वेदव्यास त्रिपाठी
प्रतापगढ़ भारतीय जनता पार्टी द्वारा लीला पैलेस, मीरा भवन में लोकतंत्र और राजनीति के सबसे दुखद और काले अध्याय को आपातकाल के समय अपने जीवन को परवाह ना करते उस तानाशाही का विरोध करने वाले लोकतंत्र रक्षक सेनानियों का सम्मान करके मनाया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए जिला अध्यक्ष हरिओम मिश्र ने बताया कि आपातकाल के समय 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई।
इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। मुख्य अतिथि जिला प्रभारी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित कर दिया गया क्योंकि माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करने की सम्भावना रखता था। पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया।
आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया।सांसद संगमलाल गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।सदर विधायक राजेन्द्र कुमार मौर्य ने बताया कि मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था।
लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
इसके बाद आपातकाल की घोषणा हुई।नगर पालिका अध्यक्ष हरी प्रताप सिंह ने प्रकाश डालते हुए बताया सभी विपक्षी दलों के नेताओं और सरकार के अन्य स्पष्ट आलोचकों के गिरफ्तार किये जाने और सलाखों के पीछे भेज दिये जाने के बाद पूरा भारत सदमे की स्थिति में था।आपातकाल की घोषणा के कुछ ही समय बाद, सिख नेतृत्व ने अमृतसर में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने "कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति" का विरोध करने का संकल्प किया।
पूर्व जिलाध्यक्ष ओम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि (1977–1979) आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।लोकतंत्र रक्षक सेनानी राम सेवक त्रिपाठी ने अपने यातनाओं के समय को याद करते हुए बताया कि आपातकाल लागू होने के बाद हमको पुलिस घर से उठा ले गई और झूठे मुकदमों में फसा कर जेल भेज दिया।
लोकतंत्र रक्षक सेनानी सी बी सिंह ने बताया कि हम जिस हाल में थे उसी हाल में हमको पुलिस उठा ले गई, ना हमारी कोई बात सुनी और न ही हमारा गुनाह बताया बस हम को जेल में डाल दिया।
संगोष्ठी समापन करते हुए शिव प्रकाश मिश्र सेनानी ने कहा कि आपातकाल के समय जिन विपक्षी दलों पर कांग्रेस ने बैन कर दिया था आज वो विपक्षी दल कांग्रेस की गोद में बैठ कर लोकतंत्र का पाठ पढ़ा रहे हैं।संचालन जिला प्रवक्ता राघवेंद्र शुक्ल ने किया।
इस अवसर पर प्रमुख रूप से लोकतंत्र रक्षक सेनानी अध्यक्ष विजय पाल सिंह, नंद लाल चौरसिया, प्रेमचंद्र जायसवाल, कमलेश शर्मा, शिव प्रसाद, ओम प्रकाश पांडेय, पूर्वजिलाध्यक्ष ओम प्रकाश त्रिपाठी,जिला महामंत्री राजेश सिंह, पवन गौतम, रामजी मिश्र,अंशुमान सिंह, विजय मिश्र आदि लोग उपस्थित रहे।कार्यक्रम संयोजक जिला सह मीडिया प्रभारी देवेश त्रिपाठी रहे।
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