दिनेश कुमार
गोण्डा ।श्रीमद् भागवत कथा सुनने से जन्म- जन्मांतर के विकार नष्ट हो जाते हैं।कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है।
सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा सुनने सेजाग्रत हो जाता है । यह बाते मनकापुर के रेताशा गांव में आयोजित भावगत कथा को सुनाते हुए कथा वाचक पंडित शेषराम शुक्ल ने कही।
कथा के मुख्य यजमान रामचन्द्र द्विवेदी व उनकी धर्म पत्नी विद्यादेवी रही। कथा में बाल रूप सबरी भगवान के दर्शन के लिए व्याकुल थी। मात्र पांच वर्ष की आयु में घर से निकल पडी।
मंतग ऋषि ने छोटी बालिका को देखा और अपने आश्रम पर लेकर चले गये। वही अन्य संत भी रहते थे।किसी ने उन्हें बताया कि मंतंग ऋषि के आश्रम में एक छोटी सी बालिका है जो भगवान से अगाध प्रेम करती है।
मंतग ऋषिके आश्रम में रह रहे अन्य लोग यह कहते कि यह बालिका यहां कैसे रह रही है। कथा वाचक ने इस बारे में बताते हुए कहा कि जन्म जन्मांतर भगवान राम के आने का इंतजार भील जाति की सबरी कर रही थी।
वही बडे बडे साधु संत उनसे घृणा करते थे। जब संत सरोबर में स्नान करके लौट आते थे तब वह चुपके से उस सरोबर पर जाती और स्नान करती और फिर चुपके से आकर झाड में छुप जाती थी।
संतों की कुटिया के पास एक झाडी में सबरी रहती थी। जब संत सो जाते तो चुपके से उस रास्ते की साफ सफाई करती थी और इंतजार करती थी कि भगवान इसी रास्ते से आयेगे।
अंत में भगवान आये और सबरी को दर्शन दिये। उनके तोडे हुए बेर को खाये। इस प्रकार अगाध प्रेम से ईश्वर की प्राप्ति हुई। कहने का आशय धन से भगवान को नहीं खरीदा जा सकता है बल्कि प्रेम से उनके दर्शन होते हैं।
इस मौके विजय कुमार द्विवेदी,पवन कुमार दूबे, आलोक पान्डेय,इंजीनियर अनिल कुमार द्विवेदी,घन श्याम दूबे,जगदम्बिका प्रसाद दूबे ,रंजीत वर्मा,नन्हकू वर्मा , भोलानाथ मिश्र सहित भारी संख्या में लोग मौजूद रहे।
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