बनारसी मौर्या /अविनाश चंद्र श्रीवास्तव
नवाबगंज गोंडा ।कटरा शिवदयालगंज बाजार में श्री अवध रामविलास समिति के तत्वावधान में चल रही 12 दिवसीय श्री रामलीला महोत्सव में चौथे दिन राम वन गमन, चित्रकूट भरत मिलाप का मार्मिक लीला का मंचन किया गया । चौथे दिन के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मनकापुर विधानसभा के विधायक, पूर्व कैबिनेट मंत्री रमापति शास्त्री रहे । कार्यक्रम का शुभारंभ पर पूर्व मंत्री ने राम - लक्ष्मण, जानकी की भव्य झांकी में पूजन अर्चन एवं दीप प्रजनन कर किया । मुख्य अतिथि ने रामलीला महोत्सव आयोजन समिति को इस महोत्सव में हर प्रकार का सहयोग देने एवं प्रशासन से दिलाने का वादा किया स्थानीय कलाकारों के द्वारा रामलीला मंचन को बेहतरीन प्रदर्शन से अभिभूत पूर्व मंत्री ने कलाकारों की जमकर सराहना किया। रामलीला मंचन में राजा दशरथ अपने मंत्रियों के साथ राजमहल में मंत्रणा करते हैं कि अब राम को राजा बना देना चाहिए । यह बात देवताओं को रास नहीं आई , और उन्होंने मां सरस्वती से निवेदन कर मंथरा के मत भ्रम कर राम के वनवास की योजना बनाई । मंथरा कैकेई को अपने कुटल चाल में फसती है , और इस प्रकार कैकई से अपने दो वर मांगने को कहती है । कैकई कोप भवन में चली जाती है l जिसकी सूचना पाकर महाराज दशरथ कैकेई के पास जाते हैं , और महारानी कैकेई के हठ के आगे बीबस होकर राम की सौगंध खाते हुए दोनों वरदान मांगने को कहा । इस प्रकार कैकेई पहले वरदान मैं भरत के लिए राजतिलक एवं दूसरे वरदान में राम को 14 वर्ष का वनवास मांग लिया । जिसे सुनकर चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ विचलित हो गए । मूर्छित अवस्था में गिर गए । उधर राम पिता के आज्ञा एवं वचन पालन करते हुए तीनों माताओं से आज्ञा लेते हैं । और लक्ष्मण सीता भी माता के आदेशअनुसार राम के साथ वन जाने की तैयारी करते हैं । इधर समय देख कर कैकेई महल में ही राम लक्ष्मण के राजर्षि बेस को उतार देती हैं , और वनवासी देश में ही बन जाने का आदेश देती है । महाराजा दशरथ के मंत्री सुमंत जी के साथ रामबन में जाते हैं । जिनके साथ पूरे अयोध्यावासी भी रोते हुए वन को चल देते हैं । तमसा नदी के तट पर पहुंचकर राम अपने अयोध्या वासी साथियों को आराम करने का आदेश देते हैं , और मध्य रात में जब सारे अयोध्या वासी सो जाते हैं । उसी समय राम लक्ष्मण और सीता तमसा नदी पार करते हैं । तमसा नदी पार करते समय राम और केवट के मार्मिक संवाद को सुनकर सभी स्रोतों के हृदय में भगवन वत्सल की भावना हिलोरे लेने लगी । इधर सुमंत के वापस आने पर राम लक्ष्मण के वापस न आने की सूचना पाकर महाराज दशरथ अपने प्राण त्याग देते हैं । गुरु वशिष्ट के आदेशअनुसार केकेय प्रदेश से भरत और शत्रुघ्न को अयोध्या बुलवाया जाता है । अयोध्या पहुंचकर भरत और शत्रुघ्न को सब कुछ पता चल जाता है । जिससे क्रोधित होकर शत्रुघ्न जी मंथरा के ऊपर पैरों से प्रहार कर देते हैं । और भरत अपनी माता कैकेई को धिक्कारते हुए खरी खोटी कहते हैं , तथा अयोध्या का राजा बनने से साफ इनकार कर देते हैं , और गुरु वशिष्ठ से अनुमति लेकर समस्त अध्यवासी तीनों माता और गुरुजनों के साथ भैया राम और लक्ष्मण को वन से वापस लाने के लिए चित्रकूट की ओर चल देते हैं । रास्ते में भील बनवासी केवट आदि से मिलते हुए जब चित्रकूट में भरत जी पहुंचते हैं तो सीधे राम के चरणों में लेट जाते हैं ,और उनसे पुनः अयोध्या में आकर अयोध्या की राज्य सिंहासन को संभालने के लिए निवेदन करते हैं । इस प्रकार राम और भरत में नीति- अनित, धर्म- धर्म, कर्म आदि तमाम ज्ञानप्रक समाज को दिव्या संदेश देने वाली तथ्यों के आधार पर विस्तृत संवाद हुई । जिसे देख स्रोतों के आंखों से आंसू बहने लगे । गुरु वशिष्ठ ने कहा कि तीनों लोकों में आदि से लेकर अनंत काल तक भरत जैसा भ्रात वत्सल, धर्मात्मा और त्यागी पुरुष ना कभी हुआ है और न कभी होगा । जब राम और भरत दोनों एक दूसरे के बातों पर अपनी अपनी तर्क दे रहे थे ,और कोई भी अपने बटन विचारों से डिग्ने के लिए तैयार नहीं थे । तभी राजा जनक के हस्तक्षेप से भरत जी ने राम जी की खड़ाऊ को राजगद्दी पर प् प्रतीक स्वरूप रखकर राज पाठ चलाने के लिए तैयार हुए । इस प्रकार राम जी की खड़ाऊ लाकर भरत जी ने उसको राज सिंहासन पर रख दिया । और अयोध्या की प्रजा हित हेतु राज संभालना शुरू किया । विदित हो कि इस महोत्सव में सभी कलाकार स्थानीय है । कभी-कभी पिता पुत्र, भाई-भाई, चाचा भतीजा का अभिनय आमने-सामने का होता है । ऐसे में अभिनय करते समय उस अभिनय के भाव में पूरी ध्यान केंद्रित कर देते हैं। इस अवसर पर मनकापुर विधानसभा के विधायक रमापति शास्त्री के प्रतिनिधि वेद प्रकाश दुबे उर्फ ननके मुन्ना,जनार्दन प्रसाद तिवारी रवि श्रीवास्तव विनोद तिवारी प्रधान विपिन सिंह, अमित कुमार राय ,लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता, गिरधारी लाल यादव, आचार्य भोलानाथ त्रिपाठी सहित हजारों दर्शक उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन विनोद कुमार गुप्ता ने किया ।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ