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गोंडा:सरयू की बलखाती लहरों को देख भयभीत हो जाते हैं मांझा वासी, हर साल बाढ़ के पानी में धुल जाते हैं माझा वासियों के अरमान



बीपी त्रिपाठी 

गोण्डा। बरसात शुरू होते ही तहसील तरबगंज के मांझावासियों का सुख-चैन छिनने लगता है। बाढ़ यहां की प्रमुख समस्या है, जिससे प्रति वर्ष लोगों को करारा झटका लगता है। पूरे साल की गाढ़ी कमाई और खेती बरसात शुरू होने के साथ ही नेपाली पानी के दबाव की भेंट चढ़ जाती है। आलम यह है कि एक घाव का जख्म पूरा नहीं होता है कि दूसरी चोट लग जाती है।

     जिले के तरबगंज तहसील क्षेत्र के 92 राजस्व गांवों के तकरीबन डेढ़ सौ मजरे प्रति वर्ष बाढ़ की तबाही का शिकार होते हैं। इस आपत्ति में घर छोड़कर अलग डेरा डालना लोगों की नियति बन गई है। मांझा क्षेत्र के बाशिंदों का पूरा साल सरयू-घाघरा, टेढ़ी, जरही नदियों और नाले के किनारे अपना आशियाना बनाने और बिगड़ने में गुजर जाता है। कृषि और दुग्ध उत्पादन मांझा वासियों का प्रमुख व्यवसाय है, जो बाढ़ आने पर पूरी तरह से चरमरा उठता है। आधा जून माह तक या उसके बाद शुरू होने वाली मौसमी बारिश के बाद नदियों में उफान की स्थिति पैदा हो जाती है। यही स्थिति जब पड़ोसी राष्ट्र नेपाल पानी छोड़ता है तब पैदा होती है। नेपाल के पानी का कहर घाघरा की नदियों में बरपता है। फिर जल स्तर में बढ़ोतरी होने पर तरबगंज एरिया में पानी का दबाव बढ़ता है। यहां पश्चिम में एल्गिन चरसड़ी तटबंध से आगे पूरब की ओर भिखारीपुर सकरौर तटबंध के पास होने पर बाढ़ की स्थिति बन जाती है। यूं तो समूचे तहसील क्षेत्र के सैकड़ों मजरे बाढ़ का नुकसान झेलते हैं, लेकिन तीन दर्जन मजरों में बाढ़ का तांडव दिखाई पड़ता है। गंभीर रुप से पीड़ित ये गांव घाघरा-सरयू और टेढ़ी नदी की कछार में हैं। इनमें ऐली परसौली, सोनौली मोहम्मदपुर, दलेल नगर, केहरा, ठाकुर पुरवा, उमरी, बंधा, परास, बहादुरपुर, गभोरा, भानपुर, सरांव, बनगांव, साकीपुर, दत्तनगर, गोकुला, घांचा, रांगी, सेमरा शेखपुर, गोपसराय, चौखड़िया, महरमपुर, तुलसीपुर मांझा, विश्नोहरपुर, महंगूपुर, पटपरगंज, दुर्गागंज, जैतपुर, तुरकौली, महेशपुर, इस्माईलपुर, दुल्लापुर सहित अन्य कई गांव शामिल हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन बाढ़ प्रभावित गांवों में कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह का पैतृक गांव विश्नोहरपुर भी है। यही वजह है कि पिछले वर्ष बृजभूषण शरण सिंह ने बाढ़ को लेकर पहले की गयी तैयारी संबंधी बैठक पर जिला प्रशासन को आड़े हाथों लेते हुए न सिर्फ घेरा था बल्कि सिस्टम पर सवाल भी खड़े किए थे।



थोड़ी सावधानी, बचाव अधिक

बाढ़ की स्थिति में घर के आसपास पानी पहुंचते ही लोगों को घर खाली कर सुरक्षित ठिकानों की ओर चले जाना चाहिए। बाढ़ का प्रदूषित जल सेवन नहीं करना चाहिए। मकान की पुरानी दीवारों और लकड़ी के थामों के पास नहीं सोना चाहिए। अधिक जल सोखने वाली फसलें जैसे धान, गन्ना इत्यादि की बुवाई करें। मार्च से मई, जून के बीच मवेशियों के चारे का प्रबंध भूसा इत्यादि कर लें। घरों में छोटे बच्चों और महिलाओं को बाढ़ की स्थिति में गांवों में न रहने दें। ऊंचे तटबंधों के किनारे शरणालय के लिए आसपास के निवासियों से पूर्व में ही संपर्क स्थापित कर लें। किसी भी इमरजेंसी जैसे सांप, बिच्छू या अन्य विषैले जीव जन्तुओं से पीड़ित होने की दशा में तत्काल काटे हुए स्थान के 2 इंच ऊपर कपड़ा, रस्सी वगैरह बांधकर तत्काल अस्पताल भेजें। विषम परिस्थितियों में सरकार द्वारा अधिग्रहित परिसर जहां बाढ़ पीड़ितों के शरणालय हों, वहां रुकें। बाढ़ चौकियों पर तैनात कर्मचारियों के संपर्क में रहें।

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