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प्रतापगढ़ के प्रताप : जयसिंहगढ के राजा जयसिंह देव ने मडियाहूं की लड़ाई में राजा सुरियावां को किया था पराजित

 


गही बहोरि गरीब निवाजू, सरल सबल साहब रघुराजू...........!             

 वेदव्यास त्रिपाठी 

प्रतापगढ़ ( अवध) ! दिल्ली एवं आमेर के महाराज पृथ्वीराज चौहान की वीरगति के बाद चौहान वंश के राजपूत देशभर में इधर-उधर फैल गए ! 12 वीं शताब्दी में चौहान वंश के बरियार शाह पहले रामगंज (सुल्तानपुर) रियासत, उसके बाद जलालपुर- बेलखर के राजा रामदेव की सेना में नौकरी की और कालांतर में कहा जाता है कि उन्होंने बेलखरिया राजा रामदेव की जलालपुर बेलखर रियासत पर कब्जा कर लिया और राजा की लड़की से विवाह करके बजगोत्री क्षत्रिय वंश की स्थापना की! राजा बरियार शाह  मृत्यु के पश्चात छोटे पुत्र राज सिंह और उनके बाद चक्रसेन सिंह ने बत्स गोत्री राजवंश का विस्तार किया! तालुकेदार नाहर सिंह से पांचवी पीढ़ी में हिरदा सिंह और उनके बाद वरासत में बडे़ पुत्र जयसिंह राय को पट्टी सैफाबाद तालुका प्राप्त हुआ था! 

             


 मुगल शासक अकबर के शासनकाल में लिखित पुस्तक आईने अकबरी में वर्णन मिलता है कि पट्टी परगना की जलालपुर बेलखर रियासत पर बछगोत्री का शासन काबिज है जिसमें 76,517 एकड़ कृषि भूमि पर बेलखर शासन था, जिसकी माल गुजारी 39,13,070 ₹ दाम थी!साथ ही बछ गोत्री शाही सेना को 400 घोड़े और 5000 पदाति ( पैदल सेना) शाही सेवा के लिए देते थे!  परताबगढ किला के राजा जयसिंह देव ने मडियाहूं (जौनपुर) के भीषण युद्ध में राजा सुरियावां को पराजित करके भदोही और मडियाहूं परगना छीन लिया था! जिससे रियासत की सीमायें काशी राज से जुड गयी थी! मुगल शासक औरंगजेब के देहांत के बाद अवध क्षेत्र के परताबगढ में क्षत्रियों ने स्वतंत्रता पूर्वक अपनी शक्ति में वृद्धि की और नयी रियासते गठित की! 


सन् 1754 में अवध के नबाब सफदरजंग ने अवध और इलाहाबाद दोनों ही सूबों की सूबेदारी संभाली थी! परताबगढ के राजा पृथ्वी पति सिंह की गोतनी में धोखे से हत्या कर दी गयी, जिसके बाद किला परताबगढ नबाबी शासन के कब्जे में आ गया जो 1754 से 1857 तक उस पर काबिज रहे! अवध के नबाब आसफुद्दौला के शासन में 1774 में परताबगढ चकला का गठन हुआ! जिसमें पट्टी परगना के जलालपुर बेलखर, अधारगंज- दिलीपपुर, परताबगढ किला और अमेठी रियासत के गाँव एवं परगने शामिल किये गये थे! मालगुजारी न जमा करने के विवाद में चकलेदार राजा हुलासराय ने सन् 1796 में पट्टी - सैफाबाद के तालुकेदार जबर सिंह से युद्ध किया और उनको उनकी कोट जयसिंह गढ में पराजित कर दिया।


पट्टी तहसील क्षेत्र के अपने पैतृक ग्राम डड़वा महोखरी से जलालपुर, चन्दुआ पट्टी, लौवार मार्ग से बिबियाकरनपुर (दीवानगंज) होकर परताबगढ आते समय सहसा ग्राम जयसिंह गढ में पुरातन शिवाला महाकालेश्वर महादेव मंदिर, पुरुषोत्तम पुर पर निगाह पडी़ तो श्रध्दा वश होकर बाइक उधर ही घूम गयी! शिवाला पर पहुंचने पर साधु गरीबदास जी के दर्शन हुए! बाबा ने काफी कुरेदने पर जयसिंह गढ कोट की लगभग 300 साल पुरानी किवदंतियों की जानकारी दी! 


आधा दर्जन बत्तखों के स्वतंत्र विचरण से शिवाला परिसर बहुत ही मनोहारी बना है, जिसमें पुरातन तालाब, मंदिर, यात्री शाला और बाबा की पूस की कुटिया है! मंदिरों में महादेव मंदिर, चित्रगुप्त, दुर्गा और गायत्री मंदिर स्थापित है! " 


शोधकर्ता : डा०विनोद त्रिपाठी, बाबा बेलखरनाथ धाम, प्रतापगढ़

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