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तेजी से बढ़ रही बीमारी:मौसमी बुखार और इन्फ्लूएंजा फ्लू से बचने के लिए डॉ स्नेही से जानिए बचाव के टिप्स, निदान व लक्षण


कमलेश

बिजनौर:प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धामपुर  के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ0बी0के0स्नेही  ने आज बताया कि शासन से इन्फ्लूएंजा फ्लू ओर मौसमी बीमारियों के लिए एडवाइजरी जारी हो चुकी है।  सरकारी अस्पतालों में  फ्लू ओर मौसमी खांसी जुकाम के मरीज भी आजकल  ओपीडी में आ रहे है। इन दिनों फिर से एक नए विषाणु का प्रकोप देखा जा रहा है कोविड-19 की ही तरह इस विषाणु का संक्रमण  चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। तमाम चिकित्सा केंद्र और चिकित्सा विज्ञानी इसी लेकर सतर्क दिखने लगे हैं। इस विषाणु का नाम एच3एन2  है।इसमें इनफ्लुएंजा फ्लू का संक्रमण बढ़ता है। करोना कि तरह  इसमें भी सांस संबंधी परेशानियां पैदा करता है ।इसके लक्षण भी लगभग वही हैं जो कोरोना में देखे जाते हैं। बुखार, सिर दर्द ,उल्टी बदन दर्द आदि।  इन्फ्लूएंजा को मौसमी बुखार के रूप में भी जाना जाता है ।इस मौसम में लगभग हर साल प्रकट हो जाता है ।इन्फ्लूएंजा श्वसन प्रणाली का एक संचारी विषाणु जनित रोग है। इससे संक्रमित व्यक्ति जब बात करते खांसते या छीकेते  हैं तो  बात करते व्यक्ति से संक्रमित व्यक्ति के सांस से फैलता है। इस समय इस विषाणु का प्रकोप कुछ अधिक देखा जा रहा है ।आमतौर पर इस बुखार का मौसम अप्रैल से सितंबर तक रहता है और इसका प्रभाव गंभीरता और अवधि में भिन्न होता है। इस बीमारी के संक्रमण की दृष्टि से छोटे बच्चे, बुजुर्ग ,गर्भवती महिलाएं और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग अति संवेदनशील माने जाते हैं ।मगर  जिस तरह इन दिनों चारों लोगों को लंबे समय तक और गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। उससे सभी को अतिरिक्त रूप से सावधान रहने की जरूरत रेखांकित की जा रही है ।।   

लक्षण                                  

मुख्य रूप से फ्लू के लक्षणों में सिर दर्द, उल्टी और दस्त देखे जाते हैं ।कुछ लोगों में खांसी मांसपेशियों का, शरीर में दर्द बुखार या ठंड के साथ बुखार, थकान ,नाक कान गले में खराश आदि लक्षण भी देखे जाते हैं। हालांकि घर पर रहकर ही इसका उपचार कर सकते हैं। आमतौर पर इसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती है। समस्या गंभीर लग रही है ।बुखार और अधिक है तो अपने चिकित्सक से जरूर संपर्क करें। कारण                                   

इस मौसम के बुखार इन्फ्लूएंजा विषाणु के कारण होता है जो नाक, गले और फेफड़ों को संक्रमित करता है। ऐसा संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है । दूषित हांथो से होंठ, आंख या नाक को छूने से व्यक्ति इसकी चपेट में आ सकता है। मौसमी इन्फ्लूएंजा छोटे बच्चों को 6 महीने से 5 साल तक और 65 साल या उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों को प्रभावित करता है। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति ,गर्भवती महिलाओं पर अधिक प्रभाव डालता है ।इस संक्रमण की वजह से निमोनिया,ब्रोंकाइटिस अस्थमा का दौरा हिर्दय सम्बंधित समस्याएं ,कानों में संक्रमण, सांस लेने में  कठिनाईआदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं ।।           

बचाव                                    

इन्फ्लूएंजा के संक्रमण से बचने के लिए हर साल  इसका टीका अवश्य लेना चाहिए क्योंकि यह संक्रमण की गंभीरता को कम कर सकता है और अस्पताल में भर्ती होने से बचा जा सकता है। इसके लिए उपलब्ध टीके के कई विकल्प है  जिनमें से नेजल स्प्रे पारंपरिक जैबस  शामिल है। चिकित्सा स्वास्थ्य और जोखिम कारकों के आधार पर इनमें से किसी एक प्रकार के टीकाकरण का सुझाव दे सकते हैं ।इसके अलावा स्वास्थ्य आदतों का पालन करें ।जैसे साबुन से हाथ धोना ।फर्नीचर और खिलौने जैसे वस्तुओं को साफ करने के लिए कीटाणु नाशक का उपयोग करें। खांसते छीकते  समय अपना मुंह ढक कर रखें ।ताकि संक्रमण का जोखिम कम से कम हो। गंदे हाथों से मुंह आंख नाक  आदि को  छूने से परहेज करें ।हर रात 8 घंटे  सोये।नियमित व्यायाम से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करती है इसलिए अपने दिनचर्या में व्यायाम को अवश्य शामिल करें। और प्राणायाम इसमें सबसे कारगर साबित होते हैं ।।               

  निदान                                 

जब भी आपको लगता है कि संक्रमण का प्रभाव गंभीर है तो चिकित्सक की मदद  अवश्य ले। चिकित्सक पहले आपके स्वास्थ्य संबंधी विवरण जैसे  पुरानी बीमारियों का अध्ययन करते हैं। फिर वे फ्लू के निदान के लक्षणों के बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं ।फ्लू  की प्रकृति की पहचान के लिए कई परीक्षण उपलब्ध हैं। उनमें से एक पॉलीमरेस चैन रिएक्शन ( पीसीआर ) है ।जो  अन्य परीक्षणों की तुलना में अधिक संवेदनशील है ।और  इन्फ्लूएंजा परीक्षण  की पहंचाने में मदद करता है। हालांकि  बहुत से लोग  खुद फ्लू की बीमारी का ध्यान रख सकते हैं ।दवा ले सकते हैं। और उससे बचने के लिए अधिक आराम करने और अपने आहार में तरल पदार्थों की मात्रा बढ़ाने की जरूरत होती है ।बीमारी गंभीर या जटिल होने उच्च जोखिम के मामले में डॉक्टर इसके इलाज के लिए विषाणु रोधी दवाएं लिख सकते हैं ।हालांकि कभी भी इसका इस्तेमाल अपनी मर्जी से नहीं करना चाहिए।

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