पं बागीस तिवारी
गोण्डा:आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर गोंडा द्वारा मिशन लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट के अंतर्गत भूमि स्वास्थ्य सम्बन्धी दो दिवसीय प्रशिक्षण संपन्न हुआ ।
केंद्र के प्रभारी अधिकारी डॉ. पीके मिश्रा ने भूमि स्वास्थ्य प्रबंधन हेतु प्राकृतिक एवं जैविक खेती अपनाने को अति आवश्यक बताया । उन्होंने बताया कि प्राकृतिक एवं जैविक खेती में रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है ।
इससे भूमि का स्वास्थ्य, मानव का स्वास्थ्य, पशु का स्वास्थ्य तथा पर्यावरण सुरक्षित रहता है । प्राकृतिक खेती में जीवामृत, घनजीवामृत, दशपर्णी अर्क, ब्रह्मास्त्र, अग्नियास्त्र आदि का प्रयोग किया जाता है ।
इनके प्रयोग से फसल की पैदावार अच्छी होगी,साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित होगा । डॉ. रामलखन सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक शस्य विज्ञान ने प्राकृतिक खेती के अंतर्गत देशी गाय का महत्व, जीवामृत, घन जीवामृत, बीजामृत, दशपर्णी अर्क, नीमास्त्र आदि के बनाने एवं प्रयोग करने की विधि के बारे में जानकारी दी ।
उन्होंने बताया कि जीवामृत बनाने के लिए 10 किलोग्राम गाय का गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलोग्राम दाल का बेसन, 2 किलोग्राम गुड़ तथा 100 ग्राम जीवाणुयुक्त मिट्टी को 200 लीटर वाले पानी के ड्रम में पानी के साथ घोल बनाकर रखते हैं ।
इस घोल को सुबह व शाम लकड़ी के डन्डे की सहायता से 2 से 3 मिनट तक घड़ी की सुई की दिशा में घुमाया जाता है । 48 घंटे में जीवामृत घोल प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है ।
इस तरह 200 लीटर तैयार घोल को प्रति एकड़ की दर से खेत में प्रयोग किया जाता है । एक माह की फसल होने पर 100 लीटर पानी में 5 लीटर जीवामृत, 51 दिन की फसल होने पर 150 लीटर पानी में 10 लीटर जीवामृत तथा 71 दिन की फसल होने पर 200 लीटर पानी में 20 लीटर जीवामृत के घोल का छिड़काव किया जाता है ।
डॉ मनोज कुमार सिंह उद्यान वैज्ञानिक ने हरी खाद उत्पादन तकनीक की जानकारी दी उन्होंने बताया की ढैंचा,सनई आदि की हरी खाद से भूमि में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है । भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है । ढैंचा फसल की हरी खाद से 84 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है ।
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