राकेश श्रीवास्तव
मनकापुर (गोंडा) दिन बदरर रात निबंधर, वहिये पुरवा झब्बर झब्बर, कहइ घाघ कच्छऊ होनी होई । कुआं के पानी धोबी धोई।
कृषि विज्ञानी महाकवि घाघ की कहावतें आज चरितार्थ हो रही है श्रावण मास लग चुका है 30 से 35 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पुरवा हवा बह रही है दिन में आसमान पर हल्के बादल छाए हुए हैं लेकिन रात के वक्त पिछले कई दिनों से आसमान साफ हो जाता है दिन में हल्के फुल्के बादल तैरते नजर आ जाते हैं पानी को लेकर सर्वत्र त्राहि-त्राहि मचा है ।
बताते चलें कि मनकापुर इलाके में मानसून की एक भी बरसात नहीं हुई है प्री मानसून की हल्की बारिश हुई थी तब से किसान टकटकी लगाए आसमान की ओर निहार रहा है कि आज मेघ आएंगे और बरसेंगे धरती की प्यास बुझेगी किसान खेतों में धान की रोपाई में जुट जाएंगे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ पूरा आषाढ़ मास बीत गया धरती पर पानी की एक बूंद भी नहीं गिरी और अब सावन शुरू हो चुका है ।
ऐसे में किसानों ने बारिश की उम्मीद छोड़ दी है 50% किसानों ने अपने निजी संसाधनों से धान की रोपाई की और अब रात दिन उन पौधों की सिंचाई करके उन्हें जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं धान पान और केरा तीनों पानी के चेरा, फसली प्यासी हैं ।
जो फसल लगी भी है वे सुख्कर चौपट हो रही है चाहे धान की फसल हो गन्ने की फसल हो या फिर साग सब्जी की।
सभी तरफ पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मची है गांव वालों ने टोना टोटका का भी सहारा लिया । लेकिन फिर भी मेघराज का दिल नहीं पसीजा ।
गूगल सर्च करने पर लोगों को आगामी 18 जुलाई से बारिश की उम्मीद की झलक दिखाई दे रही है यदि भविष्य में गूगल की बात सच निकलती है तो किसानों के लिए होने वाली बारिश वरदान साबित हो सकती है वैसे कृषि प्रधान देश में किसान आज भी भगवान के भरोसे है जबकि इलाके से सरजू नहर परियोजना गुजर रही है लेकिन फिर भी खेतों की प्यास नहीं बुझ पा रही है ।
ऐसे में किसान सूखे को लेकर चिंतित हो उठा है कि उसकी फसलें कैसे बचे । वह भविष्य को लेकर चिंतित हो उठा है कि कैसे बच्चों की भोजन का जुगाड़ बनेगा ।
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