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Sant kabir nagar कोरोना काल में जनता के लिए भगवान साबित हुए ये चिकित्‍सक




बढ़ चढ़कर किया अपनी जिम्‍मेदारियों का निर्वहन, कर्तव्‍य पथ से नही हटे पीछे
मरीजों की सेवा में निरन्‍तर रहे तत्‍पर, करते रहे सेवा, देते रहे मरीजों को हौसला

आलोक बर्नवाल
संतकबीरनगर। कहते हैं मनुष्‍य की असली परीक्षा तभी होती है जब कोई विपदा आती है। कोविड -19 के रुप में देश में आई विपदा के दौरान जिले के चिकित्‍सकों ने अपना बेहतर योगदान देते हुए अपना बेहतर योगदान दिया। अपनी जिम्‍मेदारियों का निर्वहन किया और साथ ही कर्तव्‍यपथ से भी पीछे नहीं हटे। मरीजों की सेवा के साथ ही उनको हौसला प्रदान करने में भी वे निरन्‍तर लगे रहे। संतकबीरनगर जनपद के ऐसे चिकित्‍सकों की कहानी कुछ यूं है –

समय की परवाह किए बिना कोरोना स्क्रीनिंग में लगी रहे डॉ अर्चना यादव

सुबह 4 बजे ही वे अपनी स्‍क्रीनिंग टीम को लेकर रेलवे स्‍टेशन पर होती थीं, तो रात में 10 बजे ट्रांजिट सेण्‍टर में तो कभी गांव के किसी क्‍वारंटीन सेण्‍टर में। समय उनके लिए कोई मायने नहीं रखता था, वे स्‍क्रीनिंग के लिए अपनी टीम के साथ हर समय तैयार रहती थीं। जिले के जिलाधिकारी रवीश गुप्‍त भी उनकी प्रतिबद्धता की तारीफ करते नहीं थकते हैं। हम बात कर रहे हैं जिले की राष्‍ट्रीय बाल स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम की खलीलाबाद की मेडिकल आफिसर डॉ रचना यादव की, जिन्‍होने हर समय सेवा के लिए तैयार रहने की अपनी जिम्‍मेदारी को न तो कभी छोड़ा और न ही उनकी राह में समय और परिस्थितियां आड़े आई। कोरोना काल में तो जटिलतम और संवेदनशील स्‍थानों पर अगर किसी को भेजना होता है तो सभी की नजरें डॉ रचना यादव पर ही आकर टिकती हैं, क्‍योंकि जिम्‍मेदारियों को वह बोझ नहीं बल्कि सेवा समझती हैं।

घर में पड़ा था शव और डॉक्टर मोहन झा कर रहे थे कोरोना पीड़ितों की सेवा

मूल रुप से बिहार राज्‍य के मूल निवासी डॉ मोहन झा जिले के अपर मुख्‍य चिकित्‍साधिकारी हैं। कोरोना विपदा के दौरान उनके उपर जिले के कोरोना पीडि़तों की महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी है। देश में लॉकडाउन के दूसरे दिन जब सारी व्‍यवस्‍थाओं को सुचारु रुप से सम्‍पन्‍न कराने के लिए मुख्‍यमन्‍त्री की वीडियो कांफ्रेसिंग होने वाली थी। उसी दौरान दो घण्‍टे पहले ही घर से फोन आया कि घर की जिम्‍मेदारियों का निर्वहन करने वाली उनकी भाभी की दुर्घटना में मौत हो गई है। इतनी जानकारी होने के बाद वे खुद संयत हुए, अपने परिवार के लोगों को सान्‍त्‍वना दी वीडियो कान्‍फ्रेसिंग अटेण्‍ड करने के बाद उसके हिसाब से सारी व्‍यवस्‍थाएं कराई तथा जिलाधिकारी और प्रमुख सचिव स्‍वास्‍थ्‍य से अनुमति लेकर दूसरे दिन खुद 400 किमी गाड़ी चलाते हुए परिवार को लेकर अपने पैतृक निवास पहुंचे, जिसके चलते दूसरे दिन उनका दाह संस्‍कार हो पाया। दाहसंस्‍कार के पश्‍चात वे फिर आकर कोरोना पीडि़तों की सेवा में लग गए।

सेवा के आगे पिता की अंतिम यात्रा में नहीं शामिल हुए डॉक्टर के पी सिंह

कहने को तो वे सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र खलीलाबाद में नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं, लेकिन तमाम ऐसे मरीज हैं जिन्‍हें अगर हल्‍का फुल्‍का पेटदर्द, बुखार तथा कोई अन्‍य परेशानी होती है तो वे सीधे डॉ केपी सिंह के पास पहुंचते हैं। मृदुभाषी व सरल स्‍वभाव के डॉ केपी सिंह के पास कोई भी पहुंचता है तो उसकी समस्‍या के समाधान के साथ ही उचित राय भी देते हैं। इसीलिए वे मरीजों में खासे लोकप्रिय भी हैं। सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र खलीलाबाद को जब कोविड एल 1 हास्पिटल बनाया गया तो डॉ केपी सिंह की भी उसमें ड्यूटी लगाई गई। ड्यूटी के दौरान ही उनके पिता की अचानक मौत हो गई। एक तरफ मरीजों की सेवा और दूसरी तरफ क्‍वारंटीन की वैधानिक मजबूरी, नतीजा यह हुआ कि वे अपने पिता के अन्तिम संस्‍कार में भी नहीं शामिल हो पाए। लोगों ने उन्‍हें वाट्सअप पर पिता का अन्तिम दर्शन कराया। उन्‍हें इस बात का अब भी मलाल है कि वे पिता के अन्तिम संस्‍कार में नहीं पहुंचे, लेकिन इस बात की खुशी भी है कि मरीजों की पूरी तन्‍मयता के साथ सेवा की।

कोरोना काल में हर मर्ज की दवा बने वरिष्ठ चिकित्सक डॉ ए के सिन्हा

जिले में आई कोविड 19 की आपदा के दौरान जिले के वरिष्‍ठ चिकित्‍सक डॉ ए के सिन्‍हा हर मर्ज की दवा बने हुए हैं। जब 17 जनवरी को चीन से आए हुए 8 छात्रों की पहली सूची आई, तभी उन्‍हें इन छात्रों की स्‍क्रीनिंग में लगा दिया गया। वे अपनी टीम लेकर छात्रों के घर पर पहुंचते और उनकी जांच करते। 27 जनवरी को उन्‍हें कोरोना रैपिड रिस्‍पांस टीम का प्रभारी बना दिया गया। इसके बाद जिले में क्‍वारंटीन सेण्‍टर स्‍थापित करने, टीमें बनाने के साथ ही सर्विलांस तथा प्रशासन के साथ मिलकर कोरोना मरीजों के लिए बेहतर व्‍यवस्था की जिम्‍मेदारी वे बखूबी निभा रहे है। कोविड को लेकर कहीं किसी भी तरह की परेशानी होती है तो प्रशासन हो, या फिर चिकित्‍सा विभाग सभी उन्‍हीं को याद करते हैं। कोरोना काल के दौरान भी वे जिला संचारी रोग अधिकारी, सर्विलांस अधिकारी, 102 व 108 वाहन प्रभारी के दायित्‍वों का निर्वहन कर रहे हैं। 1988 में चिकित्‍सा सेवा में आए डॉ ए के सिन्‍हा कहते हैं कि हमें अपनी जिम्‍मेदारियों का निर्वहन करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

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