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किसानों के माथे पर खिंची चिंता की लकीरें



रजनीश / ज्ञान प्रकाश 

करनैलगंज(गोंडा)। आसमान की ओर निहारने में सूर्य की रोशनी ही नजर आ रही है। पानी वाले बादल आते तो हैं मगर तरसा कर चले जाते हैं। 


खेतों में खड़ी गन्ने की फसल व धान का बेडन सूखने को हैं। धान बैठाने का नौबत नही आ रही है। जुलाई का लगभग आधा महीना बीत गया अब तक बरसात नहीं हुई। 


जिससे किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। मौसम वैज्ञानिकों ने इस वर्ष अच्छी बरसात होने तथा 20 से 25 जून तक मानसून आने की भविष्य वाणियां की थीं। 


मानसून के बिहार तक पहुंचने की सूचनायें भी मिलीं, उसके बाद मानसून कहां चला गया फिर भी कुछ पता नहीं। 


इधर लगभग दो सप्ताह पूर्व हुई मानसून पूर्व की बरसात को देखकर कुछ किसानों ने मक्का, अरहर आदि की बुवाई भी कर दी थी। 


बुवाई के बाद न मानसून आया न कोई बारिश ही हुई जिससे बोई गयी फसलें उगकर सूखने के कगार पर पहुंच गयी हैं। 


संपन्न किसान तो इंजन से सिंचाई करके अपनी फसलों को किसी प्रकार बचा ले रहे हैं। आर्थिक दृष्टि से कमजोर किसानों की फसलें सूख रही हैं। 


दूसरी ओर धान की बेड़न तैयार होने के बाद भी बारिश न होने से आम किसान उसकी रोपाई नहीं कर पा रहे हैं जबकि संपन्न किसानों ने अपने कुछ खेतों में इंजन से पानी भरकर रोपाई की है। 


किसान मानसून की राह देखते हुए टकटकी लगाकर आसमान की ओर देख रहे हैं। बादल आते हैं, बदली होती है, जब तब ठंडी हवायें भी चलती हैं जिससे बारिश की आस जगती है परन्तु कुछ देर बाद बिना बरसे बादल गायब हो जाते हैं और किसान आह भरकर रह जाते हैं। 


मानसून न आने से लोगों को गर्मी का प्रकोप भी झेलना पड़ रहा है। मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी गलत साबित हो चुकी हैं। 


जुलाई का लगभग आधा माह बीत जाने के बाद भी मानसून के दर्शन नहींं हो सके हैं। अब मानसून कब तक आयेगा कोई अनुमान भी नहीं लगा पा रहा है। फिलहाल क्षेत्र में सूखे जैसे हालात हैं। 


इससे किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही है।

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