रजनीश / ज्ञान प्रकाश
करनैलगंज(गोंडा)। नगर के बालकृष्ण ग्राउंड में चल रहे कबीर सत्संग समारोह में चौथे दिन कार्यक्रम की शुरुआत बीजक पाठ से किया गया और गुरु वंदना के साथ ''संगत कीजै साधु की हरे और की व्याधि'' की व्याख्या करते हुए संतो ने सत्संग की महिमा बताई। कार्यक्रम में संत देवेंद्र साहेब ने न्यूटन के वैज्ञानिक नियम का आधार लेते हुए बताया कि क्रिया की प्रतिक्रिया होना, बल का प्रतिबल व ध्वनि की प्रतिध्वनि प्रकृति का नियम है। ठीक उसी प्रकार हमारे मन का भाव है जब हम किसी को अच्छा व्यवहार देते हैं तो हमें अच्छा व्यवहार मिलता है। जब हमारा मन किसी के प्रति किए आक्रोश, द्वेष, आलोचना, हिंसा, वासना, विनाश की बात सोचता है तो उल्टे हमें ही प्राप्त होता है। उससे पहले हमारा कलुषित मन हमारा ही पतन करता है। सदगुरु कबीर की साखी "कबीर कमाई आपनी कबहु ना निष्फल जाए, बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाए तथा कबीर आपु ठगाइए और न ठगिए कोय, आपु ठगे सुख होत है और ठगे दुख होय" की व्याख्या करते हुए बताया कि हम मन में दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा, दया, क्षमा का भाव रखते हुए व्यवहार करेंगे तो हमें उसका सकारात्मक परिणाम मिलेगा और हमें सुख शांति प्राप्त होगी। कार्यक्रम में संत उपेंद्र साहेब के भजन "मैं बड़ा ही भाग्यवान हूं क्योंकि मैं इंसान हूं' के साथ सद्गुरु भूषण साहेब ने सुख शांति में जीवन के लिए चाहत और जरूरत के आकलन पर प्रकाश डाला। इसकी प्राप्ति के लिए किसी देवी देवता, कर्मकांड अनावश्यक पूजा-पाठ की आवश्यकता नहीं है। दूसरों की आवश्यकता के साथ तीर्थ नदी स्नान की भी आवश्यकता नहीं है। अपने जीवन का निरीक्षण परीक्षण करके जीवन की भूमिका संकल्प का निर्धारण करके स्वयं उपाय के लिए अग्रसर होना पड़ता है। स्वास्थ्य, समृद्धि व सुख शांति के लिए प्रातः उठने पर रात्रि स्वयं के पूर्व इष्ट वंदना सब के प्रति करूंगा प्रेम दया के कर्तव्य भाव पर चिंतन के साथ प्राप्त करने के सहयोगियों के लिए आभार कृतज्ञता का भाव आवश्यक है। कार्यक्रम में उमेंद्र साहेब ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। यह कार्यक्रम कबीर पंथ के सौजन्य से किया जा रहा है। इसका आयोजन अरुण कुमार वैश्य द्वारा किया गया है। कार्यक्रम में भारी भीड़ जुट रही है और सत्संग के बाद श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर वापस जाते हैं।
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