गर्भावस्था में माताओं की मृत्यु दर रोकने के लिए चल रहा है अभियान
सीएचसी, पीएचसी व उच्च केन्द्रों में होती है महिलाओं की पूरी जांच
आलोक बर्नवाल
सन्तकबीरनगर। गर्भावस्था के दौरान माताओं को सुरक्षित करने की दिशा में प्रधानमन्त्री सुरक्षित मातृत्व अभियान से जच्चा - बच्चा को बड़ी बीमारी के खतरे से बचाने तथा मातृ मृत्यु दर को रोकने में काफी मदद मिलती है। जिले के हर प्राथमिक, सामुदायिक और जिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं की हर महीने की 9 तारीख को सम्पूर्ण जांच की जाती है। इसलिए आवश्यक है कि हर गर्भवती की कम से कम एक बार उच्च स्वास्थ्य इकाईयों पर जांच करा ली जाय।
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ मोहन झा ने बताया कि गर्भावस्था के समय कई बीमारियों की आशंका रहती है। इसी योजना की वजह से गर्भवती महिलाओं के अंदर जागृति फैलाने का मकसद यह है कि वह गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहें । जिले में हमार मातृ शिशु कल्याण केन्द्रों पर आशा के जरिए एएनएम उन्हें बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाती हैं। लेकिन उनकी एक बार विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच अति आवश्यक है। इसीलिए एएनएम और आशा को हर माह की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को उच्च स्वास्थ्य केन्द्रों पर विशेषज्ञों की निगरानी में पूरी जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं। इस दौरान डाइबिटीज, एनीमिया, सीवियर एनीमिया, हाई ब्लड प्रेशर, हाई रिस्क प्रेग्नेन्सी की जांच की जाती है। साथ ही जोखिम के हिसाब से लाल, नीला व पीला स्टीकर प्रयोग किया जाता है। लाल स्टीकर उच्च जोखिम की गर्भावस्था , नीला स्टिकर बिना किसी जोखिम की गर्भावस्था तथा पीला स्टीकर अन्य समस्याओं को इंगित करता है। इसलिए आवश्यक है कि गर्भावस्था के 3 से 6 माह के भीतर गर्भवती महिलाओं की जांच एक बार अवश्य कर ली जाए।
हर 9 तारिख को होती है जांच
जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ ए के सिन्हा बताते हैं कि हर महीने की 9 तारीख को सीएचसी, पीएचसी और जिला अस्पताल में प्रधानमन्त्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत महिलाओं की जांच की जाती है। साथ ही उपकेन्द्रों पर तैनात एएनएम को निर्देश दिए गए हैं कि अपने कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली महिलाओं की कम से कम एक बार उच्च केन्द्रों पर ले जाकर सम्पूर्ण जांच करवा दें। गर्भवती महिलाओं की जांच आशा और एएनएम स्तर पर उपकेन्द्रों पर नियमित होती रहती है। लेकिन सरकार की मंशा यह है कि गर्भावस्थाकाल में कम से कम एक बार विशेषज्ञ के जरिए उनकी जांच कर ली जाए। इससे गर्भावस्था में चल रही महिला की हाईरिस्क प्रेगनेन्सी आदि का पता चल जाता है। उसी हिसाब से उसका उपचार होता है।
कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन अनिवार्य
इस दौरान कोविड प्रोटोकाल का अनुपालन भी अनिवार्य किया गया है । इस दौरान यह निर्देश है कि केवल दूसरे व तीसरे त्रैमास की महिलाओं को बुलाया जाय, सभी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा, सभी आने वाली गर्भवती को हैण्डवाश के साथ सेनेटाइज कराया जाय, ग्रुप काउन्सिलिंग नहीं होगी बल्कि वन टू वन काउन्सिलिंग की जाय। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया जाय तथा लाजिस्टिक की व्यवस्था एक दिन पूर्व ही कर ली जाय।
इनको नियुक्त किया गया पर्यवेक्षक
आगामी 9 जनवरी को प्रधानमन्त्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के सहयोगात्मक पर्यवेक्षण के लिए अधिकारियों की नियुक्ति भी कर दी गई है। एसीएमओ मोहन झा सीएचसी बघौली, डीपीएम विनीत श्रीवास्तव सीएचसी सेमरियांवा, डीसीपीएम संजीव कुमार सीएचसी पौली, डीसीएस करुणेश मिश्रा सीएचसी हैसर, सुरजीत सिंह अरबन कोआर्डिनेटर पीएचसी मगहर, फैजान अहमद हास्पिटल मैनेजर डिस्ट्रिक्ट हास्पिटल , जगदीश कुमार डीटीएस सीएचसी सांथा, बेलाल अनवर डीएमसी यूनीसेफ सीएचसी मेंहदावल, इम्तियाज अहमद डीएफपीएलएम सीएचसी बेलहर कला, अबूबकर क्यूएसी कांशीराम आवासीय योजना पीएचसी, दीनदयाल वर्मा आरकेएसके कोआर्डिनेटर सीएचसी खलीलाबाद तथा धर्मराज त्रिपाठी डीएफपीएस को सीएचसी नाथनगर में सहयोगात्मक पर्यवेक्षण दायित्व सौंपा गया है।
77% का एमसीपी कार्ड
नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे 4 के आंकड़े बताते हैं कि 45.7 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं की एक बार जांच होती है। जबकि 32.2 प्रतिशत महिलाओं की 4 बार से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सकों से जांच होती है। जबकि 77.1 प्रतिशत महिलाओं का एमसीपी ( मदर एण्ड चाइल्ड प्रोटेक्शन कार्ड ) बनता है। जबकि 66.4 प्रतिशत महिलाएं जननी सुरक्षा योजना से आच्छादित होती हैं।
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