अखिलेश्वर तिवारी
जनपद बलरामपुर के तहसील उतरौला क्षेत्र में स्थित लौकिया ताहिर निवासी वीरेंद्र दास द्वारा बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा करके अलग-अलग मामलों में वल्दियत बदलकर लाभ लेने तथा खुद के जीवित रहते हुए पुत्रों के नाम वसीयत कराने सहित कई गंभीर आरोप सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा लगाया गया है । आरोप की जांच उप जिलाधिकारी उतरौला द्वारा कराए जाने पर आरो प्रथम दृष्टया अभिलेखों में सही पाए गए हैं । अब देखने वाली बात होगी की इस हाईप्रोफाइल मामले में प्रशासन किस हद तक कार्रवाई करने में सक्षम हो पाता है ।
जानकारी के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा जिला अधिकारी सहित तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को दिए गए पत्र में आरोप लगाया गया है कि महंत देवेंद्र दास ने एक साथ अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग वल्दियत दर्शाते हुए लाभ प्राप्त किया है ।उन्होंने अपने आरोप में यह भी दर्शाया है कि महंत वीरेंद्र दास खुद के जीवित रहते खुद को मृतक दिखाकर आपने पुत्रों व पत्नी के नाम पूरी संपत्ति वसीयत कराने जैसे धोखाधड़ी का कार्य किया है ।
महंत बिरेंद्र दास पर आरोप है कि उन्होंने खुद को जीवित रहते हुए मृत घोषित किया है । उन्होंने 21 जुलाई 2015 को खुद को मृत घोषित करने के बाद खुद की खतौनी संख्या 226 का वसीयत अपने पुत्र अतुल कुमार, आनंद कुमार, नवनीत कुमार पुत्रगण वीरेंद्र कुमार दास तथा पत्नी सावित्री देवी के नाम दर्ज कराया गया है । इतना ही नहीं वीरेंद्र कुमार दास ने अलग-अलग स्थानों पर सरकारी अभिलेखों में अपने पिता का नाम रघुनाथ दास, विश्वनाथ तथा राम यज्ञ दर्शाते हुए लाभ प्राप्त किया है। आरोप में कहा गया है कि राम यज्ञ पड़ोस के ग्राम अचलपुर चौधरी के निवासी हैं और उनके दो पुत्र हैं जिनका नाम धर्मेश चंद्र तथा उमेश चंद्र है । इसी प्रकार विश्वनाथ के पुत्र का नाम राजीव कुमार है, जबकि विरेंद्र दास ने विश्वनाथ तथा राम यज्ञ को अपना पिता अलग-अलग स्थानों पर दर्शाया है । आरोप में यह भी कहा गया है महंत बिरेंद्र ने सत्यता को छुपाते हुए अपने पिता रघुनाथ दास तत्कालीन महंत राम जानकी मंदिर अयोध्या का चेला दर्शाया है तथा उन्हीं के स्थान पर राम जानकी मंदिर अयोध्या जी पर गद्दी नसीन हुए हैं । इस पूरे प्रकरण की जांच जिला अधिकारी श्रुति के निर्देश पर उप जिलाधिकारी उतरौला डॉक्टर नरेंद्र नाथ यादव द्वारा तहसीलदार के माध्यम से कराई गई। उप जिलाधिकारी डॉ नागेंद्र नाथ यादव ने दूरभाष पर जानकारी दी है कि जांच के दौरान खतौनी के गाना संख्या 226 पर किए गए वसीयत पर मिले सरकारी अभिलेखों में आरोप प्रथम दृष्टया सही पाए गए हैं । किसी व्यक्ति के जीवित रहते वसीयत कराने को धोखाधड़ी तथा फर्जीवाड़ा के दायरे में माना जाएगा। महंत बिरेंद्र दास ने वीडियो जारी करके आरोपों को बेबुनियाद बताया है तथा संत समुदाय की परंपरा का हवाला देते हुए कहा है कि परंपरा के अनुसार वैराग्य लेने पर व्यक्ति को एक तरह से मृत मान लिया जाता है । उसका परिवार से कोई नाता नहीं होता तथा पूरी तरह से वह विरक्त हो जाता है। उन्होंने भी बैराग लगभग 28 से 30 वर्ष पहले ले लिया था और उसके बाद ही अपने गुरु रघुनाथ दास जी के शरण में गया तथा बाद में संत परंपरा के अनुसार उन्हें श्री राम जानकी मंदिर स्वर्गद्वारी अयोध्या जी का महंत बनाया गया । बताए जा रहा है कि महंत बिरेंद्र दास के बड़ा पुत्र की उम्र लगभग 30 वर्ष है और वीरेंद्र दास की उम्र लगभग 66 वर्ष है । आरोप है कि यदि महंत बीरेंद्र दास 28 वर्ष पहले गृहस्थ जीवन को त्याग कर वैराग्य ले चुके थे तो फिर 38 वर्ष के व्यक्ति के 30 वर्ष का पुत्र कैसे संभव हो सकता है । इससे यह स्पष्ट है कि इनके द्वारा दिखाए गए अधिकांशतः तर्क असत्य है । आरोप कई लगाए गए हैं जिनका प्रकाशन क्रमशाह चलता रहेगा ।
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