आनंद गुप्ता
पलिया कलां लखीमपुर खीरी के इंडो नेपाल के तराई में स्थित दुधवा टाइगर रिजर्व हर साल की तरह इस साल भी प्रवासी परिंदों से गुलजार होना शुरू हो गया है ।
एक बार फिर दूधवा परिंदों की कलरव से गूंजने लगा है,जिसकी जानकारी मिलते ही सैलानियों में खुशी की लहर दौड़ गई है और एक बार फिर देश विदेशी सैलानी प्रवासी परिंदों के दीदार करने और उनकी मनमोहक कलरव सुनने के लिए दुधवा पहुंचने लगे हैं ।
उधर प्रवासी परिंदों के आने का सिलसिला शुरू होने की जानकारी मिलते ही पार्क प्रशासन ने यहां आने वाले सैलानियों के साथ-साथ हजारों मेहमान पक्षियों के स्वागत और सुरक्षा की तैयारियां भी की हैं।
आपको बता दें कि प्रवासी परिंदे सर्दियों में मौसम में ही दुधवा में आते हैं क्योंकि जब ठंडे जलाशयों में बर्फ जम जाती है तो इन परिंदों के भोजन और आवास की समस्या पैदा हो जाती है तब यह परिंदे लगभग 15 हजार किलोमीटर की दूरी तय कर भारत समेत अन्य गर्म देशों की ओर रुख करते हैं साथ ही आपको यह भी बता दें कि प्रवासी पक्षीं नवंबर से फरवरी तक 4 माह प्रवास कर प्रजनन करते हैं जिसके कारण इन दिनों तराई के जलाशय प्रवासी पक्षियों से गुलजार हो जाते हैं।
रंग बिरंगी प्रवासी परिंदों का कलरव प्रकृति और पक्षी प्रेमियों को अपनी और आकर्षित करता है ।
ये परिंदे मध्यएशिया,चीन,तिब्बत, साइबेरिया,लद्दाख आदि स्थानों से बड़ी संख्या में जलीय पक्षियों के झुंड में तराई के जलाशयों में आते हैं ।परिदों में साइबेरियन,अबलक, गुर्चिया बत्तख,जसपुन बिल, ब्राहमानी डक, कूट, मून हेन,ग्रे लेग गूस, टस्टेड डक,रेड क्रेस्ट्रड बोचार्ड आदि शामिल हैं।
दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया है कि आने वाले मेहमान परिदों की सुरक्षा और उनके भोजन का पार्क प्रशासन पूरी तैयार से ख्याल रखता है क्योंकि ये प्रवासी परिंदे हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं, रंग-बिरंगे प्रवासी परिंदों की कलरव परिंदे प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है और बर्डवाच के शौकीन और पक्षियों की गतिविधियों का अध्ययन करने वाले लोग भी इन दिनों जलाशयों के इर्द-गिर्द अपना डेरा डाल देते हैं ।
जिसमें लखीमपुर खीरी की सेमरई झील,नगरिया झील,मैनहेन झील,रमियाबेहड़ झील,अहमदाबाद,शारदा नहर का का क्षेत्र वहीं किशनपुर सेंचुरी के झादीताल, दुधवा के भादीताल, कुकरागढ़ा सहित विभिन्न तालाबों समेत दर्जनों जलाशयों में प्रवासी परिंदे के चार माह के लिए अपना आशियाना बनाते हैं जहां उन्हें प्राकृतिक आवास और भोजन मिलता है ।
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