उमेश तिवारी
काठमांडू / नेपाल: राजशाही के दौर में नेपाल में 'मुखै भंद कानून छ' (मुंह से जो निकल गया, वही कानून बन गया ) हम सुना करते थे। आज का नेपाल 'ट्वीटे कानून छ' की चपेट में है । काठमांडू के मेयर हैं, बालेंद्र शाह ।
ट्वीट के जरिये उन्होंने हिंदी फिल्मों पर पाबंदी लगा दी । पोखरा और नेपाल के कुछ अन्य शहरों में भी ऐसा हुआ। अपने ट्वीट में आदिपुरुष के निर्माताओं को चेतावनी देते हुए शाह ने लिखा, 'तीन दिन का समय देता हूं। आप इस तथ्य को बदलिए कि सीता भारत की बेटी थी।
नहीं बदल सके, तो आपकी फिल्म चलने नहीं देंगे। जय नेपाल-जय सीता मइया ।'
रविवार को इस संदेश को री-ट्वीट किया गया, और सोमवार को फेसबुक- ट्विटर के जरिये नेपाली संविधान के अनुच्छेद 5 और 56 (6) के हवाले से घोषणा कर दी गई कि आज से आदि पुरुष समेत सभी हिंदी फिल्मों की स्क्रीनिंग बंद |
इस तरह का विरोध सुनने के लिए काठमांडू में भारतीय दूतावास है। नेपाल का सूचना प्रसारण मंत्रालय और वहां का परराष्ट्र मंत्रालय है, जिनके माध्यम से काठमांडू के मेयर अपना प्रतिरोध व्यक्त कर सकते थे।
मगर, एक निर्वाचित प्रतिनिधि वैसा ही कर रहा है, जैसे सोशल मीडिया पर कुछ दबंग ऐसा आचरण करते हैं। मेयर शाह सीता की बात तो करते हैं, पर कूटनीतिक शिष्टाचार की लक्ष्मण रेखा लांघ जाते हैं। उन्हें चिंता सीता के जन्म को लेकर है कि उन्हें भारतीय कैसे माना गया, पर सीता यदि सुगौली संधि के बाद नेपाल में पैदा हुई होती, तो बालेंद्र शाह के कथन पर विचार किया जा सकता था।
सुगौली संधि पर 2 दिसंबर, 1815 को हस्ताक्षर किए गए और 4 मार्च, 1816 को इसका अनुमोदन किया गया था। उससे पहले जनकपुर, जहां सीता के जन्म का दावा बालेंद्र जैसे नेता करते हैं, वह भारत का ही हिस्सा हुआ करता था।
वैसे, विवाद सीता के जन्म को लेकर भी है। जनकपुर धाम में राजा जनक के महल का भग्नावशेष नहीं दिखता। ऐसा कोई पुरातात्विक अभिलेख, मंदिर नजर नहीं आता, जिसे आप हजार-दो हजार साल प्राचीन कह सकें।
18 नवंबर, 2019 को काठमांडू पोस्ट ने एक खबर छापी, वन्स अपॉन अ टाइम इन जनकपुर । इस खबर में बताया गया कि टीकमगढ़ की रानी वृषभानु ने 1910 में यहां मुगल और कोइरी वास्तुकला पर आधारित जानकी मंदिर बनवाया था।
यही जनकपुर का मुख्य देवालय, या यूं कह लीजिए, सबसे प्राचीन मंदिर है। ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच सुगौली संधि उसके पांच वर्ष बाद हुई, जिसमें यह इलाका नेपाल के हिस्से आ गया।
एक कथा यह भी है, हलकर्षण यज्ञ के परिणाम स्वरूप भूमि सुता सीता अवतरित हुईं, पर तभी मूसलाधार वर्षा आरंभ हो गई। तत्काल उस स्थान पर एक मड़ई सीता जी के लिए तैयार की गई।
कहा जाता है कि मड़ई की वजह से उस जगह को लोगों ने 'सीता मड़ई' कहना आरंभ किया, जो कालांतर में 'सीतामही' या सीतामढ़ी के रूप में मान्य हुआ, और सीतामढ़ी आज बिहार में है। केवल जनश्रुति है, तो बस आस्था को छेड़िए नहीं ।
सीता नेपाल के जनकपुर में में जन्मी इस पर अविश्वास करना उतना ही जोखिम भरा है, जितना सीतामढ़ी में उनके जन्मस्थल को नकारना । 13 जुलाई, 1814 को तनहूं में जन्मे नेपाल के आदि कवि भानु भक्त आचार्य ने भी, जिन्होंने रामायण की रचना की थी, 'माया सीता' की परिकल्पना करते हुए लिखा कि सीता मिथिला नरेश जनक की पुत्री थीं।
भानु भक्त आचार्य रचित रामायण में यह ढूंढना कठिन है कि सीता का जन्म किस स्थल विशेष पर हुआ था। नेपाल को अपने प्राचीन ग्रंथों की पड़ताल करनी चाहिए। बात यह है कि काठमांडू के मेयर को सीता के नाम पर राजनीति करने की जरूरत क्यों पड़ गई? कर्नाटक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके बालेंद्र शाह राजनेता बनने से पहले अच्छे गायक के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे।
मई 2022 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी के मेयर चुने गए। काठमांडू प्रतिक्रियावादी राजनीति का गढ़ रहा है, इसलिए अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि किस राजनीतिक लक्ष्य के तहत वह भारत विरोधी कार्ड खेल रहे हैं।
बहरहाल, हम इतिहास तो बदल नहीं सकते, पर नेता को अखंड भारत में सीता का जन्म हुआ था, इसे तो मानना ही होगा।
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