इस रात मे इबादत करें मुसलमान बरकत वाली रात है यह ...हाफिज मोहम्मद रईस गोंडवी
मोहम्मद सुलेमान
गोंडा! इस साल 7 मार्च दिन मंगलवार 2023 को है सातवीं और आठवीं रात इबादत की रात है हाफिज मोहम्मद रईस शब-ए-बारात इस्लाम में क्यों कहा जाता है इबादत की रात?
इस रात को इबादत की रात कहा जाता है और जो भी मांगो वह पूरा होता है
शब-ए-बारात मुस्लिम समुदाय के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह इबादत की रात होती है। इस साल देश भर में शब-ए-बारात का त्योहार 7 मार्च को मनाया जाएगा।
इबादत की रात शब-ए-बारात, जानिए कब और कैसे मनाया जाता है
शब-ए-बारात मुस्लिम समुदाय के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह इबादत की रात होती है। इस साल देश भर में शब-ए-बारात का त्योहार 7 मार्च को मनाया जाएगा। यह त्योहार चांद के दिखने पर निर्भर होता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार शब-ए-बारात शाबान महीने की 15वीं तारीख की रात को मनाई जाती है। इस्लाम धर्म में माह-ए-शाबान बहुत मुबारक महीना माना जाता है। यह दीन-ए-इस्लाम का आठवां महीना होता है। कहा जाता है कि शब-ए-बारात में इबादत करने वाले लोगों के सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। इसलिए लोग शब-ए-बारात में लोग रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं क्यों खास होती है शब-ए-बारात
क्यों खास है शब-ए-बारात?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, शब-ए-बारात की रात हर साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है। शब-ए-बारात का अर्थ है शब यानी रात और बारात यानी बरी होना। शब-ए-बारात के दिन इस दुनिया को छोड़कर जा चुके पूर्वजों की कब्रों पर उनके प्रियजनों द्वारा रोशनी की जाती है और दुआ मांगी जाती है। मान्यता के अनुसार इस रात को अल्लाह अपने चाहने वालों को हिसाब-किताब रखने के लिए आते हैं। इस दिन जो भी सच्चे मन से अल्लाह से अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं। ऐसा करने से अल्लाह उनके लिए जन्नत के दरवाजे खोल देते हैं।
ऐसे मनाया जाता है शब-ए-बारात
शब-ए-बारात के अवसर पर मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिदों और कब्रिस्तानों में जाकर अपने और पूर्वजों के लिए खुदा से इबादत करते हैं। घरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। मस्जिद में नमाज पढ़कर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है। इस दिन घरों में पकवान जैसे हलवा, बिरयानी, कोरमा आदि बनाया जाता है। वहीं इबादत के बाद इसे गरीबों में बांटा जाता है।
इस दिन मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास तरह की सजावट की जाती है। कब्रों पर चिराग जलाकर उनके लिए मगफिरत की दुआएं मांगी जाती हैं। इस्लाम में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है, जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है।
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