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गोण्डा:डीएम के आदेश पर मातहतों की मनमानी पड़ रही भारी

 

ए. आर. उस्मानी

गोण्डा। जिला अधिकारी मार्कण्डेय शाही का आदेश तहसील व ब्लाक मुख्यालयों पर तैनात अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मनमानी पर भारी पड़ रहा है। मुख्यालयों पर ठहरने का डीएम का फरमान मातहतों के लिए कोई मायने नहीं रखता है। आलम यह है कि बेपरवाह अधिकारी व कर्मचारी मुख्यालयों पर नहीं रूक रहे हैं बल्कि वे शहर में किराए के मकानों में रातें गुजार रहे हैं या फिर डाक बंगलों में।

 

बताते चलें कि 6 फरवरी को जिले के तेज तर्रार डीएम मार्कंडेय शाही ने जिला स्तरीय अधिकारियों, उप जिला  अधिकारियों एवं ब्लॉक पर तैनात अधिकारियों तथा कर्मचारियों को उनके मुख्यालय पर बने आवासों में निवास करने की सख्त हिदायत दी थी। इसके साथ ही उन्होंने तीन दिन का समय भी तय किया था। जिलाधिकारी ने अल्टीमेटम दिया था कि यदि तीन दिवस में इस पर अमल नहीं किया गया तो विभागीय कार्रवाई की जाएगी। डीएम ने बताया कि सबडिवीजन व विकास खण्ड स्तरीय कार्यालयों का निरीक्षण कराने पर यह तथ्य प्रकाश में आया कि कई कार्यालयों में तैनात अधिकारी व कर्मचारीगण अपनी तैनाती के मुख्यालय पर आवासित न रहकर अन्य स्थानों से आवागमन करते हैं, जबकि शासन के स्पष्ट निर्देश हैं कि सभी अधिकारी एवं कर्मचारी अपनी तैनाती के मुख्यालय पर आवासित रहकर राजकीय कार्य सम्पादित करेंगे। उन्होंने गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए समस्त जनपद स्तरीय अधिकारियों, कार्यालयाध्यक्षों को निर्देशित किया था कि उनके अधीनस्थ जो भी कार्यालय तहसील एवं विकास खण्ड मुख्यालय पर संचालित हैं, उनमें कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों को तैनाती के मुख्यालय पर आवासित कराना सुनिश्चित करें। इस बावत अनुपालन आख्या एक सप्ताह में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे।

     जिले के मनकापुर कस्बे के मध्य स्थित पीडब्ल्यूडी विभाग के अतिथि गृह में बीते कई वर्षों से करनैलगंज तहसील में तैनात तहसीलदार तथा मनकापुर तहसीलदार  तहसीलों में बने आवास में निवास न करके अतिथि गृह में जमे हुए हैं। इसी क्रम में खंड शिक्षा अधिकारी अपने मुख्यालय पर लखनऊ से आते जाते हैं। विकास खंड अधिकारी, सीडीपीओ, विद्युत विभाग जेई सहित कई अधिकारी अपने-अपने कार्यालयों को खालाजी का घर बनाए हुए हैं। जिले के तमाम सीएचसी  की भी यही कहानी है, जहां मुख्यालय पर न रहकर चिकित्सक तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मी या तो घरों को चले जाते हैं या फिर जिला मुख्यालय पर किराए के मकानों पर रहते हैं। ऐसे में रात्रि में अस्पतालों में आने वाले इमरजेंसी केसों में को त्वरित उपचार नहीं मिल पाता है और उन्हें जिला अस्पताल लेकर जाना पड़ता है। यदि रात में जिले की सीएचसी का ही औचक निरीक्षण करा लिया जाय तो हकीकत सामने आ जाए।

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