कृषि:किसानो को अपनी फसल लगाने के बाद मौसम या रोग जैसे विभिन्न समस्याओं से परेशान होना पड़ता है। जिसका परिणाम यह होता है कि किसान अपने लागत मूल्य के बराबर भी उपज नहीं ले पाते है। जिससे वह कभी प्रकृति तो कभी अपने किस्मत को कोसते है। लेकिन उन्हें अब परेशान होने की जरूरत नहीं है। इस विधि से रबी के फसल की बुवाई व देखभाल करके किसान भारी मुनाफा पा सकते हैं। इस बाबत आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर राम लखन सिंह ने क्राइम जंक्शन से बात करते हुए खेती करने के दौरान उपयोग की जाने वाली विभिन्न युक्त को बताया है।
गेहूं के बुवाई से पूर्व करें यह काम
बता दें कि विगत सप्ताह वर्षा हो जाने के कारण गेहूं की बुवाई में एक सप्ताह का विलम्ब हुआ है। जिसका किसान भाइयों को भरपूर फायदा उठाना होगा। वहीं किसान भाइयों को खेत की तैयारी से पहले सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं है। खेतों में पर्याप्त मात्रा में नमी है। धान की कटाई के उपरांत जिन खेतों में काफी मात्रा में फसल अवशेष है । उनको जलाने की आवश्यकता नहीं है। इन्हें शीघ्र सड़ने हेतु 15 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से खेत की जुताई करते समय अवश्य प्रयोग करें।
इन प्रजातियों का करें चयन
किसान भाइयों को गेहूं की बुवाई में देर से पकने वाली प्रजातियों का चयन करना होगा। जिसकी बुवाई 25 दिसंबर तक अवश्य कर लें।देर से पकने वाली प्रजातियों में मालवीय 234, नरेंद्र गेहूं 1014, नरेंद्र गेहूं 2036, नरेंद्र गेहूं 1076, डीबीडब्ल्यू 14, डीबी डब्ल्यू 16, पीबीडब्ल्यू 590, एचडी 2643, यूपी 2425, के. 7903, के.9423, पीबीडब्ल्यू 71,डीबीडब्ल्यू 88, डीबीडब्ल्यू 173, पीबीडब्ल्यू 752, पीबीडब्ल्यू 757 आदि प्रमुख हैं।
दिसंबर व जनवरी के बुआई के उपज में अंतर
दिसम्बर में बुवाई करने पर गेहूं की पैदावार डेड़ कुंतल प्रति एकड़ तथा जनवरी में बुवाई करने पर 2 कुंतल प्रति एकड़ प्रति सप्ताह की दर से कम प्राप्त होती है । सीडड्रिल मशीन से बुवाई करने पर बीज की मात्रा 50 किलोग्राम प्रति एकड़ तथा छिटकवां बुवाई करने पर 60 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की जरूरत होगी । देर से बुवाई करने पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 से 18 सेंटीमीटर तथा गहराई 4 सेंटीमीटर होना चाहिए । देर से बुवाई की दशा में बगैर जुताई किये खेत में जीरो टिल सीड कम फर्टीड्रिल मशीन से बुवाई करने पर खेत की तैयारी में लगने वाले समय की बचत होती है।
इस मात्रा में उर्वरक का करें प्रयोग
देर से बुवाई की दशा में मृदा परीक्षण की संस्तुति के आधार पर यूरिया की 62 किलोग्राम, डीएपी की 35 किलोग्राम तथा म्यूरेट आफ पोटाश की 20 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की जरूरत होती है । यूरिया की आधी मात्रा खेत की तैयारी करते समय या बुवाई करते समय प्रयोग करना चाहिए । जिंक तत्व की कमी होने पर जिंक सल्फेट की 10 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत की तैयारी करते समय प्रयोग करें अथवा खड़ी फसल में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर जिंक सल्फेट 21% की 2.0 किग्रा. मात्रा तथा 6 किलोग्राम यूरिया या एक लीटर बुझा हुआ चूने के पानी को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें । देर से गेहूं की बुवाई की दशा में पहली सिंचाई जमाव के 15 से 20 दिन बाद तथा अन्य सिंचाईयां 15 से 20 दिन के अंतराल पर करें ।
इन दवाओं का करें छिड़काव
गेहूं की फसल में खरपतवारों के प्रबंधन हेतु उपयुक्त खरपतवारनाशी रसायन का प्रयोग करें । सँकरी पत्ती वाले खरपतवारों के प्रबंधन हेतु सल्फोसल्फ्यूरान 75 WDG की 13 ग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम हेतु मेटसल्फ्यूरान इथाइल 20% WP की 8 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें । सॅकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवार होने पर मैट्रीब्युजिन 70% की 100 ग्राम मात्रा को बुवाई के 20 से 25 दिन बाद 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
उठाए अधिक लाभ
किसान इस तरह से खेती के विधि, प्रजाति, दवाओं और उर्वरक को अपना कर रबी के फसल में अच्छी उपज ले सकते है।
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