मोहम्मद सुलेमान/ राकेश कुमार सिंह
गोंडा।देवरिया कलां खरगुपुर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथा वाचक महराज हरीश शास्त्री ने धुंधकारी की पौराणिक कथा और श्रीमद् भागवत सुनने की महिमा बताई। तुंगभद्रा नदी के तट पर रहने वाले आत्मदेव नाम के ब्राह्मण को कोई सन्तान नहीं थी, जिसको लेकर वो बड़ा दुखी रहा करते था।
उन्होंने अपनी ब्यथा एक महात्मा को बताई तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए एक फल देकर पत्नी धुंधली को सेवन कराने को कहा किन्तु पत्नी ने वो फल स्वयं न खा कर गाय को खिला दिया था। कुछ समय बाद उस गाय ने मनुष्य के रूप में बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम गोकर्ण रखा गया। संतान सुख से वंचित देख धुंधली को उसकी बहन ने अपना पुत्र दे दिया था, जिसका नाम धुंधकारी रखा गया।
दोनों पुत्रों में गोकर्ण तो ज्ञानी पण्डित हुआ लेकिन धुंधकारी महादुष्ट और पापी निकला। उसने पिता की सम्पत्ति नष्ट कर दी, जिससे दुःखी होकर पिता आत्मदेव घर छोड़ जंगल में रहकर प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे। उन्होंने धार्मिक कथाएं सुननी शुरू कर दीं।
पत्नी धुंधली घर ही रहती थीं। धुंधकारी अपनी मां को मारता-पीटता और पूछता की धन कहां छिपा रखा है, जिससे तंग आ कर मां धुंधली कुएं में कूद गई। कुछ समय बाद धुंधकारी की भी मौत हो गई और अपने बुरे कर्मों की वजह से प्रेत बन गया।
कथा सुनने पहुंच रहे सैकड़ों की संख्या में भक्त
उसके भाई गोकर्ण ने धुंधकारी का पिंडदान और श्राद्ध गया जी में कराया ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके। उसके बाद भी धुंधकारी को मुक्ति नहीं मिली। गोकर्ण ने अपने भाई की मुक्ति के लिए सूर्य देव की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न हो कर सूर्य देव दर्शन देकर कारण पूछा तो उन्होंने बताया की धुंधकारी की मुक्ति के लिए श्रीमद् भागवत कथा से ही मुक्ति मिलेगी।
चल रही कथा सुनने के लिए क्षेत्रीय लोगों की उपस्थिति रही। कथा शाम सात बजे से शुरू हुई और रात्रि 11 बजे धूप आरती और प्रसाद वितरण के बाद समापन किया गया। मुख्य यजमान के रूप श्री मती रानी देवी व पुत्र दीनदयाल मिश्रा सह पत्नी सहित और सैकड़ों की संख्या में अनुयायी मौजूद रहे।
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