अखिलेश्वर तिवारी
जनपद बलरामपुर जिला मुख्यालय के अग्रवाल भवन में मां श्री राणी सती नारायणी देवी जन्मोत्सव के उपलक्ष में पूजन व भजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।
आयोजन में बड़ी संख्या में श्री राणी सती दादी परिवार से जुड़े लोगों ने प्रतिभाग किया ।
मां श्री राणी सती दादी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा होने के कारण काफी पौराणिक माना जाता है ।
मान्यता है कि महाभारत काल में अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने ही भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से कलयुग में राणी सती के रूप में जन्म लिया था जो बाद में रानी सती दादी के नाम से जानी जाती हैं ।
महाभारत युद्ध के दौरान चक्रव्यूह में अभिमन्यु के वीरगति को प्राप्त होने के बाद उत्तरा विलाप करते हुए अपने पति के शव के पास पहुंची और उसने पति के साथ सती होने का निश्चय किया ।
भगवान कृष्ण ने उत्तरा को गर्भवती होने के कारण सती होने से मना किया और आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा सती होने का प्रण कलयुग में पूर्ण होगा । कलयुग में तुम राणी सती के नाम से प्रसिद्ध होगी और तुम्हारा पूजन करने वाले का हर मनोकामना पूर्ण होगी ।
राजस्थान के झुंझुनू में राणी सती दादी का विशाल मंदिर स्थापित है, जहां पर तमाम श्रद्धालु प्रतिदिन मां का दर्शन कर अपने मनोकामना की पूर्ति कर रहे हैं ।
राणी सती दादी परिवार से जुड़े प्रमोद चौधरी का कहना है कि माता नारायणी देवी का ध्यान करके पूजन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है ।
बताया जाता है कि रानी सती का जन्म राजस्थान प्रदेश के (डोकवा) महम निवासी गुरसामल के यहां 1338 ई में हुआ था ।
रानी सती का विवाह हिसार निवासी सेठ जाली राम के जेष्ठ पुत्र तनधन दास के साथ हुआ था । तनधन दास रानी सती के साथ जब एक जंगल से गुजर रहे थे उसी समय हिसार के नवाब झाड़ चंद ने अपने सैनिकों के साथ घेरकर तनधन दास की हत्या कर दी ।
पति की हत्या से क्षुुब्ध नारायणी देवी ने चंडी का रूप धारण कर नवाबके पूरे सैनिकों सहित उसका संघार कर दिया । नारायणी देवी ने अपने पति के शव के साथ सती होने का निश्चय किया ।
इस कार्य में उनकी मदद राणा जाति के एक सेवक ने की । सेवक ने चिता तैयार की और नारायणी देवी ने अपने पति के शव को गोद में लेकर चिता पर आरूूढ हो गई ।
सती के तेज से चिता अपने आप प्रज्वलित हो गई तथा देखते ही देखते नारायणी देवी ने यह शरीर त्याग दिया । चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि सती ने त्रिशूल धारण शक्ति के रूप में प्रगट होकर राणा को आशीर्वाद दिया तथा चिता की भष्मी झुंझनू ले जाने का आदेश दिया ।
राणा की सेवा से प्रसन्न होकर सती ने कहा कि मेरा नाम जग में राणी सती के रूप मे प्रसिद्ध होगा ।
उन्हीं के आदेशानुसार झुंझुनू में विशाल एवं भव्य मंदिर का निर्माण भी किया गया है ।जाली राम के वंश की प्रथम सती राणी सती का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी को हुआ था तथा अंतिम सती गुजरी सती भाद्र कृष्ण अमावस्या को हुई थी ।
इसीलिए प्रत्येक वर्ष दोनों दिनों महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। बताया जा रहा है कि राणी सती 1352 में सती हुई थी । इनके परिवार में 8262 तक 12 सतियां हुईं ।
12 सती में मां नारायणी जी, जीवणी माता, पूर्णा सती, पिरागी सती, जमना सती, टीली सती, बाली सती, मैनावती सती, मनोहरी सती, महादेई सती, उर्मिला सती, गुजरी सती तथा सीता सती शामिल हैं ।
बलरामपुर के भगवतीगंज में श्री राणी सती दादी परिवार मंगल समिति की स्थापना की गई है । समिति के सभी सदस्य महिला हैं जिनमें सुनीता अग्रवाल, सुमन तुलस्यान, श्यामा अग्रवाल, बबीता अग्रवाल, ममता अग्रवाल, संगीता अग्रवाल, मीरा अग्रवाल, पूनम चौधरी, प्रेम अग्रवाल, सीमा अग्रवाल, रितु अग्रवाल, विमला अग्रवाल, रेशू अग्रवाल, निधि अग्रवाल, संगीता अग्रवाल, ममता अग्रवाल, संतोष केडिया, स्वेता तुलस्यान, नीलम अग्रवाल, अन्नपूर्णा अग्रवाल तथा बिंदु अग्रवाल शामिल है ।
मंगल समिति तथा उनके परिजनों के सहयोग से प्रत्येक वर्ष जन्मोत्सव के उपलक्ष में कार्यक्रम आयोजित होते हैं । इस वर्ष उत्सव कार्यक्रम शनिवार 13 नवंबर को मनाया गया ।
कार्यक्रम में कोलकाता से आए कलाकारों ने महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के वीरगति से लेकर रानी सती के जन्म व विवाह के बाद सतीत्व तक का चित्रण किया ।
बीच-बीच में भजन व कीर्तन के माध्यम से माहौल को संगीतमय बनाए रखा । पूरा वातावरण संगीत की धुनो से गुंजायमान हो रहा था ।
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