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हिन्दी पखवाड़ा के तहत विराट काव्य संध्या ऐन्जिल्स सभागार में आयोजिका डॉ शाहिदा द्वारा हुआ आयोजित



वेदव्यास त्रिपाठी 

प्रतापगढ़ :संध्या बेला में हिन्दी पखवाड़ा मनाने के लिये ऐन्जिल्स सभागार में आयोजिका डॉ शाहिदा ने एक विराट काव्य संध्या का आयोजन किया जिसमें शहर के अति विशिष्ट और अति प्रतिष्ठित कवियों की उपस्थिति समापन तक लगातार बनी रही। कार्यक्रम के अध्यक्ष ओम प्रकाश खण्डेलवाल थे, मुख्य अतिथि डॉ दयाराम मौर्य, अति विशिष्ट अतिथि प्रदीप चित्रांशी, रोशनलाल उमरवैश्य, पीयूषकान्त शर्मा और अरुण सरकारी ,डॉ संगम लाल त्रिपाठी भँवर, डॉ आर के सिंह, इत्यादि कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती पूजन से हुआ वाणी वन्दना नेहा खण्डेलवाल ने किया। डॉ श्याम शंकर शुक्ल "श्याम" ने सशक्त मंच संचालन किया जिसके फलस्वरूप कार्यक्रम ने सफ़लता प्रा‍प्त किया । 

शीतला सुजान ने समाजिक कुरीतियों पर कटाक्ष करते हुए पढ़ा" पतित हो गया मानव कितना, कैसा है ये आगाज़, नफरत की जो आग उगलने वाले हैं सच पूछो तो रावण के शैदाई हैं,अरुण सरकारी ने यार यारी पर सुन्दर रचना "तेरी यादों के वो लिपटे हुए लम्हे कहाँ रखूँ"डॉ अनीस नाज़िश ने ,"मेरी ज़मीन है हिन्दी ज़ुबान है हिन्दी"डॉ विनय श्रीवास्तव ने "ये हिन्दी भाषा आभूषण है"

गजेन्द्र सिंह वेिकट ने श्रंगार की रचना सुनाकर वाहवाही लूटी "हाथ लगी मेंहदी आँख अंजन पाँव महावर लागे सुन्दर"श्रीमती अर्चना सिंह ने अपनी आवाज़ के जादू से ख़ूब तालियाँ बटोरीं " भारत 

महान देश का उत्थान है हिन्दी, विश्व के पटल पर पहचान है हिन्दी" चन्द्रकान्त त्रिपाठी ने अपनी ग़ज़ल "मैं तुझे प्रेम का गीत कैसे पिखूँ मेरे हमदम तुझे मीत कैसे लिखूँ" सुनाकर माहौल को ख़ुशगवार कर दिया।

डॉ संगमलाल त्रिपाठी भँवर ने "हिन्दी हमारे देश को सिखाती है सभ्यता" सुनाकर वाहवाही लूटी । दोहा सम्राट प्रदीप चित्रांशी ने"बढ़ते भ्रष्टाचार से रोता देख समाज, दुआ प्रार्थना वन्दना शर्मसार है आज" इस दोहे को पढ़कर तालियाँ बटोरीं राजेश प्रतापगढ़ी के हास्य व्यंग कटाक्ष ने सभी को गुदगुदाया।

"ये ज़मीं बदलेगी, आस्माँ बदलेगा, मुझे यक़ीं है एक दिन हिन्दोस्तान बदलेगा"

अंजनी अमोघ ने "भारती के मुख से निकली धार है हिन्दी, असीमित, अपरिमित, अनादि गुणागार है हिन्दी" पढ़कर काव्यमंच को ऊचाइयाँ बख्शी।श्र‌द्धेय पंडित राम सेवक त्रिपाठी जीने पंच तत्व से बने इस नश्वर संसार के बारे में कुछ यूँ पढ़ा "पंचतत्व से सृजित मनुज तन पाँच इन्द्रियाँ बस्ती हैं,पाँच तंत्र के चक्षु समाहित अदभुत लीला मन की"साहित्य के पुरोधा डॉ दयाराम मौर्य के गीत और ग़ज़ल "शीरीं ज़ुबान है हिन्दी, मेरे दिल की हर धड़कन मेरी सरताज है हिन्दी" सुनकर मन मस्तिष्क झूम उठा डॉ श्रद्धा सिंह की रचना "मेरी प्यारी हिन्दी ऐसे लगे भारतमाता के माथे की बिन्दी"भी हृदय स्पर्शी थी और हमारे आदरणीय श्रद्धेय ओम प्रकाश खण्डेलवाल की रचनाओं किसी के आँख के आँसू अगर तुम पोछ देते, तुम्हें संगम नहाने की ज़रूरत ही नहीं है ने कार्यक्रम को सफ़लता प्रदान की।

कार्यक्रम को लगातार चार घंटों तक अपनी आवाज़ के जादू से चलाने वाले संचालक श्याम शंकर शुक्ल श्याम जी के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने के समान है सफ़लतम संचालन के साथ हे उनकी रचना भी अद्वितीय रही "समय बोलता है करम बोलता है धरमवादियों का धरम बोलता है"कार्यक्रम की आयोजिका डॉ शाहिदा ने अपनी एक रचना "वो जिसके साये में सारी ज़िन्दगी गुज़ार दी हमने, उस मालिक के दर पे सर झुकाना कैसे छोड़ दें"

शेषनारायण दुबे राही, सुरेश नारायण दुबे व्योमआदि ने भी कविता पाठ किया इस अवसर पर आनन्दमोहन ओझा,डी पी सिंह,अमृत लाल त्रिपाठी,रामचन्द्र पाण्डे, शैलेन्द्र मिश्र,सिद्धार्थ श्रीवास्तव और विद्यालय परिवार के सभी अध्यापक अध्यापिकाएं उपस्थित रहे कार्यक्रम के अंत में डॉ शाहिदा चेयरपर्सन और बी के सोनी प्रधानाचार्य ने सभी कवियों को शाल पहनाकर और सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया। डॉ शाहिदा ने सभी कवियों और अतिथियों का आभार प्रकट किया।

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