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विरक्ति और वैराग्य में बहुत बड़ा अंतर:पंडित सुनिधि देव मिश्रा



रजनीश / ज्ञान प्रकाश 

करनैलगंज(गोंडा)। क्षेत्र के ग्राम अहिरौरा चौराहे पर प्रारंभ हुए  श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह  में कथावाचक पंडित सुनिधि देव मिश्रा ने कथा में कहा कि विरक्ति और वैराग्य में बहुत बड़ा अंतर है। विरक्ति कहते हैं किसी तत्व से विमुखता हो जाना। वहीं वैराग्य अलग तत्व है। वैराग्य का अर्थ है न ही किसी से वैर हो और न ही किसी से राग, अर्थात न ही किसी से आसक्ति हो और न ही किसी से विरक्ति हो। वैराग्य में वैर और राग दोनों का नष्ट हो जाना, उदासीन हो जाना, न उसकी प्राप्ति में सुख मिले और न ही उसके छिन जाने पर दुःख हो। उन्होंने कहा कि लोगों को बहुत भ्रम रहता है कि विरक्ति और वैराग्य एक ही है। विरक्ति से साधना मार्ग की ओर प्रशस्त हो सकते हैं लेकिन विरक्ति से साध्य नहीं मिलेगा। क्योंकि मन में उस तत्व के प्रति द्वेष की भावना है कि वह तत्व गंदा है या मुझे उससे दूर रहना है। यह भगवदप्राप्ति और ज्ञान प्राप्ति में बाधक तत्व है। अर्थात सबको समान भाव से न्यास करना, समान भाव से देखना, अगर किसी के प्रति वैर भाव है तब भी आप लक्ष्य से दूर हैं और किसी के प्रति राग भाव है तब भी आप लक्ष्य से दूर हैं इसलिए विरक्ति की शुरुआत वैराग्य भाव उत्पन्न होना चाहिए। वैराग्य ही सबको धारण करने योग्य है। कथा के दौरान रामदीन कसौधन, सुनील, दीपू कासौधन, राम राज वर्मा, चन्दन, काशी, हरि कुमार, आकाश, पुजारी आदि समेत तमाम श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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