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बारिश कम होने से धान की फसल में लगा झुलसा रोग, समय से उपचार जरूरी ,डा• सौरभ वर्मा से जानिए उपचार के उपाय

 


सुहेल आलम

सुलतानपुर जनपद में खरीफ मौसम में सिंचित एवं निचले प्रक्षेत्रों जहा आश्वस्त सिंचाई की सुविधा है धान एक प्रमुख फसल के रूप में किसानों द्वारा पैदा किया जा रहा है। कम बारिश की वजह से जनपद में सर्वाधिक बोई जाने वाली धान की फसल में झुलसा रोग लगने लगा है। यदि समय से दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी। वहीं, कम बारिश की वजह से धान की पैदावार के प्रभावित होने के आसार हैं। कृषि विज्ञान केंद्र बरासिन के वरिश्ठ सस्य वैज्ञानिक डा0 सौरभ वर्मा ने बताया कि धान की फसल के लिए पानी बहुत जरूरी होता है। जुलाई और अगस्त माह बीतने के बाद भी बहुत कम बारिश हुई है। इसका असर धान की पैदावार पर दिखेगा। 

दूसरी ओर, धान की फसल में जीवाणु झुलसा रोग लगना शुरू हो गया है। इसका सर्वाधिक असर धान प्रजाति सांभा और बासमती पर है। इस रोग में पत्ती नोक की तरफ से सूखती है। इससे पूरी फसल पीली पड़कर सूख जाती है। जीवाणु के द्वारा होने वाला यह रोग मुख्यतः पत्तियों का रोग है। इस रोग का प्रकोप खेत में एक साथ न शुरू होकर कहीं - कहीं शुरू होता है तथा धीरे-धीरे चारों तरफ फैलता है। इसमें पत्ते ऊपर से सूखना शुरू होकर किनारों से नीचे की ओर सूखते हैं। इस रोग में सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग में हरे, पीले एवं भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। धीरे-धीरे यह धब्बे धारियों में बदल जाते हैं। रोग बढ़ने पर धारियों का रंग पीला या कत्थई हो जाता है। प्रभावित पत्तियां सूखने व मुरझाने लगती हैं। गंभीर हालात में फसल पूरी सूखी हुई पुआल की तरह नजर आती है। इस रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर रोपाई या बुवाई के 20 से 25 दिन बाद दिखाई देते हैं। रोगग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनमें कल्ले कम निकलते हैं। दाने पूरी तरह नहीं भरते व पैदावार कम हो जाती है। इस रोग के जीवाणु पौधों की जड़ों, बीज, पुआल आदि धान के अवशेष आदि के जरिये अगले मौसम तक चले जाते हैं।

वैज्ञानिक सलाह है कि यदि किसी खेत में झुलसा रोग का लक्षण दिखे, तो यूरिया का छिड़काव न करें। संक्रमण से बचने के लिए खेत में अच्छी जल निकासी की सुविधा सुनिश्चित करें। उचित मात्रा में पोटाश का प्रयोग करें। इससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रोग के लक्षण दिखने पर खेत से पानी निकाल दें। प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें। पोटाश के छिड़काव के 3-4 दिनों बाद तक खेत में पानी नहीं भरना चाहिए। धान के पौधों में यह रोग होने पर प्रति हे़. जमीन में 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन (स्ट्रेप्टोमिल गोल्ड/प्लांटोंमाइसिन) और 1250 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लू कॉपर/ब्लाइटोक्स) को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अथवा खड़ी फसल मे एग्रीमाइसीन-100 का 75 ग्राम और काँपर आक्सीक्लोराइड (ब्लाइटाक्स) का 500 ग्राम 600 से 700 लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। जैविक प्रबन्धन के तहत नीम तेल 03 प्रतिशत या नीम उत्पाद एन.एस.के.ई. 05 प्रतिशत की दर से संक्रमित प्रक्षेत्र पर छिड़काव करें। गाय के ताजे गोबर को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर तथा महीन कपड़े से छान कर 15 दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव करें।



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