सलमान असलम
बहराइच:पिलखुआ की बेटी, पर्वतारोही रिजवाना, ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक अद्वितीय यात्रा पर कदम रखा है। उन्होंने अपने निरंतर प्रयासों और अदम्य संघर्ष के माध्यम से एवरेस्ट को जीतने का निर्णय किया है। इस अभूतपूर्व प्रयास के दौरान, रिजवाना ने मुश्किलों और चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी इस यात्रा में उन्हें समर्थन, प्रेरणा और सहयोग की आवश्यकता है। यह एक महत्वपूर्ण क्षण है जब हमें एक साथ खड़े होकर उनका समर्थन करना चाहिए, ताकि उन्हें उनके सपनों को पूरा करने की ऊर्जा मिले।
ऊँचाईयों को छूने का सपना: भारतीय नारी की शक्ति:
रिजवाना की यह यात्रा उसके सपनों की प्रेरणा और साहस को दर्शाती है। उनके संघर्ष से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी मार्ग पर सफलता पाने के लिए हमें हार नहीं माननी चाहिए। भारतीय नारी की शक्ति और साहस को सलाम!
शिक्षा दीक्षा:
बहराइच में राहगीर व स्थानीय लोगों ने रिजवाना का फूल मालाओं से स्वागत किया। रिजवाना ने बताया कि वर्ष 2013 में उन्होंने हिंदू कन्या इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा पास की। बी० ए० की शिक्षा के लिए रामपुर के इंपैक्ट कॉलेज से स्नातक किया। इंटर की शिक्षा के दौरान जवाहर पर्वतारोहण इंस्टीट्यूट से माउंटेनिंग के बेसिक व एडवांस कोर्स करते हुए स्किंग के बेसिक व एडवांस कोर्स किया।
गोल्ड मेडल व सिल्वर मेडल से हुई अलंकृत:
अब तक रिजवाना छः हजार मीटर तक की ऊंचाइयों को फतह करते हुए विंटर ट्रैक पर भारतीय तिरंगा लहरा चुकी हैं। जनपद में आयोजित 21 व 25 किलोमीटर की मैराथन में बाजी मारते हुए गोल्ड और सिल्वर मेडल अलंकृत हुई है।
अब क्या है इरादा:
रिजवाना माउंटेनरिंग इंस्टिट्यूट में तीन वर्ष तक गेस्ट इंस्पेक्टर के पद पर कार्य कर चुकी है। लेकिन अभी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराने का इरादा बनाए हुए है, जिसके लिए शासन से आर्थिक मदद की मांग भी की है।
काठमांडू तक पैदल पदयात्रा:
माउंट एवरेस्ट के लिए फंड जमा न होने के कारण से रिजवाना सात मार्च को पैदल पिलखुआ से काठमांडू के यात्रा पर निकल पड़ी है। इन दिनों तक वह प्रतिदान 30 से 35 किलोमीटर की दूरी का सफर करती है। पिलखुआा से सफर शुरू करके हापुड़, गजरौला, गढ़मुक्तेश्वर के रास्ते बहराइच होते हुए बुधवार को नानपारा के लिए निकली।
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