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कार्यकर्ताओं के लिए मसीहा थे मुलायम उनके काम युवाओं के लिए आज भी प्रेरणादायी


सूरज सिंह गोण्डा के कलम से•••••••!

पं•श्याम त्रिपाठी 

गोण्डा:बात 90 के दशक की है जब सामंतवाद और बाहुबल के अंधेर को टक्कर देने गोण्डा में समाजवाद के सूरज के रूप में "पण्डित सिंह" का उदय हो रहा था, इस उदय के पीछे एक बल महत्वपूर्ण था जिसका नाम था मुलायम सिंह यादव "नेताजी"!


नाम तो मुलायम पर इरादे फौलाद जैसे!

दिसम्बर की सर्द सुबह की खिलखिलाती धूप सेंकते स्मृतिशेष पण्डित सिंह पर प्राणघातक हमला होता है, शरीर में लगभग 20 गोलियाँ लगती हैं, वक्त और शरीर खून से लथपथ, जो जहाँ जैसा था वैसा ही थम गया, पूरे इलाके में इस कायर साजिश की ख़बर फैल गयी कि पण्डित सिंह पर हमला हुआ है सब तरफ शोक, निराशा और ईश्वर से सलामती की प्रार्थना थी ।


लेकिन कोई अगर ख़ुद ईश्वर के रूप में प्रकट हुआ तो वो थे तत्कालीन मुख्यमंत्री "मुलायम सिंह" नेताजी! हमले के आधे घंटे के भीतर हेलीकॉप्टर भेजकर पण्डित सिंह को गोण्डा से लखनऊ न सिर्फ एयरलिफ़्ट कराया बल्कि गोण्डा के लाल का इलाज़ बेहतरीन डॉक्टरों के पैनल से करा कर पण्डित सिंह को मन्त्री पण्डित सिंह बना दिया! 


लगभग 6 महीने तक किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज़ लखनऊ में सुरक्षा की दृष्टि से पीएसी की टुकड़ी तैनात रही और स्वयं मुख्यमंत्री नेताजी स्मृतिशेष पण्डित सिंह से पाँच बार KGMC मिलने आये।


उस वक़्त मैं 5वीं क्लास में पढ़ रहा था मुझे याद है कि नवाबगंज के एक छोटे से स्कूल में हमले की ख़बर आयी, सब मुझसे छुपा रहे थे, शाम को जब मैं मेडिकल कॉलेज पहुँचा तो मंत्रीजी मुझे देख मुस्कराये और बोले 

"काहे परेशान हौ भैया हम्मय कुछू ना होए"

उस लहूलुहान समय में हमारे परिवार को किसी ने संभाला तो वो थे मुलायम सिंह यादव नेताजी!

हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है और यही परख और अनुभव हीरा तराश कर उसे कीमती बना देते हैं , मुलायम सिंह यादव की पारखी नजर ने भी सामंतवाद और बाहुबल के गठजोड में जकड़ी इस तराई के नए समाजवादी नायक को पहचाना, सहेजा और तराशा!


1996 और 2002 में विधायक बनाया, 2003 और 2012 में मंत्री बनाया फिर 2015 में जिला पंचायत का अध्यक्ष, इसी साल श्री अखिलेश यादव जी ने अपनी कैबिनेट में कृषि मन्त्री और न जाने कितनी उपलब्धि! नेताजी और स्मृतिशेष पंडित सिंह के आपसी विश्वास और समर्पण का ही नतीजा रहा कि सामंतशाही के महल दरके और अवसरवादी बाहुबल के अलमबरदारों ने भी इस लोकप्रियता के समक्ष घुटने टेके। नेताजी के समाजवदी सपनों को उनके जांबाज चितेरे पंडित सिंह ने एक अटूट रिश्ते और आस्था के साथ न सिर्फ थामे रखा बल्कि लोकप्रियता के उस उच्चतम लहर तक हिलोरें मारीं कि जनपद तो छोड़िए आसपास के जनपदों के भी प्रायः हर एक नेता को समाजवादी चोला पहनने को मजबूर कर देने का श्रेय भी स्मृतिशेष पंडित सिंह के ही हौंसलों को जाता है। 


श्री मुलायम सिंह यादव नेताजी और स्मृतिशेष पंडित सिंह की जोड़ी की लोकप्रियता का परचम ऐसा लहराया कि जनपद और अवध की इस तराई का लगभग हर नेता समाजवादी रंग में ही रंगा नजर आया। अवसरवाद की राजनीति के ऐसे किरदार आज कहीं किसी भी दल में क्यों न हों लेकिन सिद्धांत, प्रेम-दृढता और लोकप्रियता के किसी भी पैमाने पर नेताजी और स्मृतिशेष पंडित सिंह के इस अटूट रिश्ते की कोई दूसरी मिसाल नहीं है। जितना विश्वास पार्टी ने स्मृतिशेष पण्डित सिंह पर जताया उन्होंने भी एक सेवक के रूप में अपना पूरा जीवन पार्टी के वफ़ादार सिपाही के रूप में झोंक दिया,


 यहाँ तक कि अप्रैल माह 2021 के पंचायत चुनाव में भी पार्टी के लोगों को जिताने की लगन के नाते ही कोविड पॉजिटिव होने के बावजूद अस्पताल छोड़ कर आ गए जिसका परिणाम हर कोई जानता है, हमें भारी कीमत चुकानी पडी, 


लेकिन हमारी दूसरी पीढ़ी भी आपसी समझ, विश्वास और अटूट सम्बंधों की इस परम्परा को संस्कार के रूप में आत्मसात करती है।



दूसरा किस्सा 2009 का है!


2009 का लोकसभा चुनाव सर पर था, उस वक़्त गोण्डा से मौजूदा साँसद मनकापुर रियासत के राजकुमार थे, पूर्व मंत्री स्मृतिशेष पंडित सिंह जी भी गोण्डा से लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक थे।


मुझे याद है उस दिन पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सपा में शामिल होना था उसके बाद सपा कार्यालय से नेताजी को अमर सिंह जी के साथ वाराणसी जाना था, 


नेताजी की गाड़ी कार्यालय से निकली उन्होंने मंत्री जी को खड़े देखकर गाड़ी रोकी और बोले कि परेशान न हो एयरपोर्ट पर मिलो! हम सब लोग भागकर एयरपोर्ट पर पहुँच कर लगभग 4 घंटे इंतज़ार किया, शाम 6 बजे नेताजी की फ्लाइट लखनऊ लैंड हुई , पहले नेताजी का काफिला तेजी से बाहर निकला हम लोग पहले से रास्ते पर खड़े थे नेताजी ने गाड़ी रोककर मंत्रीजी को बुलाया और गाड़ी में बैठे बैठे कहा कि अमर सिंह को मना लो मैंने कह दिया है!


फिर अमर सिंह जी टर्मिनल से बाहर आये और हम सब ने उनसे आग्रह किया उन्होंने भी आश्वासन दिया और चले गए!


नेताजी पहले से ही पण्डित सिंह जी को लड़ाना चाहते थे बस अमर सिंह की भी रजामंदी चाहते थे, बाद में गोण्डा से टिकट भी दिया।


ऐसे तमाम किस्से जो यकायक स्मरण हो जाते हैं!


आज एकाग्र शांति और बेहद निजी पलों में तमाम यादें भावुक कर गईं!


मुझे याद है कि 7 जनवरी 2010 का दिन था स्मृतिशेष पण्डित सिंह का जन्मोत्सव साहिबापुर महाविद्यालय में आयोजित था, इसी बीच मा० मुलायम सिंह यादव जी का कार्यक्रम श्रावस्ती जनपद में सड़क मार्ग से जाने का तय था स्मृतिशेष पंडित सिंह दिल से चाहते तो यही थे कि जनपद के बगल तक आ रहे मा०मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद उन्हें अगर उनके जन्मदिन पर मिल जाए तो इससे बड़ी खुशी उनके लिए कुछ नहीं होगी वह मुलायम सिंह जी को बुलाना तो चाह रहे थे लेकिन यह संकोच भी था कि जन्मदिन जैसे निजी आयोजन पर अपने नेता को किसी दूसरे तय कार्यक्रम के रास्ते में यूं बुलाना शायद उचित न हो लेकिन इस सौभाग्य का लोभ भी छूट नहीं रहा था। अपने तयशुदा कार्यक्रम को नेताजी बदलने पर राजी नहीं थे वह स्मृतिशेष पंडित सिंह जी को सप्रेम मना कर दे रहे थे। 


इसी बीच मुलायम सिंह तय कार्यक्रम के अनुरूप लखनऊ से निकले ही थे कि कहीं से उन्हें मालूम चल गया कि आज पंडित सिंह का जन्मदिन है और पंडित सिंह इस मौके पर उनका सानिध्य तो चाहते हैं।


 लेकिन संकोचवश जन्मदिन जैसे निजी मौके को उनपर जाहिर नहीं कर पा रहे हैं, नेताजी के पंडित सिंह पर अपार स्नेह का यह मेरे लिए बेहद भावुक उदाहरण था कि उन्होंने तुरंत अपना तयशुदा कार्यक्रम परिवर्तित कर लखनऊ से बहराइच बलरामपुर होते हुए श्रावस्ती जाने के बजाय लखनऊ से फैजाबाद नवाबगंज साहिबापुर होते हुए श्रावस्ती जाने का तय किया और बड़े प्यार से फोन पर पंडित सिंह को जन्मदिन की बधाई दी और प्यार से झिड़की देते हुए कहा कि तुम्हारा जन्मदिन है और तुम संकोच में मुझे यह भी नहीं बता पा रहे हो स्वयं सूचना दी कि वह सहिबापुर पंहुच रहे हैं,और पंहुचे भी ! 


ऐसे भावुक अपनत्व और प्रेम व अधिकार भरे रिश्ते की एक नहीं कई बातें हैं जो जीवन पर्यन्त याद आती रहेंगी।


मौत उस की है करे जिसका ज़माना अफ़सोस,

यूँ तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिए...


नेताजी~मंत्रीजी आप दोनों अजर~अमर हैं!


है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय 

जो धरा पर गिर पड़े और आसमानी हो गए हैं!!



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