उमेश तिवारी
महराजगंज: अदम्य साहस, शौर्य व वीरता के इतिहास में महराजगंज जनपद के फरेंदा तहसील क्षेत्र के सैनिक गांव उदितपुर का नाम अमिट है। यहां के युवाओं का सेना में जाकर देश के प्रति सेवा करना ही उनकी पहली प्राथमिकता होती है। आज भी पूर्व सैनिकों के सीने में देश की सेवा करने का जज्बा बरकरार है। इस गांव की मां लोरी नहीं देश भक्ति के गीत सुनाती हैं।
फरेंदा क्षेत्र के सैनिक गांव उदितपुर के करीब 37 युवा आज भी देश के सरहद की निगहबानी कर रहे हैं। सैनिक गांव के बुजुर्ग प्रथम विश्व युद्ध से लेकर भारत-चीन युद्ध, भारत-पाकिस्तान के साथ करगिल युद्ध में भी अपना लोहा मनवा चुके हैं। सैनिक गांव की आबादी करीब छह सौ हैं। गांव के करीब 35 सेवानिवृत्त सैनिक गांव के युवाओं को देश की सेवा करने के लिए प्रेरित करते हैं। गांव के युवा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही देश की सेवा करने की ललक आ जाती है।
उदितपुर सैनिक गांव करीब सौ वर्ष पहले पड़ोसी देश नेपाल के लम्जुंग व पालपा से गुरूंग व थापा परिवार के जमींदार पदम सिंह थापा, छविलाल गुरूंग, सूबेदार मेजर बुद्धिमान सिंह गुरूंग, शमशेर बहादुर आकर बसे थे। वर्तमान में यहां सौ परिवार से ज्यादा रहते हैं। गांव का हर युवा सेना में जाने के लिए लालायित रहता है। सूबेदार मेजर बुद्धिमान सिंह के बेटे सूबेदार रामसिंह गुरूंग 1939 में सेना में भर्ती हुए। राम सिंह गुरूंग द्वितीय विश्व युद्ध से यूनियन जैक के तले भारत की ओर से लड़ते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया था। उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा मेडल देकर सम्मानित किया गया था। उनकी मौत बहुत समय पहले हो चुकी है।
सेवानिवृत्त कैप्टन मान सिंह के अनुसार, भारत चीन युद्ध के दौरान चीनी सैनिकों के आगे भारतीय सेना कमजोर पड़ रही थी। उनके पास अत्याधुनिक हथियार थे। सीमित संसाधन में भी भारतीय सेना ने उनका जमकर मुकाबला किया था। 18 दिन की लड़ाई में काफी दुश्वारियां झेल कर जिंदगी बचाई थी। सूबेदार मेजर एसबी गुरूंग ने बताया कि 1966 में सेना में भर्ती होने के बाद भारत पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों को मुंहकी खानी पड़ी थी। भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए थे।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ