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हिन्दू परिवारों के घरों को रौशन करने का काम करता है यह मुस्लिम परिवार, चार माह पूर्व से शुरू हो जाती है तैयारियां



सतीश वर्मा 

गोंडा।कुछ लोग मुझे धन वैभव के आगमन का साधन मानते हैं, कुछ तन्त्र -मन्त्र को जाग्रत करने का साधन मानते हैं, कुछ नास्तिक तो जुआ खेलने की आज़ादी और कुछ लोग तो हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार मानते हैं। मगर कम ही लोग जानते है कि मैं सद्भावना, समरसता और भूंखों के पेट भरने का काम भी करती हूँ। जी हाँ मैं दीपावली हूँ। कुछ ऐसा ही कह रही है हमारी यह रिपोर्ट। जिले में कुछ मुस्लिम घर ऐसे भी हैं जहाँ दीपावली के पर्व को लेकर ख़ासा उत्साह है।

कर्नलगंज क्षेत्र के मुख्तार वारसी व मोहम्मद जुबेर ने छपिया में 51000 दिए तैयार की है।मुस्लिम परिवार दीपावली का लम्बे समय से इंतज़ार तो करता ही है साथ ही वह चार महीने पहले से ही इस त्यौहार की तैयारी शुरू कर देता है। उसकी इस तैयारी से उसके घर वालों का पेट तो भरता ही है साथ लाखों हिन्दू परिवारों के घरों को रौशन करने का काम भी यह मुस्लिम परिवार करता है। सीधे तौर पर कहा जाए तो हिन्दू परिवारों से सद्भावना का सन्देश यह मुस्लिम परिवार पूरे गोंडा के ऐसे तत्वों को देता है जो अराजक तत्वों के बहकावे में आकर हिन्दू-मुसलमान के नाम पर इंसानियत को लड़ाने का काम करते हैं और समाज में एक नफरत का माहौल पैदा करते हैं।यह मुस्लिम परिवार दीपावली में घरों को रौशन करने के लिए दीये बनाने का काम करता है। इसके पास न तो सरकारी नौकरी है और न ही बड़ी पूंजी। अपने परिवार का भूँखा पेट भरने के लिए यह सिर्फ अपने बनाये गए मिट्टी के दीयों पर ही आश्रित है। दीये बेचने के लिए यह परिवार पूरे साल दीपावली का इंतज़ार करता है और चार महीने पहले ही इस त्यौहार की तैयारी में जुट कर दीये बनाने का काम शुरू कर देता है। दीपावली में अपने मिट्टी के दीयों को बेच कर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने का काम करता है। सीधे तौर पर अगर कहा जाए कि हिंदुओं के घरों को रोशनी से भर कर , उनको दीपावली की जगमग देकर, उनके घरों को माता लक्ष्मी के आगमन के लायक बना कर अपने लिए भी खुशियों का बन्द दरवाजा खोलने का काम यह परिवार करता है तो गलत नहीं होगा। यह परिवार उन लोगों के लिए सद्भावना की अनूठी मिसाल पेश करता है जो हिन्दू-मुसलमान के नाम पर नफरत का बीज बोने का काम करते हैं। यह परिवार उनके लिए एक सीख भी देता है जो त्यौहारों को धार्मिक चश्मे से देखते हैं और यह मेरा, वह तेरा का राग अलापते रहते हैं। यह परिवार यह भी सीख देता है कि भारत सबका है। भारत के रीति -रिवाज सबके हैं और भारत के तीज त्यौहार भी सबके हैं। इस परिवार ने हमे यह भी बताया कि उसके इसी काम की बदौलत उसके जीवन की गाड़ी पटरी पर दौड़ती है न कि भेदभाव से। इस लिए हम भी यह कह सकते हैं कि दीपावली में माता लक्ष्मी का आगमन सिर्फ हिन्दुओं के घर हीं नहीं होता बल्कि लाखों हिन्दू घरों को रौशनी में डुबा देने वाले ऐसे मुस्लिम परिवार के घरों में भी होता हैं। जो त्यौहार को धार्मिक नज़रिये से नही बल्कि मानवता और सद्भावना के नज़रिए से देखते हैं।शायद यह त्यौहार पूरे भारत से कह रहा है कि मैं कोई नफरत फैलाने की चीज नहीं हूँ, किसी धार्मिक चश्मा पहने हिन्दू मुसलमान की नहीं हूँ, मैं कट्टरवाद की समर्थक नहीं हूँ बल्कि मैं भारत का वह त्यौहार हूँ जो भारत से भारत को जोड़ती हूँ। जी हाँ मैं दीपावली हूँ।

जिले में दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने गति पकड़ ली है. उन्हें इस बार अच्छी बिक्री की उम्मीद है. कुम्हारों की बस्ती में उनके परिवार मिट्टी का सामान तैयार करने में व्यस्त हो गए हैं. घरों में मिट्टी के दीये, मटकी आदि बनाने के लिए माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं. कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।चाइनीज सामानों पर प्रतिबंध लगने से इस बार दीपावली को लेकर कुम्हारों को उम्मीद है कि अब उनका पुश्तैनी कारोबार फिर से लौट आएगा।

 पिछले कुछ वर्षों में आधुनिकता भरी जीवनशैली के दौर में चाइनीज सामानों ने इस कला को बहुत पीछे धकेल दिया था। पिछले दो वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया और एक बार फिर गांव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने, दियाली, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल गए। 

ये रहेगी कीमत

मिट्टी का दीये 50रुपए में 100 , डिजाइनर दिये 5 रूपए का एक है. बाजार में मिट्टी के दिए के साथ ही डिजाइनर दिए की भी खास मांग है और चाइना के आइटम पंसद करने वाले लोग डिजाइर दिये को खास पंसद करते है. इसके साथ ही खिलौने, गुल्लक, गुड्डा-गुड़िया,हाथी घोड़े के भी सामान्य रेट तय किए गए है।

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