कमलेश
धौरहरा खीरी। संत श्रीतुलसीदास की कर्म स्थली श्रीराम वाटिका धाम में चल रहे संत तुलसीदास महोत्सव मे जनकल्याण के लिए आयोजित 27 लक्ष श्रीराम नाम महायज्ञ मे छठे दिन महन्त योगेश्वर दास उर्फ तपसी महराज, यज्ञ अधिष्ठाता श्री श्री 108 बाबा श्री रामदास जी महाराज व यज्ञाचार्य युधिष्ठिर जी महाराज के निर्देशन में वैदिक मंत्रोंउच्चार के बीच आहूतिया डाली गयी। रात्रि रासलीला में रासविहार, मयूर नृत्य, राजा हरिश्चंद्र के सत्य की परीक्षा की लीला का संजीव मंचन किया गया। जिसे देखने के लिए क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोग रामवाटिका मे पहुँचे। संत श्रीतुलसीदास की कर्म स्थली श्रीराम वाटिका धाम में चल रहे श्री संत तुलसीदास महोत्सव एवं 27 लक्ष श्रीराम नाम महायज्ञ मे छठे दिन मंगलवार को सुबह से ही लोग आहूतिया देने के लिए पहुचे। वैदिक मंत्रोंउच्चार के बीच आहूतिया डाली गयी। इसके बाद बरसाना मथुरा से आई श्री श्यामा श्याम मिलन रासलीला संस्थान के कलाकरो ने रात में रासलीला के दौरान सत्य वादी राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा की लीला का मंचन किया। राजा हरिश्चंद्र सच बोलने और वचन पालन के लिए मशहूर थे। उनकी प्रसिद्धि चारों तरफ फैली थी। ऋषि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की प्रसिद्धि सुनी। वे स्वयं इसकी परीक्षा करना चाहते थे। राजा हरिश्चंद्र हर हालत में केवल सच का ही साथ देते थे। अपनी इस निष्ठा की वजह से कई बार उन्हें बड़ी-बड़ी परेशानियों का भी सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने किसी भी हाल में सच का साथ नही छोड़ा। इनकी पत्नी का नाम तारा था और पुत्र का नाम रोहित। एक बार राजा हरिश्चन्द्र ने सपना देखा कि उन्होंने अपना सारा राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया है। और उनकी दक्षिणा मे सात भार सोना देने के लिए अपनी रानी व पुत्र के साथ काशी मे बिकने के लिए गए।राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था, जो शवदाह के लिए आए मृतक के परिजन से कर लेकर उन्हें अंतिम संस्कार करने देता था। एक दिन सर्प के काटने से इनके पुत्र की मृत्यु हो गयी तो पत्नी तारा अपने पुत्र को शमशान में अन्तिम क्रिया के लिये लेकर गयी। वहाँ पर राजा ने रानी से भी कर के लिये आदेश दिया, तभी रानी तारा ने अपनी साडी को फाड़कर कर चुकाना चाहा। वह स्त्री उनकी पत्नी तारावती थी और उसके हाथ में उनके पुत्र रोहिताश्व का शव था। अपनी पत्नी की यह दशा और पुत्र के शव को देखकर हरिश्चंद्र बेहद भावुक हो उठे। उनकी आंखों में आंसू भरे थे लेकिन फिर भी वह अपने कर्तव्य की रक्षा के लिए आतुर थे। भारी मन से उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि जिस सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपना महल, राजपाट तक त्याग दिया, स्वयं और अपने परिवार को बेच दिया, आज यह उसी सत्य की रक्षा की घड़ी है। विश्वामित्रने हरिश्चंद्र से कहा जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। हरिश्चंद्र ने ईश्वर से कहा “अगर वाकई मेरी कर्तव्यनिष्ठा और सत्य के प्रति समर्पण सही है तो कृपया इस स्त्री के पुत्र को जीवनदान दीजिए”। इतने में ही रोहिताश्व जीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाठ उन्हें वापस लौटा दिया। इस दौरान संरक्षक भगवती प्रसाद अग्रवाल, प्रबंधक रामकुमार शर्मा,भगौती प्रसाद शुक्ला,समालिया प्रसाद मिश्र,अचल अवस्थी, योगेंद्र मिश्र, श्यामबाबू शुक्ला सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
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