हमारे पांव ज़मीन पर हैं, तुम्हारा आस्मान कैसा है
हम तो ख़ामोश हैं,आज तुम्हारा गुमान कैसा है
इतना ग़ुरूर मत करो,सांसें तो हमारी जैसी लेते हो
कल क्या हो पता नही, आज भले मुट्ठी में पैसा है
जन्म लिया ख़ाली हाथ, दुनिया छोड़ा ख़ाली हाथ
चन्द सांसें ख़रीद लें कहीं से, क्या मुमकिन ऐसा है
इस क्षण भंगुर जीवन में, इच्छाएं रखते हैंअनेक
एक ही मकसद पैसा कमाना, कर्म चाहे जैसा है
कर्म फल टाले नहीं टले, बस इतना ही समझ लो
फल तुमको वही मिलेगा, बीज तुम्हारा जैसा है
किसी की जान ले लेना, किसी को ख़ून दे देना
कहीं जुर्म ही जुर्म, कहीं नेकी का दरिया जैसा है
सुरूर हो कामियाबी का, हरगिज़ ना ग़ुरूर आए
हमारी जुस्तजू जैसी है हमारा हासिल भी वैसा है
डॕा शाहिदा
प्रबन्धक
न्यू एन्जिल्स सी.से.स्कूल
प्रतापगढ़
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ