शिवेश शुक्ला
बिलासपुर / छत्तीसगढ़ । वंचित, गरीब, संसाधनहीन स्कूली बच्चों की मदद हेतु एक रुपए की मुहिम चलाकर छत्तीसगढ़ बिलासपुर की सीमा वर्मा लोगों के लिए मिसाल बन चुकी है। वह किसी से भी एक रुपए से ज्यादा नहीं लेती हैं। अब तक वह ऐसे बच्चों की लाखों रुपए की मदद कर चुकी हैं। उनकी 'एक रुपया मुहिम’ अब मिसाल बन चुकी है। पं• महामना मदन मोहन मालवीय ने कभी एक-एक रुपए लोगों से जोड़ कर वाराणसी में बीएचयू जैसा कालजयी संस्थान खड़ा कर दिया था।
पिछले कई वर्षों से संसाधनहीन परिवारों के बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए बिलासपुर (छत्तीसगढ़) की बीएससी टॉपर सीमा वर्मा लोगों से एक-एक रुपए की मदद राशि जुटाती हैं। उनकी 'एक रुपया मुहिम’ इन बच्चों के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसी भले हो, किन्तु उनकी कोशिशों से हजारों लोगों को ऐसे वक़्त में प्रेरणा और सामाजिक सहानुभूति मिल रही है, जबकि ज्यादातर लोग आज सिर्फ अपने लिए कमाने-खाने में जुटे हुए हैं। सीमा इस मुहिम के साथ ही विधि की पढ़ाई भी कर रही हैं। वह अन्य तरह की सामाजिक गतिविधियों में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेती रहती हैं। अब तो उनकी 'एक रुपया मुहिम’ ने एक अभियान का रूप ले लिया है। सीमा स्कूल, कॉलेजों, संस्थाओं में जाकर बच्चों और शिक्षकों को जागरूक करने के साथ उनसे मात्र एक-एक रुपए की सहयोग राशि भी लेती हैं। इस राशि को वह स्कूली शिक्षा ले रहे गरीब बच्चों की मदद में खर्च कर देती हैं। सीमा बताती है कि वह यह मुहीम 10 अगस्त 2016 से शुरू किया और अब तक सर्वाधिक जरूरतमंद बच्चों की फीस जमा कर चुकी हैं।इसकी शुरुआत उन्होंने राजधानी बिलासपुर के सीएमडी कॉलेज से पहली बार की थी। उस दिन उन्होंने पहली बार 395 रुपए जुटा लिए थे। वह राशि उन्होंने एक सरकारी स्कूल की छात्रा की फीस में जमा करने के साथ ही उसके लिए कुछ स्टेशनरी भी खरीदी। सीमा वर्मा के पिता आर के वर्मा कोल फील्ड में कार्यरत है तो माता सोना देवी एक कुशल गृहणी के रूप में है ,तो वहीं उसका बडा भाई इंडियन आर्मी में कार्यरत है जो देश की सेवा कर रहा है । सीमा बताती है कि यह बच्चे जब तक 12वीं तक की शिक्षा पूर्ण नहीं कर लेते तब तक सीमा उनकी फीस जमा करती रहती है । सीमा बताती हैं कि पिछले तीन वर्षों में उन्होंने स्कूली कार्यक्रमों में अपने मोटिवेशनल स्पीच से एक-एक रुपए कर दो लाख रुपये से 33 ज़रूरतमंद बच्चों की स्कूल की फीस जमा करने के साथ ही उनके लिए किताब-कॉपी, स्टेशनरी के सामान आदि खरीदकर दे चुकी हैं। यद्यपि यह मुहिम चलाते समय उन्हे कई एक लोग ‘भिखारी’ कह चुके हैं लेकिन ऐसी बातों पर वह बिना ध्यान दिए अपने मुहिम को आगे बढ़ाने में प्रयासरत रही है, जिसका परिणाम आज एक रुपए की मुहिम लोगों के लिए मिसाल बन चुकी है। एक वाकये से ही गरीब बच्चों की मदद का सोशल आइडिया मिला। उसके बाद वह टीचर्स की मदद से शिक्षण संस्थानों में सक्रिय होने लगीं। अपने कॉलेज में भी सेमिनार कर ऐसे बच्चों के लिए खुली पहल शुरू की। उस इवेंट में उन्होंने संपन्न परिवारों के बच्चों से भी एक-एक रुपये की मदद मांगी और उनकी मुहिम चल पड़ी। लोग आराम से एक-एक रुपए की मदद करने लगे। वह कहती हैं कि समाज में अच्छे-बुरे दोनो ही तरह के लोग होते हैं। आज भी अच्छे लोगों की ही तादाद ज्यादा है। मदद राशि भी कोई खास नहीं, इसलिए लोगों को इससे कोई आर्थिक दिक्कत महसूस नहीं होती है। एक बार तो एक कॉलेज में उनके स्पीच से प्रभावित होकर लोगों ने एक-एक रुपए कर दो हजार रुपए से अधिक की राशि बच्चों की मदद के लिए दे दी। सबसे अहम बात यह है कि वह किसी से भी एक रुपए से अधिक नहीं लेती है । "विराट दूत" समाचार पत्र के प्रतिनिधि से हुई बातचीत में सीमा ने बताया इस मुहिम की शुरुआत करने का एक बहुत बड़ा कारण रहा है । वह जब ग्रेजुएशन में थी उनकी एक सहेली थी जो दिव्यांग थी, सीमा को उनको ट्राईसाइकिल दिलवाना था इसके लिए सीमा ने कालेज के प्रिंसपल से बात की ,तो प्रिंसिपल ने कहा एक हप्ते बाद बात करते है ,सीमा उसी दिन पैदल -पैदल मार्केट के कई शॉप पर गई किसी ने कहा यहां नहीं मिलेगा,किसी ने कहा 35 हजार रूपया का मिलेगा पर दिल्ली से मांगना पड़ेगा,15 दिन से 1महीना लग सकता है किंतु सीमा के अंदर सहेली की मदद कर उसे ट्राई साइकिल दिलवाने का जुनून रहा और वह हार नहीं मानी । इसके उपरांत एक पंचर बनाने वाली दुकान पर पहुंची ,उनसे पूछा इन सब दुकानों के अलावा कोई साइकिल स्टोर है पंचर बनाने वाले ने पूछा आप को क्या चाहिए ? सीमा ने बताया उनकी दिव्यांग दोस्त को बैटरी से चलने वाली ट्राई साइकिल चाहिए, पंचर बनाने वाले ने मजाकिया लहजे से पूछा आप कौन सी क्लास में है । सीमा ने बताया अपनापन अंतिम वर्ष है मेरा ,पंचर वाले ने बोला आप को पता नहीं क्या यह सरकार निशुल्क ऐसे लोगो को उपलब्ध कराती है । दुकानदार के बोलते ही सीमा के हौसले मैं पंख लग गए और उसने तुरंत इसकी उपलब्धता के लिए सवाल कर दिया । सीमा को जब इस विषय में पूरी जानकारी हो गई तो वह जिलाधिकारी से मिलने के लिए पहुंच गई और अपनी समस्या को उनके समक्ष रखी जिलाधिकारी ने समस्या का समाधान कराने का आश्वासन देते हुए तत्काल प्रभाव से दूसरे दिन उनके दोस्त को ट्रायसाइकिल उपलब्ध करवा दी जिससे उसके हौसले और बढे तो फिर उसने सरकार की योजनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करना समाज के गरीब संसाधन विहीन लोगों की मदद करना का जुनून और बढ़ गया | सीमा बताती है कि उस दिन से हमें तीन बातों की सीख मिली जो कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती और अधिकांश लोगो को सरकार की योजनाओं के बारे में पता ही नहीं तो लोग लाभ केसे लेंगे ? इसके लिए जागरूकता जरूरी है । इसी सोच के साथ उसने एक रूपया के मुहिम की शुरुआत की ताकि लोगो को जागरूक कर सके । सीमा को लोग मदद के लिए रुपए भी देना चाहते है भारत से ही नहीं अपितु विदेशो से भी , पर सीमा यह कह कर मना कर देती है कि दिया तले अंधेरा मत बनिए जहा है ,वहीं पर लोगो की मदद कीजिए सीमा सभी देश वासियों से अपील करती है आप सभी एक दूसरे की मदद करते हुए भारत देश की एकता और अखंडता को बनाए रखिए । सीमा कहती है कि आप एक रूपया मुहिम को जरूरत मंद लोगो के लिए ही नहीं अपने लिए भी शुरू कर सकते है अपने घर पर रोज एक एक रूपया या उससे ज्यादा इक्कठा कर सकते है ताकि विपरीत परिस्थिति में उसका उपयोग कर पाए ।
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