उमेश तिवारी
महराजगंज:भारत-नेपाल सीमा से सटे डांडा नदी के किनारे बना सोनौली नगर पंचायत का मुक्तिधाम अपने मोक्ष के लिए किसी भगीरथ का इंतजार कर रहा है।
एक दशक पहले वर्ष 2013-14 में लाखों की लागत से मुक्तिधाम में टीनशेड के नीचे शव का दाह संस्कार करने के लिए निर्माण कराया कराया है, लेकिन इस मुक्तिधाम से सटे डांडा नदी में कचरा व प्रदूषण इस कदर देखने को मिल रहा है कि वहां स्नान तो दूर आचमन के लिए नदी के पानी को हाथ लगाने से लोग परहेज करते हैं। यही वजह है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग शव का अंतिम संस्कार करने के लिए दूर-दराज के श्मसान घाट जाते हैं। जिनकी माली स्थिति ठीक नहीं होती, ऐसे ही लोग कभी-कभार अपने परिवार के मृत सदस्यों का शव लेकर दाह संस्कार के लिए सोनौली के मुक्तिधाम पहुंचते हैं। पर, वहां कोई स्नान नहीं करता। दूसरे स्थल पर जाकर लोग क्रियाकर्म को पूरा करते हैं।
नेपाल के कचरा से पटी डांडा नदी
मुक्तिधाम शब्द जेहन में आते ही ऐसे स्थान की तस्वीर जेहन में उभरती है जहां हिन्दू धर्म में मौत के बाद शव की अंतिम यात्रा पहुंचती है। अमूमन नदी के किनारे बने मुक्तिधाम में शव का अंतिम संस्कार के दौरान नदी के जल का उपयोग किया जाता है। पर सोनौली के मुक्तिधाम से सटे डांडा नदी नेपाल के कचरा से पूरी तरह पटा हुआ है। दूर से ही पानी की बदबू आती है। इसलिए लोग वहां शव के अंतिम संस्कार से परहेज करते हैं।
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