चमनगंज पुल के निकट झुलनीपुर नहर के किनारे सिचाई विभाग की भूमि पर लगा बोर्ड
सीधे-साधे लोगों को चूना लगाकर किनारे हो गए खिलाड़ी, पीड़ितों ने समस्या बयां की तो पूरी कहानी पता चली
उमेश तिवारी
महराजगंज:जमीन के खिलाड़ियों ने तहसील में साठगांठ बनाकर सीलिंग की जमीन बेच दी। तहसील में अधिकारियों व कर्मचारियों से तालमेल बनाकर अपना काम कर बिचौलिए किनारे हो गए।
प्रशासन की लापरवाही और लोगों की अपनी चूक से उनकी गाढ़ी कमाई तो डूब ही गई, जमीन भी हाथ से जाने की नौबत आ गई है। ठगी का यह खेल दशकों से चल रहा है। पीड़ितों ने जब अपनी समस्या बयां की तो पूरी कहानी पता चली।
तमाम लोगों ने जब अपने अभिलेखों की जांच कराई तो उनकी जमीन भी सीलिंग की निकली। आनन फानन में कुछ लोगों ने एफआईआर दर्ज कराई तो कुछ अब भी रुपये वापस मिलने की आस में जमीन बेचने वालों और पुलिस-प्रशासन के चक्कर लगा रहे हैं। ठगी के अधिकतर मामले निचलौल व सदर तहसील के हैं। क्योंकि सीलिंग की जमीनें इसी तहसीलों में ज्यादा हैं।
बताया जा रहा है कि सीलिंग की जमीन के खिलाड़ियों की तहसीलों के अधिकारियों-कर्मचारियों के बीच अच्छी पैठ होती है। लंबे समय से जमीन बेचने वाले भोले-भाले लोगों को मूर्ख बनाते आ रहे हैं। इनकी पैठ का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि सीलिंग की कई जमीनों का बैनामे के बाद खतौनी पर नाम चढ़ने के बाद उन्होंने जमीन तीसरे को बेच दी।
मामला तब बिगड़ा, जब मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद जिला प्रशासन ने सीलिंग की जमीनों को लेकर सख्ती शुरू की। एक-एक गाटा सार्वजनिक हो जाने के बाद आम आदमी को भी जमीन की असलियत पता चल गई। जो फंस गए, वे केस दर्ज कराने के साथ ही जमीन बेचने वालों को पीछे चक्कर लगा रहे हैं।
सीएल-7 पंजिका को भी जांच लेना चाहिए
अधिवक्ता सतीश पांडेय ने बताया कि भूमि के बारे में जानने के लिए खतौनी बड़ा आधार होती है। भूमि खरीदते समय क्रेता को खतौनी का ठीक से अध्ययन करना चाहिए। यदि खतौनी में संक्रमणीय भूमिधर दर्ज है तो उस जमीन को खरीदा व बेचा जा सकता है।
हालांकि व्यवस्था में थोड़ा सुधार कर खतौनी में इसके साथ यह भी दर्ज हो जाए कि कितनी भूमि सीलिंग की है तो खरीदार सचेत हो जाता है। सीलिंग की जमीन का पता लगाने के लिए सीएल-7 पंजिका को भी जांच लेना चाहिए। सीलिंग के सभी गाटे, इस पंजिका में दर्ज किए जाते हैं।
सीलिंग की जमीन
जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद वर्ष 1961 में सीलिंग एक्ट लागू किया गया। कानून बनने के बाद एक परिवार को 15 एकड़ से ज्यादा सिंचित भूमि रखने का अधिकार नहीं है। असिंचित भूमि के मामले में यह रकबा 18 एकड़ तक है। इसे बेचा नहीं जा सकता। सिर्फ गरीबों को पट्टा किया जा सकता है।
प्रशासन के खुद के रिकार्ड दुरुस्त नहीं
सीलिंग की जमीन का पूरा ब्यौरा सीएल-7 पंजिका में दर्ज किया जाना चाहिए, मगर प्रशासन की यह सीलिंग पंजिका डेढ़ दशक से अधिक समय से अपडेट नहीं है।
यहां तक की सीलिंग की जमीन के जिन मामलों में आदेश हुआ है, राजस्व अधिकारियों, कर्मचारियों ने उन्हें भी इस पंजिका पर दर्ज नहीं किया है। लोगों का कहना है कि नामांतरण के समय गलत रिपोर्ट देने वालों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए।
जिले में 910 एकड़ भूमि सीलिंग
जिले में 910.774 एकड़ भूमि सीलिंग की है। सदर में 32, निचलौल में 19, फरेंदा में 10 और नौतनवां में आठ एकड़ बताया जाता है। इन जमीनों की पत्रावलियां न्यायालय में विचाराधीन हैं। सबसे ज्यादा मामले सदर तहसील के विचाराधीन बताए जा रहे हैं।
केस नंबर एक
निचलौल क्षेत्र के जमुई कला गांव में करीब एकड़ सीलिंग की भूमि को डेढ़ दशक पहले रामआसरे, आशुतोष, त्रिभुवन, उमाशंकर, बनवारी, दयालाल, हरिलाल, लंगड़, तिलकधारी, गोबरी, चंद्रजीत, राजेंद्र, रामलाल, रामदास सहित 27 पात्र लाभार्थियों में पट्टा हुआ था।
दबंगों के आगे बेबस पट्टाधारक उक्त भूमि पर काबिज नहीं हो सके। एक व्यक्ति ने न्यायालय में रिट दाखिल कर दिया। न्यायालय ने रिट को खारिज कर मामलें की सुनवाई करने के लिए कमिश्नर को आदेश दे दिया।
सुनवाई के दौरान 29 सितंबर 2021 को सीलिंग की भूमि का पट्टा करने का आदेश को बहाल करते हुए पट्टाधारकों को कब्जा दिलाने का आदेश जारी किया गया। फिर भी पट्टेधारकों को जमीन पर काबिज होने के लिए तमाम तरह की परेशानी झेलनी पड़ रही हैं। निचलौल के तहसीलदार वाचस्पति सिंह ने बताया कि मामला न्यायालय में था। आदेश के बाद पट्टेधारकों को जमीन पर कब्जा दिलाया जा चुका है।
केस नंबर दो
निचलौल क्षेत्र के मुसहर बस्ती बढ़या मुस्तकिल गांव में वर्ष 1995 में रकवा संख्या 409 में 10 एकड़ 40 डिस्मिल भूमि को नथुनी, रघुनाथ, झिनकू, करीमन, रुदल, खुब्बी, सूरुज, नारायन, बद्मू, रामलाल, सरल, झम्मन, लक्ष्मी, ठगिया समेत 22 लोगों के नाम से पट्टा हुआ था, लेकिन उक्त भूमि पर कुछ भू माफिया ने कब्जा कर लिया, जिसका मुकदमा नथुनी बनाम गंगा के नाम से कमिश्नर के वहां चल रहा है।
पट्टेधारक उक्त भूमि पर कई बार कब्जा करने का प्रयास किया, लेकिन दबंगों के आगे उनका कुछ नहीं चला। ऐसे में पट्टेधारक भूमि पर कब्जा के लिए ढाई दशक से चक्कर काट रहे हैं। तहसीलदार वाचस्पति सिंह ने बताया कि उक्त भूमि का मामला कमिश्नर के वहां चल रहा।
सिंचाई विभाग की जमीन पर ही कर लिया कब्जा
निचलौल क्षेत्र के चमनगंज पुल के पास झुलनीपुर नहर के किनारे सिंचाई विभाग की भूमि पर एक व्यक्ति लगातार कब्जा करने का प्रयास में जुटा रहता है। सिंचाई व राजस्व विभाग की ओर से उसके खिलाफ कई बार कार्रवाई की जा चुकी है। फिर भी वह सिंचाई विभाग की भूमि को कब्जा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता है।
सिंचाई विभाग खंड प्रथम के अधिशासी अभियंता बृजेश सोनी से मिली जानकारी के मुताबिक चमनगंज पुल के पास झुलनीपुर नहर के किनारे भूमि के गाटा संख्या 2885 में एक एकड़ 98 डिस्मिल भूमि सिंचाई विभाग के नाम से है। उस भूमि पर एक व्यक्ति साजिश के तहत कब्जा करने का प्रयास करता है। भूमि पर लगे सिंचाई विभाग के बोर्ड को उखाड़ देता है।
इस संबंध में अपर पुलिस अधीक्षक आतिश कुमार सिंह का कहना है कि भूमि विवाद से जुड़े मामले प्रत्येक दिन आते हैं। उनका निस्तारण राजस्व विभाग से समन्वय बनाकर किया जाता है। जमीन से जुड़े विवादों में जरूरत के अनुसार केस दर्ज होता है। पीड़ितों की समस्याओं का समाधान प्राथमिकता के आधार पर किया जा रहा है।
जिलाधिकारी सत्येन्द्र कुमार ने बताया कि जिले में 250 भू माफियाओं पर कार्रवाई की जा चुकी है। गांव स्तर पर टीम बनाकर भू माफियाओं को चिह्नित किया जाता है।
सीलिंग के वही मामले में लंबित हैं, जो न्यायालय में विचाराधीन है। फैसला होने के बाद जमीन को गांव के पात्र लोगों में पट्टा कर दिया जाता है।
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