश...
तू चिंता मत कर , ये सब सह कर ही तो तू निकलेगी एक दिन बन कर तबिश।

कुछ आशाएं , कुछ सपने लेकर ..
घर-परिवार सब पीछे छोड़ कर..
आए हैं यहां, ताकि मम्मी-पापा का ऊंचा कर सकें सिर..
और एक दिन , वो ख़बर और होठों पर मुस्कान लेकर जाएंगे हम अपने घर।

वो माथे का पसीना , सूजी आंखें और उन आंखों के आंसू ,
एक दिन इन सबका हिसाब होगा...
जब तुम्हारा रोल न. ..उस पीडीएफ में चमकता दिखेगा,
तब हर बार मन मसोस कर नहीं पड़ेगा रह जाना...
सुनो, ये जो तुम कर रहे हो ना , बस करते जाना ।।

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