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इतने अहम क्यों हैं नेपाल के लिए इस्लामिक खाड़ी देश ?



उमेश तिवारी

काठमांडू / नेपाल:काठमांडू का थमेल अपनी नाइट लाइफ के लिए जाना जाता है, लेकिन बाकी काठमांडू 10 बजते-बजते सो जाता है।


जैसे-जैसे रात चढ़ती है, थमेल में लाइव म्यूजिक और डांस बार का शोर बढ़ने लगता है। पूरा थमेल शराब और लोकप्रिय संगीत के शोर में डूब जाता है।



यहां के डांस बार में हिंदी और पंजाबी गाने भी खूब बजते हैं।लेकिन कभी न थमने वाला थमेल क्या अब थमता दिख रहा है? गुरुवार की रात के करीब 11 बज रहे हैं और सड़कें खाली हैं।


ज्यादातर दुकानें बंद हैं। कई ऐसे बार दिखे जिनके गेट पर ताले लगे हैं।कुछ बार के भीतर म्यूजिक का शोर है, लेकिन इस शोर में समाने वाले बहुत कम हैं।


बार के अंदर जाने पर एक साथ कई लड़कियां स्वागत में खड़ी होती हैं, लेकिन मेहमान से ज्यादा मेजबान है।एक पब के गेट पर खड़े गार्ड से पूछा कि थमेल का शोर क्या कमजोर पड़ रहा है?



जवाब में उन्होंने कहा, ''अभी रात और चढ़ेगी तो रौनक बढ़ेगी। लेकिन कोविड के बाद चीजें बहुत बदल गई हैं। थमेल की हलचल अभी जितनी दिख रही है, वह आधी रह गई है। आधी हलचल आर्थिक मंदी की चपेट में चली गई। अभी सड़कों पर विदेशी बहुत कम दिख रहे हैं। पहले की रौनक के सामने अभी की रौनक जरूर फीकी हुई है।



यहां किसी सामान्य बार में भी जाएं तो एक बीयर की कीमत है कम से कम 1100 रुपए यानी भारतीय रुपये में करीब 700 रुपये और एक पीनट्स मसाला कम से कम 600 रुपए में।


अगर आप थमेल के बार की तुलना दिल्ली से करेंगे तो आपका इरादा बदल सकता है।लेकिन यह बात केवल थमेल की नहीं है। पूरा नेपाल महंगाई की चपेट में समाया हुआ है।



जो भारतीय नेपाल आते हैं, उनके मन में कई बार यह बात होती है कि भारत के 100 रुपए वहां 160 रुपए होंगे। लेकिन यहां आने पर एहसास होता है कि 'अतिरिक्त' 60 रुपए का मोल क्या है।


महंगाई केवल थमेल तक ही सीमित नहीं है। रसोई के सारे सामान महंगे हो गए हैं। पिछले साल की तुलना में दाल, तेल, आटा और चावल की कीमतों (प्रति किलो) में 30 से 90 रुपए तक की वृद्धि हुई है।



मजबूरियों से जूझते लोग

बीते  मंगलवार को नेपाल की संसद के बाहर 36 साल के प्रेम प्रसाद आचार्य नाम के एक व्यक्ति ने सरेआम आत्मदाह कर जान दे दी।


प्रेम प्रसाद ने आत्मदाह करने से पहले फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी थी और उसमें बताया था कि 'कारोबार में नाकामी और बेकारी के कारण वह टूट चुके हैं, इसलिए आत्मदाह करने का फैसला किया है।


नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के छात्र विंग के एक नेता ने इस आत्मदाह पर कहा, ''शायद प्रेम प्रसाद आचार्य को लगा होगा कि उनके आत्मदाह के बाद नेपाल में लोग आक्रोशित होंगे और सत्ता से सवाल पूछेंगे। लेकिन प्रेम प्रसाद को पता नहीं था कि जिंदा मुर्दे भी होते हैं। आत्मदाह के बाद सब कुछ सामान्य है। इसी से पता चलता है कि हम जिदा मुर्दा हैं।


काठमांडू स्थित त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर आठ बजे रात में पहुंचिए तो दिल्ली के रेलवे स्टेशन की तरह भीड़ लगी रहती है।काठमांडू से रात आठ बजे के बाद कई उड़ानें खाड़ी के देशों के लिए उड़ान भरती हैं।


पिछले 20 सालों में कतर, यूएई, सऊदी अरब समेत खाड़ी के बाकी देशों में काम करने बड़ी संख्या में नेपाली गए हैं और जाने का यह सिलसिला थम नहीं रहा है।


काठमांडू में अमेरिकी दूतावास के ईस्ट गेट के पास स्काई ओवरसीज सर्विस नाम की एक फारेन एम्प्लायमेंट कंसल्टेंसी है।यहां कम से कम 50 लोग अपना वीज़ा बनवाने और नौकरी के लिए खाड़ी के देश जाने के लिए दस्तावेज़ जमा कर रहे हैं।



विदेश जाने के लिए होड़


कपिलवस्तु के शबु बेग सऊदी अरब के लिए वीजा बनवाने यहां आए हैं। वे कोविड के पहले वहीं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे।कोविड महामारी के कारण उन्हें वापस आना पड़ा था। वह फिर से सऊदी अरब जाने की तैयारी कर रहे हैं।



शबु बेग से पूछा कि उनका सऊदी अरब में मन लगता है? उनका जवाब था, ''जहां रोज़गार है, मन वहीं लगेगा। लेकिन अपनी बीवी और बच्चों से दूर रहना आसान नहीं होता है।


नेपाल योजना आयोग के पूर्व सदस्य गणेश गुरुंग काठमांडू में नेपाल इंस्टीट्यूट आफ डेबलपमेंट स्टडीज नाम से एक संस्थान चलाते हैं।यह संस्थान नेपाल से विदेशों में माइग्रेशन पर काम करता है। गणेश गुरुंग ने नेपाल से विदेशों में पलायन पर कई शोध किए हैं।


गणेश गुरुंग से नेपालियों में विदेश जाने के लिए मची होड़ पर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ''नेपाल के डिपार्टमेंट आफ फारेन एम्प्लयमेंट के अनुसार, यहां से हर दिन औसत 2200 लोग खाड़ी के देशों के अलावा मलेशिया और दक्षिण कोरिया जा रहे हैं। 


इसमें मित्र देश भारत में जाने वालों की संख्या शामिल नहीं है। इनमें अवैध रूप से विदेश जाने वाले लोग भी शामिल नहीं हैं।इसी से आप समझ सकते हैं कि नेपाल के युवाओं में कितनी बेचैनी है।



गणेश गुरुंग कहते हैं, ''नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए इनकी कमाई लाइफलाइन है। इन नेपालियों की कमाई देश की जीडीपी का 28 फीसदी है। नेपाल कृषि का जीडीपी में सिर्फ़ 25 प्रतिशत योगदान है जबकि पर्यटन का महज छह से सात फीसदी। नेपाल के कुल 40 लाख लोग विदेशों में काम कर रहे हैं और इनमें भारत में काम करने वाले लोग शामिल नहीं है।


नेपाल में रेमिटेंस का महत्व और खतरे

गोपल गुरुंग कहते हैं, ''इस पयालन को हम भले अर्थव्यवस्था के लिए अहम मान रहे हैं, लेकिन लंबी अवधि में यह नेपाल के लिए घातक साबित होगा। यह कोई टिकाऊ रास्ता नहीं है। हमें बाहर की कमाई लंबे समय तक नहीं पाल सकती है। हमें डर है कि श्रीलंका की तरह ना हो जाए।


नेपाल में अगर रेमिटेंस आना बंद हुआ, तो यहा की अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी। श्रीलंका की तरह बनने में तनिक वक्त भी नहीं लगेगा।नेपाल जिस मुहाने पर खड़ा है, उसमें खाई में गिरने की आशंका बहुत ही प्रबल है।


खाड़ी के देशों में थोड़ी भी उठापटक हुई तो नेपाल सीधा प्रभावित होगा। ऐसे में नेपाल में जो स्थिति होगी, उसकी कल्पना करना मुश्किल है। अगर रेमिटेंस बंद हुआ, तो नेपाल आर्थिक रूप से टूट जाएगा।


गोपल गुरुंग कहते हैं कि रेमिटेंस का आना अच्छी बात है, लेकिन उसी पर निर्भर होना बहुत ही खतरनाक है।


गुरुंग कहते हैं, ''भारत के 80 लाख लोग खाड़ी के देशों में काम करते हैं और इन्होंने पिछले साल करीब 70 अरब डालर कमाकर वापस भेजा। लेकिन भारत इसी 70 अरब डालर पर निर्भर नहीं है।


नेपालियों ने पिछले साल विदेशों से 8.5 अरब डालर कमा कर भेजा था और नेपाल इसी कमाई से साल भर चलता है। इसके अलावा विदेशी मुद्रा हासिल करने का और कोई स्रोत नहीं है।



विदेशों में नेपालियों का हाल

नेपाल में नवलपरासी के कृष्ण ज्ञवाली त्रिभुवन एयरपोर्ट पर मिले। वह दुबई जा रहे थे। कोविड के पहले कृष्ण एक ट्रैवल एजेंसी में काम करते थे। कोविड के बाद उनकी एजेंसी बंद हो गई। कृष्ण दो साल तक बेरोजगार रहे। एक बार फिर से दुबई में उन्हें काम मिला है।


कृष्ण से दुबई के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, ''दुबई अंतर्राष्ट्रीय कारोबार का हब बन चुका है, लेकिन बहुत भयावह विषमता है।कुछ लोग बेशुमार पैसे बना रहे हैं, लेकिन जो मजदूरी का काम करते हैं, उनका बेइंतहा शोषण है।



ऐसे तो कहा जाता है कि यहां कोई क्राइम नहीं करता है। पुलिस बहुत कड़ाई करती है, लेकिन आपका शोषण हो रहा है तो पुलिस के लिए यह कोई क्राइम नहीं है। आपका मालिक आपसे चाहे जितना भी काम करवा सकता है। पैसे देने में मनमानी कर सकता है।पीट भी सकता है। लेकिन पुलिस में शिकायत करने जाएं, तो कोई एंटरटेन नहीं करेगा।


कृष्ण ज्ञवाली कहते हैं, ''दुबई का एक ही धर्म है पैसा बनाना। यह पैसा चाहे शराब बेचकर बने या शोषण से। दुबई अब इतना उदार हो गया है कि शराब और शोषण बुराई नहीं रिफार्म का हिस्सा है।जो नेपाली यहाँ व्हाइट कालर जाब करते हैं, उनके लिए तो ठीक है, लेकिन ब्लू कालर जाब में अथाह शोषण है।


नेपाल सरकार की लेबर माइग्रेशन रिपोर्ट के अनुसार, 2008 से अब तक करीब 8000 नेपाली कामगारों की मौत खाड़ी के देशों में हुई है।


2018 और 2019 के बीच 750 नेपाली कामगारों की मौत खाड़ी के देशों में हुई है। इनमें उन कामगारों का कोई हिसाब नहीं है जो अवैध तरीके से या भारत से जाते हैं।


रिपोर्ट में बताया गया है कि नेपाली कामगारों को पर्याप्त खाना और पानी नहीं मिलता है। तय घंटे से ज्यादा काम करवाया जाता है। इस वजह से उन्हें कई तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं।


नेपाल की करीब 14 फीसदी आबादी यानी करीब 40 लाख लोग विदेशों में काम करते हैं। नेपाल के अर्थशास्त्री हरि रोका कहते हैं कि विदेशों में काम करने वाले नेपाली यहाँ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।


हरि रोका कहते हैं- नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार का मुख्य स्रोत विदेशों में रहने वाले नेपालियों की कमाई है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में नेपालियों ने विदेशों से कमाकर 8.5 अरब डॉलर भेजे थे।2021 में यह 8.2 अरब डॉलर था।


कामगारों का निर्यात कर रहा है नेपाल

नेपाल की पहचान खेती किसानी वाले मुल्क की रही है और यहाँ से कई तरह के आयुर्वेदिक उत्पाद के अलावा चाय की पत्तियों का निर्यात होता था।


लेकिन नेपाल अब कामगारों का निर्यात कर रहा है। 1990 तक नेपाल में पूरी तरह से राजशाही थी। ऐसे में ज्यादातर नेपालियों को भारत को छोड़कर विदेश के बाक़ी देशों में जाने की अनुमति नहीं थी।


गणेश गुरुंग ने नेपाल में पलायन यानी माइग्रेशन के पैटर्न पर अध्ययन किया है।उनका कहना है कि 1990 में जब लोकतंत्र आया, तो सबके लिए पासपोर्ट हासिल करना आसान हुआ।


इसी वक्त खाड़ी के देशों में तेल से तरक्की की राह खुली और वहाँ श्रमिकों की भारी कमी थी।ऐसे में नेपाल के लोगों के लिए यह मौक़े की तरह था।


1996 में नेपाल में एक दशक लंबा माओवादियों का हिंसक विद्रोह शुरू हुआ। इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई। 2021 में छह लाख 20 हजार नेपाली कामगार खाड़ी के देशों में गए थे।


भारत की आरबीआई की तरह नेपाल में है राष्ट्र बैंक 

नेपाल राष्ट्र बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक नरबहादुर थापा कहते हैं, "खाड़ी के देशों में कुछ भी ऐसे हालात बनते हैं कि नेपाली कामगारों को वापस आना पड़ता है तो नेपाल आर्थिक रूप से टूट जाएगा।



नेपाल की अर्थव्यवस्था का आकार मुश्किल से 40 अरब डालर का है। इससे तीन गुना ज्यादा तो भारतीय विदेश से कमाकर भेज देते हैं।2021-22 में नेपाल का व्यापार घाटा बढ़कर एक हजार 720 अरब रुपया (नेपाली) हो गया है।


"भारत के साथ नेपाल का 63.9 फीसदी व्यापार है। इसीलिए घाटा भी सबसे ज्यादा भारत के ही साथ है। भारत के साथ नेपाल का व्यापार घाटा 1044 अरब रुपए सालाना है।


नेपाल का चालू खाता घाटा औसत 623 अरब रुपये है और यह जीडीपी का 12.8 फीसदी है। हम बस यही मनाते हैं कि खाड़ी के देशों में कुछ विपरीत हालात पैदा ना हो और नेपाली वर्कर काम करते रहें। इसके अलावा हम कुछ कर नहीं रहे हैं।



"नेपाल में अभी विदेशी मुद्रा भंडार 9.18 अरब डालर है जो कि 10 महीने तक के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसका कम होना शुरू हो गया है। नेपाल में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बर्बाद है।नौकरी बची नहीं है। कृषि को आधुनिक बनाया नहीं जा रहा है।


सर्विस का हिस्सा जीडीपी में बढ़ रहा है, लेकिन जाब बहुत कम है।ऐसे में नेपाल के लिए खाड़ी के देश और मलेशिया ही सहारा बने हुए हैं।जिन नेपालियों को विदेश में कहीं काम नहीं मिलता वे भारत चले जाते हैं।


ग्लोबल साउथ में खाड़ी का इलाका प्रवासी मजदूरों का सबसे बड़ा ठिकाना है। 1970 के दशक में खाड़ी के देशों में महज 20 लाख प्रवासी मजदूर थे, जो 2018 तक आते-आते बढ़कर 2.9 करोड़ हो गए।


भारत-नेपाल के रिश्तों पर नेपाली लड़कियां क्या बोलीं?


भारत पर नेपाल की निर्भरता

खाड़ी के देशों की कुल 5.6 करोड़ आबादी में प्रवासियों का हिस्सा 51 फीसदी हो गया है। यहां से प्रवासी मजदूर हर साल 108 अरब डालर कमाकर अपने-अपने देशों में भेजते हैं। खाड़ी के देशों में करीब 80 लाख भारतीय भी काम करते हैं।


हरि रोका कहते हैं, ''नेपाली ग़रीबी के कारण देश छोड़ खाड़ी के देशों काम करने पर मजबूर हैं। गरीबी और बेरोज़गारी के कारण नेपाल में उपभोग कम हो रहा है। 485 अरब रुपए का व्यापार घाटा भारत से था। इसमें 20 फीसदी की गिरावट आई है।


इसका मतलब यह नहीं है कि नेपाल का भारत में निर्यात बढ़ा है। बल्कि हमारे पास पैसा नहीं है, इसलिए भारत से खरीद नहीं पा रहे हैं। हम अभाव में रहने पर मजबूर हो रहे हैं। नेपाल मंदी में समा चुका है।हमारी आमदनी घट रही है। हमारे पास उपभोग करने के लिए पैसे नहीं हैं।


हरि रोका कहते हैं, ''चिंता की बात यह है कि हम मंदी में तो हैं ही और इसके साथ ही भारत पर निर्भरता भी बहुत बढ़ गई है। पहले हम सऊदी और ईरान से भी सीधे तेल खरीदते थे, लेकिन अब पूरा तेल भारत से ही खरीदते हैं। अगर भारत ने कभी नाकेबंदी की तो हम फिर से मुश्किल में पड़ जाएंगे।


यहां के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि नेपाल जिस राह पर है, उसमें खाई में गिरने से कोई नहीं बचा सकता है।

नेपाल के योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे स्वर्णिम वागले कहते हैं, 'अभी नेपाल की 14 फ़ीसदी आबादी विदेशों में काम कर रही है और यह भविष्य में और बढ़ेगी, लेकिन इससे नेपाल की बदहाली की तस्वीर ही उभरकर सामने आ रही है।

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