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सरकार द्वारा सरदार भगत सिंह को शहीद का दर्जा न मिलने के बावजूद हर भारतीय के मन मंदिर में बसे है : डा०विनोद त्रिपाठी



वेदव्यास त्रिपाठी 

प्रतापगढ़ :देश की सरकारें सरदार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं। राष्ट्रभक्त भगत सिंह का जन्म 27  सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था।यह विचार विशिष्ट बीटीसी शिक्षक संघ जिला अध्यक्ष डॉ० विनोद त्रिपाठी ने उच्च प्राथमिक विद्यालय, कांपा मधुपुर , बाबा बेलखरनाथ धाम में शहीद भगत सिंह की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किया। त्रिपाठी ने कहा कि भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे, दोनों ही करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे। इस मौके पर वरिष्ठ शिक्षक देवानन्द मिश्र, प्रभारी राजेन्द्र प्रताप सिंह, श्रीमती नीतू सिंह और संजीव दूबे ने श्रध्दांजलि अर्पित की।

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