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माँ पार्वती के श्राप से मुक्ति के लिए अवध नरेश ने स्थापित किया शिव लिंग



डॉ ओपी भारती 

बालेश्वर नाथ मंदिर का इतिहास:-देवी पुराण के दसवें स्कंध में वर्णित कथा के अनुसार अयोध्या नरेश सुद्युम्न शिकार खेलते हुए उत्तराखंड के उस स्थान पर पहुंचे जहां पर माता पार्वती का स्थान था।


उस स्थान ऐसा श्रापित था  कि कोई भी पुरुष यदि मां पार्वती की अनुमति के बगैर उस क्षेत्र में आएगा तो वह नर से नारी बन जाएगा।


बाल्हा राई निवासी सुरेंद्र मिश्र कहते है कि स्कन्द पुराण की कथा के अनुसार  महाराज सुद्युम्न जैसे ही माता पार्वती के उस श्रापित क्षेत्र में प्रवेश किए कि नर से नारी बन गए , साथ ही उनकी सारी सेनाएं भी नर से नारी बन गई। फलस्वरूप सारी सेना तीतर बितर हो गई। 


गुरु वशिष्ठ ने सुझाया श्राप मुक्ति का उपाय:-

काफी समय बाद जब महाराज सुद्युम्न को याद आया कि वह पूर्व में पुरुष थे और अयोध्या के राजा थे तो उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से मिलकर नर से नारी बनने की सारी कथा सुनाई व पुनः पुरुष रूप को प्राप्त करने का उपाय पूंछा। 


गुरु वशिष्ठ ने उपाय के रूप में  भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर वरदान मांगने को कहा। गुरु की आज्ञा मानकर महाराज  सुद्युम्न ने गोनर्द क्षेत्र विशाल बिल्व जंगल (वर्तमान बालेश्वर नाथ मंदिर ) में शिवलिंग स्थापित कर पूजा पाठ करना शुरू किया।


 काफी समय बीतने के बाद भोलेनाथ प्रसन्न होकर सुद्युम्न को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा । सुद्युम्न ने मां पार्वती द्वारा दिये गए श्राप से मुक्ति का अनुनय विनय किया। भोलेनाथ ने कहा श्राप को तो पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। 


आप छह महीना नारी और छह महीना नर के रूप में रहोगे। जब आप नारी रूप में रहें उस समय मेरी पूजा करें और जब नर रूप में हो जाए तो आप अपना राज-पाट संभाले। 


वर्तमान बालेश्वर नाथ बेलवारी जंगल के रूप में सरयू नदी के किनारे दूर-दूर तक फैला हुआ था। यहां पर बेल और बेंत के जंगल थे। 


इसी स्थान पर महाराज  सुद्युम्न पूजा पाठ करने लगे । राजा सुद्युम्न नारी बन कर जिस स्थान पर रहे उस स्थान का नाम बाला राय पड़ गया । बाला का अर्थ स्त्री और राय का अर्थ राजा । 


अर्थात स्त्री रूपी राजा। वर्तमान में भी बालेश्वर नाथ मंदिर के पास बल्हाराई गांव स्थित है जो कालांतर का बाला राय का अपभ्रंश रूप है।

मुगल सैनिकों ने चलाया था आरा


मुगल शासक औरंगजेब के सैनिकों द्वारा लकड़ी की खोज के दौरान हुआ भोलेनाथ का प्राकट्य:-

 हजारों साल का समय बीता 16 वीं शताब्दी में औरंगजेब अपनी सेना के साथ इधर से निकल रहा था। 


पुरातन काल में भी अयोध्या सरयू नदी किनारे वजीरगंज बहराइच होते हुए यही एक मात्र  आवागमन का रास्ता था । 


जब औरंगजेब की सेना निकल रही थी तो डुमरिया डीह के पास बाल्हाराई में सेना ने विश्राम किया। खाना बनाने के लिए औरंगजेब के सैनिकों ने जब लकड़ी ढूंढना शुरू किया तो उन्हें सूखे बेल का पेड़ दिखाई पड़ा , जिसे वे  लोग काटने लगे। बेल के पेड़ के बीच में एक बड़ा पत्थर  मिला। 


सैनिकों से जब पेड़ काटा नहीं गया तो आकर के औरंगजेब से बताया औरंगजेब ने कहा कि उस पत्थर को काट लाओ, 


मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने शिव लिंग पर चलवाया आरा तो शिव सैनिकों ने हमला कर मुगल सैनिको को भगाया :-

जब सैनिक पत्थर काटने के लिए उस पर आरा चलाया तो उस से रक्त की धारा बहने लगी ,और उसी में से हाड़ा बिच्छू ततैया जैसे जहरीले जीव जंतु निकलकर सैनिकों को काटने छेदने लगे। 


जिससे सैनिक लोग उस स्थान पर छोड़कर भाग गए ।यह क्षेत्र अवध का गोनर्दीय क्षेत्र था। जहाँ पर अवध नरेश के गाये चरा करती थी।



भक्तों को स्वप्न में शिव जी ने मंदिर निर्माण का दिया आदेश:

औरंगजेब की सेना के चले जाने के बाद आसपास के चरवाहे गायों को चराने गए  पत्थर से निकलती हुई रक्त धारा को देखा। जिसे गाँव के लोगों को बताया गया। 


इसी बीच शंकर जी ने स्थानीय लोगों को स्वप्न दिखाया कि वर्तमान में मिला हुआ पत्थर मेरा शिवलिंग है और इसे स्थापित करके पूजा पाठ किया जाए । 

पोखर


स्थानीय लोगों जमीदार ,सेठ साहूकार राजा व किसानों आदि ने मंदिर बनाकर शिवलिंग को स्थापित कर दिया, और पूजा पाठ होने लगा। सन 1935 के लगभग बालेश्वर गंज निवासी बालेश्वर दत्त सिंह के पूर्वज ने उक्त शिव स्थान  पर  सात कुआं व पोखरा बनवाया और वहां पर पर्वतदान किया। 

सात में सिर्फ 5 कुवें शेष


उसी पुण्य प्रताप से बालेश्वर दत्त सिंह का जन्म हुआ हालांकि बालेश्वर दत्त सिंह के कोई संतान नहीं थी। चूंकि गोनर्द क्षेत्र में अन्य कोई बाल्हाराई नाम से कोई और स्थान नही है। 


कालांतर में सरयू का किनारा और यहाँ से सरयू नदी बहती थी। बेल और बेंत के जंगल थे। 


बिल्लेश्वर नाथ के अपभ्रंश से बालेश्वर नाथ पड़ा नाम :-

बेल की पेड़ से निकले शिव लिंग को बिल्लेश्वर नाथ नाम दिया गया जो कालांतर में अपभ्रंश होते होते बालेश्वर नाथ हो गया। 

महंथ व पुजारी अरविंद गोस्वामी उर्फ विन्दे बाबा


यहाँ जो भी आता है उसकी मन्नते पूरी होती है।

शिव जी का यह स्थान सिद्ध पीठों में से एक है। ऐसी मान्यता है यहाँ सच्चे मन से मानी गई मनौतियां अवश्य पूरी होती है। सावन मास हो या मलमास या अन्य कोई दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।


हवन कुंड पर विवाद के चलते नही हो रहा हवन कुंड का निर्माण

मंदिर के पुजारी अरविंद बाबा उर्फ विन्दे बाबा ने बताया कि मंदिर परिसर में स्थापित हनुमान गढ़ी के पुजारी ने हवन कुंड पर न्यायालय में वाद दायर कर रखा है जिसके चलते हवन कुंड का निर्माण नही हो पा रहा है।

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