पं श्याम त्रिपाठी /बनारसी मौर्या
गोण्डा: नव वर्ष नए संकल्पों का दिन है आज जहां पूरा विश्व भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का अनुसरण कर प्रगति कर रहा है हम में से कुछ लोग भाषा संस्कृति से प्रभावित हैं ! यह सही है कि अन्य देशों में अपनी सफलता के परचम लहराने के लिए उनकी भाषा एवं संस्कृति को जानना जरूरी है ,लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि हम हमारी प्राचीन सभ्यता संस्कृति को भुलाकर ऐसा करें ! क्योंकि हमारी पहचान हमारे देश एवं संस्कृति से ही है ! यह बात प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर डॉ अरुण सिंह ने नवाबगंज हनुमत सदन स्थित अपने आवास पर भारतीय नव वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किया ! डॉक्टर सिंह ने कहा कि आज नव वर्ष पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हमारे परिवार समाज एवं देश में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उच्च आदर्शों को नई पीढ़ी के साथ न केवल अपनाएंगे अपितु पीढ़ी दर पीढ़ी अनुसरण करके अपने जीवन में आत्मसात करके भारत को व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ाने का सतत प्रयास करेंगे ! भारत के नागरिक होने के नाते यह हमारा मौलिक कर्तव्य भी है और समय की मांग भी है ! आगे श्री सिंह ने कहा की भारत विभिन्न भाषाओं ,वेशभूषा पूजा पद्धति वाला पंथनिरपेक्ष भारत दुनिया का सबसे विभिन्न और अनोखा राष्ट्र है ! उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में कई तरह की संस्कृतियों पाई जाती हैं विभिन्न संस्कृतियों की तरह विभिन्न ऋतुएं भी भारत को खास बनाती हैं !
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