पं बागीस तिवारी
गोण्डा:धान की फसल अत्यंत महत्वपूर्ण है । इसका क्षेत्रफल खरीफ में बोई जाने वाली अन्य फसलों की अपेक्षा काफी अधिक है । खरीफ में धान की फसल का क्षेत्रफल जनपद गोन्डा में 1.30 लाख हेक्टेयर जबकि उत्तर प्रदेश में 59.70 लाख हेक्टेयर है ।
धान की रोपाई के समय प्रायः श्रमिकों का अभाव रहता है । इसके कारण धान की रोपाई में विलंब होता है । धान की रोपाई का कार्य खर्चीला भी है । धान की सीधी बुवाई कम समय एवं कम लागत में की जाती है, साथ ही भरपूर उत्पादन मिलता है । डॉ. रेड्डीज फाउंडेशन द्वारा जनपद में धान की सीधी बुवाई का कार्य किया जा रहा है ।
फाउंडेशन द्वारा विकासखंड मनकापुर के 45 गांवों के कुल 450 एकड़ क्षेत्रफल में धान की सीधी बुवाई का लक्ष्य निर्धारित है । अब तक प्रगतिशील कृषकों सूर्यनारायण उपाध्याय ग्राम बंदरहा, आशीष पांडेय ग्राम दलपतपुर, रामबरन तामापार सहित विकासखंड मनकापुर के कुल 24 एकड़ क्षेत्रफल में धान की सीधी बुवाई मल्टीक्राप सीडर से कराई जा चुकी है ।
धान की सीधी बुवाई में कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर गोंडा द्वारा तकनीकी सहयोग प्रदान किया जा रहा है । आज दिनांक 30 मई 2023 को कृषि विज्ञान केंद्र एवं डॉ. रेड्डीज फाउंडेशन की देखरेख में सूर्यनारायण उपाध्याय ग्राम बंदरहा विकासखंड मनकापुर गोंडा के प्रक्षेत्र पर धान की सीधी बुवाई मल्टीक्राप सीडर के द्वारा कराई गई ।
धान की सीधी बुवाई कम लागत में आसानी से की जा सकती है । मल्टीक्राप सीडर से मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि की बुवाई का कार्य आसानी से किया जा सकता है । धान की सीधी बुवाई में प्रति हेक्टेयर लगभग रुपया 8000 की बचत होती है । धान की सीधी बुवाई में लेव लगाने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे सिंचाई जल की भारी बचत होती है ।
धान की सीधी बुवाई पर्यावरण के अनुकूल है । इसे किसानों के द्वारा अपनाए जाने की नितान्त आवश्यकता है । डॉ. रामलखन सिंह वरिष्ठ वैज्ञानिक शस्य विज्ञान कृषि विज्ञान केंद्र ने धान की सीधी बुवाई को किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी बताया । उन्होंने बताया कि धान की सीधी बुवाई मई के अंतिम सप्ताह एवं जून के प्रथम सप्ताह में किया जाना सर्वोत्तम है ।
धान की सीधी बुवाई में बुवाई करते समय डीएपी नामक फास्फेटिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है । डीएपी उर्वरक को बीज के नीचे गहराई में दिया जाता है । बीज का जमाव होने पर फसल को फास्फेटिक उर्वरक की आपूर्ति हो जाती है । धान की रोपाई में यूरिया एवं फास्फेटिक उर्वरकों का प्रयोग लेव लगाते समय किया जाता है । इससे उर्वरकों का काफी हिस्सा लीचिंग आदि द्वारा नष्ट हो जाता है ।
एसपी मिश्रा डा.रेड्डीज फाउंडेशन ने बताया कि धान की सीधी बुवाई के तुरंत बाद पेन्थिडीमेथलीन 30 ईसी की 3.30 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपतवारों का जमाव नहीं होता है । धान की बुवाई के 3 सप्ताह बाद पेनोक्सुलम 1.02 प्रतिशत तथा साइहेलोफाप 5.1 प्रतिशत का छिड़काव ऑलमिक्स के साथ मिलाकर किया जाता है ।
इससे जमे हुए खरपतवार नष्ट हो जाते हैं । प्रदेश में धान की खेती 59.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है । अधिकांश क्षेत्रफल में धान की रोपाई की जाती है । रोपाई के स्थान पर यदि धान की सीधी बुवाई की जाए तो करोड़ों रुपए बचाया जा सकता है ।
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