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बस्ती:यूक्रेन से सकुशल घर पहुंची डॉ वीके वर्मा की बेटी सुरभि वर्मा

सुनील उपाध्याय

बस्ती।भारत सरकार की अथक प्रयास से क्षेत्र के डॉ बीके वर्मा की पुत्री एक सप्ताह मौत के साए में बिताने के बाद भोर में पांच बजे सुरभि वर्मा यूक्रेन से जब घर पहुंची तो परिजनों को ऐसा लगा कि कोई बहुत बड़ी खुशी मिल गई हो । 


लेकिन जब सुरभि ने आपबीती सुनाई तो उसे सुनकर भी लोगों का कलेजा कांप गया ।सुरभि वर्मा बताती हैं कि परिस्थितियों को देखते हुए हमने पहले ही स्वदेश आने के लिए 24 फरवरी की फ्लाइट में टिकट बुक करा रखा था । 


23 फरवरी को शाम को हॉस्टल से निकल कर जब हम एयरपोर्ट पहुंचने वाले थे तभी हमें मैसेज आया कि अब सारी प्लेन कैंसिल हो गई है और वहां से हमें ले जाकर दूतावास के निकट एक स्कूल के बेसमेंट में डाल दिया गया । 


कारण यह था कि 24 की सुबह से ही बमबारी शुरू हो गई थी । वहां 24 घंटे में छः बच्चों के बीच एक बार एक प्लेट खाना मिलता था जिसमें एक आदमी को तीन निवाला मिलना भी मुश्किल हो जाता था । 


हम वहां के दूतावास से गुहार लगाते रहे लेकिन कोई हमारी सुनने वाला नहीं था ।तीन दिन इंतज़ार के बाद किसी तरह हम लोग कीव के रेलवे स्टेशन पहुंचे और वहां 13 घंटा रेलवे में खड़े होकर सफर करने के पश्चात हम लोग वापस अपने उर्दू ग्रोथ नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल आ गए ।


वहां से हॉस्टल इंचार्ज के सहयोग से हम लोग एक टैंकर में बैठा कर हंगरी बॉर्डर पहुंचाए गए । वहां तक पहुंचने में हमें 28 घंटे का समय लगा जो सामान्य परिस्थितियों में मुश्किल से 28 मिनट का सफर है ।


इस दौरान हमारा एक एक पल जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हुए बीता । कारण यह था कि हमें पहले ही बता दिया गया था कि बाहर निकलने पर हम अपने रिस्क पर जा रहे हैं ।


हर क्षण युद्ध के सायरन बजते रहते थे और कहीं न कहीं बम बारी होती रहती थी ।एक मार्च की सुबह हम हंगरी में प्रवेश कर गए तब जाकर चैन मिला। 


यूक्रेन के कीव स्थित दूतावास व उसके कर्मचारियों का किसी तरह का सहयोग हम लोगों को नहीं मिल पाया । वही हंगगरी पहुंचते ही वहां का दूतावास पूरी तरह सक्रिय मिला और हमारे खाने पीने की व्यवस्था के साथ-साथ दिल्ली पहुंचाने की बेहतर व्यवस्था की गई ।


2 तारीख की सुबह हम लोग दिल्ली पहुंच गए और वहां से पांच पाँच की टोली में लोगों को इनोवा गाड़ी से उनके घर भेजा गया।सुरभि बताती हैं कि एक सप्ताह का समय बिना कुछ खाए पिये बिता लेकिन न तो कभी भूख का एहसास हुआ और न ही कभी प्यास का । 


बस यही चिंता रहती थी कि हम किसी तरह यूक्रेन की सीमा से बाहर निकल जाएं। घर पहुंचने पर परिजनों की मानो तो कोई खजाना सा मिल गया । 


पिता डॉ वीके वर्मा, मां राजेश्वरी वर्मा, भाभी चंदा वर्मा ,मौसी रेखा वर्मा, भाई डॉक्टर आलोक वर्मा ने कहा कि भगवान का शुक्र है कि हमें वापस मेरी बेटी मिल गई ।

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