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गज़ल:उससे मुलाक़ात भी उसी रात हुई



उससे मुलाक़ात भी उसी रात हुई,

जिस रोज़  बेतहाशा  बरसात हुई ।


पहले तआर्रुफ फिर पहचान हुई,

बात निकली तो फिर बात हुई ।


वक्त पल औ लम्हों में गुजरने लगा,

ऐसे ही ज़िन्दगी की शुरुआत हुई ।


कुछ हमने कहा कुछ उसकी सुना,

इस तरह  इज़हारे खयालात हुई ।


नवाज़िश मेहरबानी हम पर  हुई,

फिर जाने क्या क्या करामात हुई ।


अब देखो हर तरफ़ उसका जलवा,

उसकी मेहरबानियाँ, हिमायात हुई


फ़र्श से अर्श तक पहुँचा दिया कैसे,

ज़िन्दगी मेरी गोया तिलिस्मात हुई ।


देहलीज़ पर किसने  रखा क़दम

रौशन मेरा जहाँ मेरी कायनात हुई ।


ये सिला फ़रियाद का मिला "शाहिद",

यही मेरे जीने की वजूहात हुई ।


डा० शाहिदा

प्रबन्धक

न्यू एन्जिल्स सी.से.स्कूल

प्रतापगढ़,( यू पी)

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