रजिस्ट्रार कानूनगो पर आरोप मढ़ते हुए नोटिस जारी कर मांगा स्पष्टीकरण
बी पी त्रिपाठी
गोण्डा। एक वक्त था जब तहसील तरबगंज जनपद के सबसे भ्रष्ट तहसीलों में गिना जाता था। लेकिन वर्तमान समय में भ्रष्टाचार के मामले में कीर्तिमान स्थापित करते हुए तहसील कर्नलगंज ने उसे भी पिछाड़कर सबको चौंका दिया है।
यहां पर रंगीन कागज के नोटों की गड्डियों के बदले जीवित को मृतक व मृतक को जीवित, मूल व्यक्ति के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति का नाम खतौनी में अंकना कर दिया जाना,खतौनी से नाम खारिज कर दिया जाना जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मचारियों और दबंग भूमाफिया किस्म के लोगों के चोली दामन का साथ होने के चलते भ्रष्टाचार में जकड़े लोगों के बांये हाथ का खेल होने के साथ ही आम बात है।
वहीं तहसील कर्नलगंज में बढ़-चढ़ कर घूसखोरी का खेल खेलकर सरकार के दावों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जबकि भ्रष्टाचार के सारे मामले उच्चाधिकारियों के संज्ञान में होने के बावजूद कोई कार्यवाही नही होती है।
ऐसा ही एक मामला कुछ मीडिया कर्मियों के जानकारी में आने के बाद जब समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनने लगा तो अपने ही जारी आदेश को निरस्त करने की संस्तुति देकर एसडीएम कर्नलगंज बैकफुट पर आ गए हैं और संबंधित रजिस्ट्रार कानूनगो पर आरोप मढ़ते हुए नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है।
मामला ग्राम पंचायत पहाड़ापुर स्थित वेशकीमती भूमि का है, जिसमें निरस्त आदेश की अंकना करने को पत्र जारी कर उपजिलाधिकारी कर्नलगंज फंसते नज़र आ रहे हैं। विदित हो कि दिनाँक 17.02.2016 को मामले में तत्कालीन तहसीलदार महेंद्र मिश्रा द्वारा अपने ही आदेश 15.01.2015 को निरस्त कर पुराने आदेश 22.07.1994 को यथावत रखने का आदेश जारी कर अमलदरामद का फरमान सुनाया था।
लेकिन न्याय व्यवस्था के लचर रवैये के चलते पीड़ित पक्ष की अमल दरामद सरकारी अभिलेखों में नही हो सकी।
उक्त ग्राम पंचायत चकबन्दी प्रक्रिया में चली गई। जिससे पीड़ित पक्ष अमलदरामद हेतु चकबन्दी कार्यालय का चक्कर काटने लगा।
जहां चकबन्दी कार्यालय में उसे बताया गया कि जब तक धारा नौ की कार्यवाही नही शुरू होगी तब तक उसके नाम की अंकना खतौनी पर नही हो सकती। पीड़ित पक्ष चकबन्दी प्रक्रिया धारा नौ का इंतज़ार करने लगा।
समय बीतता गया और उक्त बेशकीमती भूमि पर भूमाफियाओं की नज़र गड़ गई और भूमाफियाओं ने राजस्व विभाग व चकबन्दी विभाग से सांठगांठ कर उक्त भूमि को हथियाने का षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया।
विदित हो कि जिस चकबन्दी विभाग ने पीड़ित पक्ष को धारा नौ का हवाला देकर तहसीलदार के आदेश पर नामांतरण को नकार दिया था उसी चकबन्दी विभाग ने सारी नियमावली को ताक पर रखकर उपजिलाधिकारी द्वारा जारी मात्र एक पत्र पर निरस्त आदेश की अंकना खतौनी में करके आनन फानन में सारा काम तमाम कर दिया।
जबकि पीड़ित व्यक्ति दर दर की ठोकरें खाता रहा परन्तु उसकी सुनवाई नही हुई। उपरोक्त भ्रष्टाचार के कारनामें से संबंधित प्रकरण में जब कुछ स्थानीय पत्रकारों ने समाचार प्रकाशित कर सच्चाई को उजागर किया तब एसडीएम बैकफुट पर आए और खुद को फंसते देखकर अंकना संबंधी जारी अपने ही पत्र को निरस्त करने की संस्तुति चकबन्दी विभाग को प्रेषित कर दिया।
यही नहीं मामले में रजिस्टार कानूनगो पर लापरवाही का आरोप मढ़ते हुऐ कार्यवाही की चेतावनी देकर उपजिलाधिकारी द्वारा स्पष्टीकरण मांगा गया है।
जो जिम्मेदार अधिकारियों, कर्मचारियों की कार्यप्रणाली को सवालिया घेरे में खड़ा कर रहा है और काफी चर्चा में है।
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