उससे मुलाक़ात भी उसी रात हुई,
जिस रोज़ बेतहाशा बरसात हुई ।
पहले तआर्रुफ फिर पहचान हुई,
बात निकली तो फिर बात हुई ।
वक्त पल औ लम्हों में गुजरने लगा,
ऐसे ही ज़िन्दगी की शुरुआत हुई ।
कुछ हमने कहा कुछ उसकी सुना,
इस तरह इज़हारे खयालात हुई ।
नवाज़िश मेहरबानी हम पर हुई,
फिर जाने क्या क्या करामात हुई ।
अब देखो हर तरफ़ उसका जलवा,
उसकी मेहरबानियाँ, हिमायात हुई
फ़र्श से अर्श तक पहुँचा दिया कैसे,
ज़िन्दगी मेरी गोया तिलिस्मात हुई ।
देहलीज़ पर किसने रखा क़दम
रौशन मेरा जहाँ मेरी कायनात हुई ।
ये सिला फ़रियाद का मिला "शाहिद",
यही मेरे जीने की वजूहात हुई ।
डा० शाहिदा
प्रबन्धक
न्यू एन्जिल्स सी.से.स्कूल
प्रतापगढ़,( यू पी)
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