आनन्द मणि तिवारी
बलरामपुर ।। जिले में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) संस्था के सहयोग से ‘‘कोविड-19 संक्रमित मृतक के शरीर की व्यवस्था और अंतिम संस्कार’’ विषय पर राष्ट्रीय स्तर की वेबनाॅर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और नई दिल्ली समेत कई राज्यों के विषय-विशेषज्ञों और मीडिया प्रतिनिधियों ने कोविड-19 के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। राष्ट्रीय विमर्श में सभी विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर जोर दिया कि न केवल कोरोना संक्रमित व्यक्ति के प्रति लोगों को नजरिया बदलना होगा, बल्कि अगर इस बीमारी के कारण किसी की मौत हो जाती है तो उसके शव के प्रति भी व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है।
वेबनॉर के शुभारंभ पर सीफॉर की निदेशक अखिला शिवदास ने विषय की गंभीरता व महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संक्रमित शव के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार होना चाहिए। देश में कोरोना संक्रमित के शवों के प्रति कई ऐसी घटनाएं प्रकाश में आई हैं जो चिंता का विषय हैं। इस संबंध में समाज के नजरिये में बदलाव लाना होगा।प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वंदना प्रसाद ने कहा कि स्वस्थ होना, जीना-मरना मानव जीवन का हिस्सा है। कोरोना मृतक के प्रति भेदभाव ठीक नहीं है। मृत शरीर से किसी को कोई दिक्कत नहीं है। जिस प्रकार कपड़े और कागज पर ज्यादा देर वायरस नहीं टिकता है, उसी प्रकार शव पर भी अधिकतम 4 घंटे तक ही वायरस टिक सकता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केन्द्र के पूर्व निदेशक डॉ. टी सुंदररमन ने कोरोना संक्रमित के शव के प्रति समाज में फैले भय और भ्रांतियों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि कि अभी तक कोरोना के जितने मामले आए हैं उनमें किसी भी डेडबाडी के कारण कोरोना फैलने का अब तक का कोई भी केस रिपोर्ट नहीं हुआ है। हम सुरक्षा के लिए शवों को गले लगाने से बच सकते हैं लेकिन आवश्यक दूरी और सावधानियों के साथ हमे शवों का सम्मान करना चाहिए। इससे कोरोना का संक्रमण नहीं होता है।
आईआईटी दिल्ली में प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दिनेश मोहन ने बताया कि चूंकि शव सांस नहीं लेता, न छींक सकता है न खांस सकता है, न हंस सकता है न ही जोर से बोल सकता। ऐसे में संक्रमित के शव से संक्रमण का खतरा नहीं है। लोगों को चाहिए कि शव के बारे में अनावश्यक भ्रांति न पालें। मृतक शरीर किसी के लिए खतरा नहीं होता है, बस आवश्यक सावधानियां रखनी होंगी।
मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. जॉन दयाल, नताशा बधवार और हर्ष मंदर ने कहा कि जब तक कोरोना संबंधित रिपोर्ट नहीं आई होती है तब तक लोग उस व्यक्ति के पास रहते हैं और पॉजीटिव रिपोर्ट आते ही व्यवहार बदल जाता है। संक्रमण से मौत के बाद बदले व्यवहार की जो घटनाएं आई हैं, वह काफी दुखद हैं। दाह-संस्कार या दफनाने के बाद तो संक्रमण के प्रसार का कोई सवाल ही नहीं उठता है लेकिन फिर भी भय का एक माहौल बना है जिसे दूर करने होगा। यह ध्यान रखना होगा कि लाश से किसी को कोई बीमारी नहीं होती है। उन्होने कहा कि भय और भ्रांतियों से निपटने के सिर्फ दो ही तरीके हैं। एक तो विज्ञान और दूसरी सटीक सूचना। इन दोनों तरीकों से लोगों के बीच फैले भय और भ्रांति को समाप्त करना होगा। कार्यक्रम के दौरान मीडिया प्रतिनिधियों की तरफ से कोरोना संबंधित विविध सवाल किये गये जिनका अलग-अलग पैनलिस्ट की तरफ से जवाब दिया गया।
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