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अटल बिहारी वाजपेयी के जयंती पर काव्य संगोष्ठी का हुआ आयोजन



वेदव्यास त्रिपाठी 

प्रतापगढ़: भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय पंडित अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म जयंती पर भारतीय जनता पार्टी ने जिला अध्यक्ष आशीष कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में काव्य संगोष्ठी का आयोजन अटल पार्क, बाबागंज में उनके प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया गया। श्रद्धेय पंडित अटल बिहारी वाजपेई को याद करते हुए जिला अध्यक्ष आशीष कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसम्बर 1924 – 16 अगस्त 2018) भारत के तीन बार के प्रधानमन्त्री थे। वे पहले 16 मई से 1 जून 1996 तक, तथा फिर 1998 में और फिर19 मार्च 1999 से 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे।वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे, और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्‍ट्रधर्म, पाञ्चजन्य (पत्र) और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जीवनपर्यंत राष्ट्र निर्माण को गति देने में जुटे रहे। मां भारती के लिए उनका समर्पण और सेवा भाव अमृतकाल में भी प्रेरणास्रोत बना रहेगा।अटल जी ने निःस्वार्थ भाव से देश व समाज की सेवा की और भाजपा की स्थापना के माध्यम से देश में राष्ट्रवादी राजनीति को नई दिशा दी. जहां एक ओर उन्होंने परमाणु परीक्षण और कारगिल युद्ध में विश्व को उभरते भारत की शक्ति का एहसास करवाया, तो वहीं दूसरी ओर देश में सुशासन की परिकल्पना को चरितार्थ किया। अटल जी सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इन्दिरा गाँधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री भी। अटल ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी - ''हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय", जिससे यह पता चलता है कि बचपन से ही उनका रुझान देश हित की तरफ था। अगले वर्ष राजनीति के अजातशत्रु अटल जी का जन्म शताब्दी वर्ष है और हम सभी कार्यकर्ताओं को उनके पद चिन्हों पर चलने का संकल्प लेना है।मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित किसान मोर्चा काशी क्षेत्र अध्यक्ष काशीनाथ तिवारी ने बताया की भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई  चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य थे, लोकसभा, निचले सदन, दस बार, और दो बार राज्य सभा, ऊपरी सदन में चुने गए थे। उन्होंने लखनऊ के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया। 2009 तक उत्तर प्रदेश जब स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ताओं के कारण सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हुए। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हे भीष्मपितामह भी कहा जाता है। उन्होंने 24 दलों के गठबन्धन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मन्त्री थे।सांसद संगमलाल गुप्ता ने अटल के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी से अटल का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे इसके अतिरिक्त वे हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। पुत्र में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति "विजय पताका" पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल की बी॰ए॰ की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया काॅलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे।कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ पढ़ा।सदर विधायक राजेन्द्र कुमार मौर्य ने उनके राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वह भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक थे और सन् 1968 से 1973 तक वह उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके थे। सन् 1952 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। सन् 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी।1980 में जनता पार्टी से असन्तुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। 6 अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1996 में प्रधानमन्त्री के रूप में देश की बागडोर सम्भाली। 19 अप्रैल 1998 को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए। कार्यक्रम का संयोजन जिला मंत्री राम आसरे पाल ने किया।इस अवसर पर प्रमुख रूप से निवर्तमान अध्यक्ष हरिओम मिश्र, वकील परिषद अध्यक्ष निराला, पूर्व जिला अध्यक्ष ओम प्रकाश त्रिपाठी, पंडित राम सेवक त्रिपाठी, जिला महामंत्री पवन गौतम, पूर्व महामंत्री अशोक मिश्र, किसान मोर्चा अध्यक्ष विजय मिश्र, जिला प्रवक्ता राघवेंद्र शुक्ल, रामजी मिश्र,पंकज मिश्र, साधू दुबे रवि गुप्ता, नितिन केशेवनी, राम आसरे पाल, सुदीप पाण्डेय, अभय सिंह, कवि शीतला प्रसाद सुजान जी, राम मूर्ति सिंह, अनूप अनुपम, सौरभ , चंद्रकांत त्रिपाठी,  व्योम, पंकज सिंह ,रजत सक्सेना, पंकज मिश्र, अजय सिंह देवराज ओझा , मृदुल गुप्ता सचिन, पंकज सिंह आदि लोग उपस्थित रहे। उक्त जानकारी जिला सह मीडिया प्रभारी देवेश त्रिपाठी ने दी।

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