जो श्रद्धालु वर्षभर की समस्त एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं, उन्हें निर्जला एकादशी का उपवास अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इस व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-
1. इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।
2. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद साफ या पीले वस्त्र (कपड़े) पहनें।
3. भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजा में पीले पुष्प, फल, अक्षत, तुलसी, चंदन आदि सामग्री एकत्रित करके रख लें।
3. अब आमचन कर व्रत संकल्प लें।
4. इसके लिए सबसे पहले षोडशोपचार करें। सर्वप्रथम भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा करें।
5. इसके पश्चात आरती करके उन्हें भोग लगाएं।
6. भगवान का ध्यान करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। फिर इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
7. इस दिन भक्ति भाव से कथा सुनना और भगवान का कीर्तन करना चाहिए।
8. इस दिन व्रती को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफेद वस्त्र को उस पर ढंककर रखें और उस पर चीनी और दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। इस दिन जल कलश का दान करने वालों श्रद्धालुओं को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
धार्मिक मान्यता में इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है। निर्जला एकादशी पर दान का बहुत महत्व है। यह एकादशी व्रत धारण कर यथाशक्ति अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी और फल आदि का दान करना चाहिए।
निर्जला एकादशी पूजन के शुभ मुहूर्त
निर्जला एकादशी तिथि का प्रारंभ रविवार, 20 जून 2021 को दोपहर 12:02 होकर सोमवार, जून 21, 2021 को दिन 09:42 मिनट पर एकादशी तिथि समाप्त होगी। पारण यानी व्रत तोड़ने का समय मंगलवार, 22 जून को, सुबह 05:24 मिनट से 08:12 मिनट रहेगा।
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