Type Here to Get Search Results !

Bottom Ad

13वीं पुण्यतिथि पर कुश्ती गुरु चन्दगीराम जी को दी श्रद्धांजलि



पं श्याम त्रिपाठी (नवाबगंज)

नई दिल्ली । गुरुवार यमुना किनारे, सिविल लाइन चन्दगीराम अखाड़े के कार्यालय पर देश के विख्यात पहलवान रहे पद्मश्री मास्टर चन्दगीराम जी की 13वीं पुण्यतिथि पर सामूहिक प्रार्थना, श्रद्धांजलि सभा, हवन-पूजन के साथ ही एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया । श्रद्धांजलि सभा व गोष्ठी की अध्यक्षता अर्जुन पुरस्कार विजेता रिटायर आईपीएस हरियाणा पुलिस श्री जगरूप सिंह राठी ने की । सर्वप्रथम गुरूजी के अर्जुन अवार्डी पूर्व पहलवान जगरूप सिंह राठी ने स्वर्गीय चन्दगीराम जी के चित्र पर माल्यार्पण करके अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये । इस दौरान वहीं देश के विभिन्न भागों से आए उस्ताद खलीफा और पहलवानों ने चन्दगीराम जी को श्रद्धासुमन अर्पित किया जहाँ पर चन्दगीराम जी की धर्मपत्नी श्रीमती माता फूलवती मौजूद थी । भारत केसरी पहलवान जगदीश कालीरमण पुलिस विभाग से छुट्टी नहीं मिलने के कारण उपस्थित नहीं हो सके । गुरुजी के छोटे पुत्र ओम कालीरमण माता श्रीमती उर्मिला कालीरमन के साथ पोती चिराक्षी कालीरमण, दामाद श्री सुशील चौधरी वह श्रीमती लक्ष्मी चौधरी भी कार्यक्रम में मौजूद थे | श्रद्धासुमन अर्पण और हवन पूजा समारोह के बाद भंडारा भी आयोजित किया गया ।


गोष्ठी को संबोधित करते हुए गुरु जी के परम शिष्य अर्जुन पुरस्कार विजेता जगरूप सिंह राठी ने कहा कि चंदगीराम गुरुजी भारत के प्रसिद्ध पहलवान थे उन्होंने कहा हरियाणा के जिला हिसार के सिसाई गांव में 9 नवम्बर 1937 में जन्मे चंदगीराम शुरू में कुछ समय के लिए भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में सिपाही रहे और बाद में स्कूल टीचर होने के कारण उनको 'मास्टर चंदगीराम' भी कहा जाने लगा था। सत्तर के दशक के सर्वश्रेष्ठ पहलवान मास्टर जी को 1969 में अर्जुन पुरस्कार और 1971 में पदमश्री अवार्ड से नवाजा गया ।


गुरु जी के शिष्य रहे भारतीय खेल प्राधिकरण के पूर्व कोच सहदेव सिंह बाल्यान ने उनके जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किए है, गुरूजी के हाथ की पकड़ बहुत मजबूत दुनिया का कोई थी प्रतिद्वंद्वी पहलवान उनकी पकड में आ जाता था, तो उसे वह चीं बुलाकर ही दम लेते थे । उन्होंने कहा बीस साल की उम्र के बाद कुश्ती में हाथ आजमाना शुरू करने वाले मास्टर जी ने 1961 में राष्ट्रीय चैम्पियन बनने के बाद से देश का ऐसा कोई कुश्ती का खिताब नहीं रहा जो उन्होंने नहीं जीता हो । इसमें राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के अलावा हिंद केसरी, भारत केसरी, भारत भीम और रूस्तम-ए-हिंद आदि भी खिताब शामिल हैं । ईरान के विश्व चैम्पियन अबुफजी को हराकर बैंकाक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतना उनका सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन माना जाता है । उन्होंने 1972 म्युनिख ओलम्पिक में देश का नेतृत्व किया और दो फिल्मों 'वीर घटोत्कच' और 'टारजन' में काम किया व साथ ही कुश्ती खेल पर पुस्तकें भी लिखी ।


इस अवसर पर जगरूप सिंह राठी (अर्जुन अवार्डी), ज्ञान सहरावत (ध्यानचंद अवार्डी), ओमवीर सिंह, राजकुमार यादव (नो शेरवा), सुमेर पहलवान, श्री साहिल सर्राफ जी (शिव जेम्स प्रा. लि.), आर्यन खत्री बहादुरगड, सुरेन्द्र कालीरमण एडवोकेट, अजय कटारा समाजसेवी गाजियाबाद, सतपाल चौधरी जी मुराद नगर, भूप सिंह सुल्तानपुर डबास, कोच सहदेव बाल्यान, कोच देवेन्द्र सहरावत, खलीफा लेखराम, वेद पहलवान (प्रताप स्कूल खरखोदा के संचालक), देवव्रत चौधरी कुश्ती कोच, गोपाल ठाकुर पहलवान, मूलचंद पहलवान, विजय पहलवान कोच लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी पंजाब, कबरु पहलवान सेवली, रतन पहलवान, संतोष चौधरी, जयवीर कालीरमन, कुश्ती रेफरी जगबीर सिंह, रेफरी बिजेंद्र दहिया समेत भारी मात्रा में गुरूजी के शिष्यों ने आकर अपने गुरु को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए याद किया |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad



 




Below Post Ad

5/vgrid/खबरे