Type Here to Get Search Results !

Bottom Ad

मनकापुर कृषि विज्ञान केंद्र में सेवारत कृषि प्रसार कार्मिक प्रशिक्षण संपन्न



गोंडा:आचार्य नरेंद्र कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर में सेवारत कृषि प्रसार अधिकारियों एवं कर्मचारियों का दो दिवसीय मोटे अनाजों की उत्पादन तकनीक विषयक प्रशिक्षण संपन्न हुआ । केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर पीके मिश्रा ने मोटे अनाजों की उपयोगिता की जानकारी देते हुए बताया कि मोटे अनाज हमारे स्वास्थ्य, पशुओं के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी है । उनकी खेती को बढ़ाने की आवश्यकता है । प्रशिक्षण समन्वयक डॉक्टर रामलखन सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक शस्य विज्ञान ने मोटे अनाजों कोदों सावां रागी ज्वार बाजरा उत्पादन तकनीक की जानकारी दी । उन्होंने बताया कि सावां की उन्नतशील प्रजातियों में टाइप 46, यूपीटी 8, आईपीएम 97, आईपीएम 100, आईपीएम 148, आईपीएम 151, रागी की प्रजातियां में चिलिका, भैरवी तथा वीएल 149, कोदों की प्रजातियां में जेके 2, जेके 6, जेके 62, एपीके 1 तथा जीपीवीके 3 आदि प्रमुख प्रजातियां हैं । मोटे अनाजों की बुवाई के लिए मध्य जून से मध्य जुलाई का समय उपयुक्त है । मोटे अनाजों में प्रोटीन, वसा, क्रूड फाइबर, कैल्सियम, मैग्नीशियम और आयरन की मात्रा गेहूं व चावल से अधिक है । रागी फसल में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है । इसका प्रयोग सुपर बेबी फूड बनाने में किया जाता है । डॉ. अजीत सिंह वत्स ने मोटे अनाजों में कीट एवं बीमारी की रोकथाम के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को अत्यंत उपयोगी बताया । मोटे अनाज की खेती से पूर्व ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई, बीज शोधन एवं बीज उपचार, खरपतवार प्रबंधन आदि बहुत महत्वपूर्ण है । ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से कीड़े बीमारियों एवं  खरपतवार के बीज तेज गर्मी से नष्ट हो जाते हैं । डॉक्टर मनोज कुमार सिंह उद्यान वैज्ञानिक ने मोटे अनाजों की खेती में कार्बनिक खादों के प्रयोग पर बल दिया । उन्होंने बताया कि मोटे अनाजों की खेती के लिए 5 से 10 टन सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद  का प्रयोग खेत की तैयारी करते समय प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए । डॉक्टर दिनेश कुमार पांडेय ने बताया कि मोटे अनाजों की खेती सीमित संसाधनों में की जा सकती है । यह फसलें वर्षा आधारित हैं । सामान्य वर्षा होने पर इन फसलों के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है तथा कम खाद एवं उर्वरक में इनकी खेती की जा सकती है । कीट एवं रोगों का प्रकोप भी इन फसलों में कम होता है । सेवारत कृषि प्रसार कार्मिक प्रशिक्षण में मुजेहना मनकापुर बभनजोत छपिया रुपईडीह कृषि उपसंभाग के रजनीश मिश्रा बीटीएम, रोहित कुमार सिंह बीटीएम, सुनील कुमार वर्मा प्राविधिक सहायक, मनोज कुमार पांडेय, विभोर मणि त्रिपाठी  राजेश जायसवाल आदि ने प्रतिभाग कर मोटे अनाजों की उत्पादन तकनीक की विधिवत जानकारी प्राप्त की । प्रशिक्षण उपरांत प्रशिक्षणार्थियों को कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित कृषि डायरी निशुल्क प्रदान की गई ।

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad



 




Below Post Ad

5/vgrid/खबरे